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इस बार जेन कथा ब्लॉग की चर्चा

जीवन का असल मर्म और अर्थ समझाती कथाएँ

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रवींद्र व्यास

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ब्लॉग की दुनिया में बहुत सारे ब्लॉग कविताओं के ब्लॉग हैं। इनके बीच एक ब्लॉग कथाओं का भी है। लेकिन ये कथाएँ ज्यादा गहरी हैं। जीवन का मर्म और अर्थ महसूस कराती हुईं। इनमें दुःख-सुख, स्वर्ग-नर्क और आनंद से लेकर चिंता पर इतनी मार्मिक कथाएँ हैं कि इनकी सहजता, संवेदनशीलता, पानी सी निर्मल पारदर्शिता है इसमें आपको हमारे जीवन का सत्य किसी मोती की तरह झिलमिलाता दिखाई दे सकता है। भ्रम और दुःख के कोहरे में सहज बुद्धि की अलौकिक किरणें दिखाई दे सकती हैं। लालसा और वासना के जलते जंगल में संयम और धैर्य के झरने दिखाई दे सकते हैं।

ये कथाएँ आपके दुःख और चिंताओं के घावों पर रूई के फाहो की तरह राहत देती हैं। महत्वाकांक्षा से घायल हुए हृदय को शांति दे सकती हैं। ये कथाएँ जीवन के प्रेम और शांति का संदेश देती हैं। ऐसी कथाओं का यह ब्लॉग है जेन कथा ब्लॉग। इसके ब्लॉगर हैं निशांत मिश्र।

इस ब्लॉग पर बहुत सारी और बहुत तरह की कथाएँ हैं। यहाँ आपको ताओ कथाएँ मिलेंगी तो बौद्ध कथाएँ भी मिलेंगी। सूफी कथाएँ मिलेंगी तो नैतिक कथाएँ मिलेंगी तो मुल्ला नसरूद्दीन की कथाएँ भी मिलेंगी। हिंदू कथाएँ मिलेंगी। और सबसे ज्यादा जेन कथाएँ मिलेंगी। अब कथाएँ कोई नहीं पढ़ता लेकिन ये कथाएँ कालातीत कथाएँ हैं और हर काल में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखती हैं और ये जीवन के रहस्यों के परदे हटाकर आपको जीवन का असली मर्म दिखाती हैं। इसमें आठ कैटगरी में मार्मिक कथाएँ दी गई हैं।

उदाहरण के लिए नैतिक कथाओं के तहत बाजार में सुकरात कथा को पढ़ना एक बहुत बड़े सच से रूबरू होना है। कथा यूँ है-

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सुकरात महान दार्शनिक तो थे ही, उनका जीवन संतों के जीवन की तरह परम सादगीपूर्ण था। उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, यहाँ तक कि वे पैरों में जूते भी नहीं पहनते थे। फिर भी वे रोज बाजार से गुजरते समय दुकानों में रखी वस्तुएँ देखा करते थे। उनके एक मित्र ने उनसे इसका कारण पूछा। सुकरात ने कहा - "मुझे यह देखना बहुत अच्छा लगता है कि दुनिया में कितनी सारी वस्तुएं हैं जिनके बिना मैं इतना खुश हूँ।"

कहने की जरूरत नहीं कि यह कथा हमें उस मर्म को समझाती, महसूस कराती है जिससे हमारी जिंदगी ज्यादा सुंदर और ज्यादा मुक्त दिखाई देती है। आज के उपभोक्तावादी समय में यह कथा तो और भी मार्मिक जान पड़ती है क्योंकि हमने इतने सारी चीजें इकट्ठा कर ली हैं कि उन तमाम अर्थहीन चीजों के बोझ से हमारी आत्मा दबी रहती है औऱ हम अपने जीवन का सही आनंद नहीं उठा पाते हैं।

उदाहरण के लिए ताओ कथाओं में एक कविता बताती है कि आनंद के चार कारण कौन से हैं और कौन सा कारण जीवन का सबसे बड़ा आनंद बनता है। कथा का शीर्षक है आनंद के चार कारण। यह कथा अपना जीवन दर्शन कुछ यूँ बयां करती है-

लाओ-त्ज़ु एक मोटा फर का कोट पहनकर अपनी कमर पर एक रस्सी से उसे बाँधकर अपने बैल पर यहाँ से वहाँ घूमता रहता था। अक्सर वह छोटे से इकतारे पर आनंद विभोर होकर गीत गाने लगता। एक दिन किसी ने उससे पूछा - "तुम इतने खुश क्यों हो?"

