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काला धन : दिवास्वप्न है कालेधन की भारत वापसी

हमें फॉलो करें काला धन : दिवास्वप्न है कालेधन की भारत वापसी

राम यादव

, सोमवार, 26 नवंबर 2012 (15:56 IST)
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भारत में इन दिनों सत्ता-भोगियों से लेकर सत्ता के भूखों तक, अदने से लेकर बिरले तक हर कोई गुहार लगा रहा है कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन स्वदेश लाया जाए। यह धन यदि देश को मिल जाए, तो उसके सारे कर्ज़ और फ़र्ज़ चुकता हो जाएंगे। देश लहलहा उठेगा।

लेकिन कितना दम है इस माँग में? कितनी सच्चाई है इस गुहार में? नेता, समाज सुधारक और तमाम 'जागरुक' लोग कहीं हमें दिवास्वप्न तो नहीं दिखा रहे हैं?

'कालाधन वापसी' के इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रस्तुत है वेबदुनिया से जुड़े, जर्मनी में रहने वाले अनुभवी वरिष्ठ हिन्दी लेखक राम यादव के विचारोत्तेजक और तथ्यपरक लेखों की पहली कड़ी। लेख में विदेशों में कालेधन वापसी की प्रक्रिया तथा भारत में काला धन वापस लाने की जटिलताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। सुधी पाठकों से अनुरोध है कि इस मुद्दे पर अपनी राय अवश्य दें...

भारतवासियों का कितना धन स्विस बैंकों में है, इस बारे में खूब हवामहल बनाए जा रहे हैं। सबसे अतिरंजित अनुमान है कि यह धनराशि "1.4 ट्रिलियन" यानी 10 खरब 40 अरब डॉलर के बराबर है। बाबा रामदेव की यही तोता रटंत है। दूसरा अनुमान सीबीआई का है कि वह 5 खरब डॉलर के बराबर है। स्विस बैंकर्स एसोसिएशन और वहाँ की सरकार के अनुसार सभी अनुमान सरासर ग़लत हैं।

उनका कहना है कि सभी स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों की कुल जमापूँजी लगभग केवल "दो अरब" डॉलर के बराबर है-- 10 खरब 40 अरब का केवल 700 वाँ हिस्सा!

क्या है असलियत
अनुमान है कि यह धनराशि "1.4 ट्रिलियन" यानी 10 खरब 40 अरब डॉलर के बराबर है। बाबा रामदेव की यही तोता रटंत है। दूसरा अनुमान सीबीआई का है कि वह 5 खरब डॉलर के बराबर है। स्विस बैंकर्स एसोसिएशन और वहाँ की सरकार के अनुसार सभी अनुमान सरासर ग़लत हैं।
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स्विट्ज़रलैंड में करचोरी दंडनीय अपराध नहीं है। कर नहीं देने को भूल-चूक बताया जा सकता है। दंडनीय