लाओ-त्जु ने उत्तर दिया - "मैं चार कारणों से खुश हूँ। पहला यह है कि मैं एक मनुष्य हूँ और मनुष्य होने के नाते मैं उन सारी वस्तुओं और पदार्थों का उपभोग कर सकता हूँ जो केवल मनुष्यों को ही उपलब्ध हैं। दूसरा कारण यह है कि पुरूष होने के नाते मैं स्त्रियों की सुन्दरता का बखान कर सकता हूँ। तीसरा यह कि अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और इस कारण मैं कम उम्र में मर जाने वालों की तुलना में अधिक जानता हूँ और ज्यादा दुनिया देख चुका हूँ। और चौथा और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि चूँकि अब मैं मरने के लिए तैयार हूँ इसलिए मुझे किसी प्रकार का भय और चिंता नहीं है।

जाहिर है मृत्यु के भय से हम जीवन का भरपूर आनंद नहीं उठाते हैं और मृत्यु के भय के भार में अपनी जीवन की कोमल अनुभूतियों को दबाए रखते हैं और एक दिन भरपूर आनंद उठाए ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। यह कहानी बहुत ही साधारणता से जीवन के असाधारण सत्य को उद्‍घाटित कर जाती है। भय, चिंता हमारे जीवन को किसी जोंक की तरह खून पीकर जर्जर बना देते हैं। यह कथा आनंद का सत्य बताती है।

  हम साधकों को महिलाओं के पास भी जाना तक मना है, बहुत सुंदर और कम उम्र लड़कियों को तो देखना भी पाप है। तुमने उस लड़की को अपनी बाँहों में उठाते समय कुछ भी नहीं सोचा क्या?      
चूँकि यह ब्लॉग जेन कथाओं का ब्लॉग तो यहाँ सबसे ज्यादा अब तक 30 जेन कथाएँ दी गई हैं। उनमें से सड़क के पार कथा दिलचस्प है और बताती है कि कोई घटना हमारे मन में कैसे घर कर जाती है और कैसे हम उससे विचलित बने रहते हैं, मुक्त नहीं हो पाते हैं। यह कथा मुक्त होने का अचूक दर्शन बता जाती है। कथा यह है कि -

तनजेन और एकीदो नामक दो जेन साधक किसी दूर स्थान की यात्रा कर रहे थे। मार्ग कीचड से भरा हुआ था। जोरों की बारिश भी हो रही थी। एक स्थान पर उन्होंने सड़क के किनारे एक बहुत सुंदर लड़की को देखा। लड़की कीचड़ भरे रास्ते पर सड़क के पार जाने की कोशिश कर रही थी पर उसके लिए यह बहुत कठिन था।

''आओ मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ।", तनजेन ने कहा और लड़की को अपनी बाँहों में उठाकर सड़क के दूसरी और पहुँचा दिया।
दोनों साधक फिर अपनी यात्रा पर चल दिए। वे रात भर चलते रहे पर एकीदो ने तनजेन से कोई भी बात नहीं की। बहुत समय बीत जाने पर एकीदो खुद को रोक नहीं पाया और तनजेन से बोला - "हम साधकों को महिलाओं के पास भी जाना तक मना है, बहुत सुंदर और कम उम्र लड़कियों को तो देखना भी पाप है। तुमने उस लड़की को अपनी बाँहों में उठाते समय कुछ भी नहीं सोचा क्या?"

तनजेन ने कहा - ''मैंने तो लड़की को उठाकर तभी सड़क के पार छोड़ दिया, तुम उसे अभी तक क्यों उठाए हुए हो?"

और अंत में स्वर्ग कहानी पढ़िए-

एक बार दो यात्री मरूस्थल में खो गए। भूख और प्यास के मारे उनकी जान निकली जा रही थी। एक स्थान पर उनको एक ऊँची दीवार दिखी। दीवार के पीछे उन्हें पानी के बहने और चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। दीवार के ऊपर पेड़ों की डालियाँ झूल रही थीं। डालियों पर पके मीठे फल लगे थे।
उनमें से एक किसी तरह दीवार के ऊपर चढ़ गया और दूसरी तरफ कूदकर गायब हो गया। दूसरा यात्री मरूस्थल की और लौट चला ताकि दूसरे भटके हुए यात्रियों को उस जगह तक ला सके।

है न जीवन के मकसद की, जीवन की राह की, जीवन के दर्शन और जीवन के राग की मार्मिक कहानियाँ। इससे बड़ा सत्य हमें और कहाँ मिलेगा?

इन्हें पढ़िए और असल खजाना पा जाइए। ये रहा उसका पता-

http://zen-katha.blogspot.com

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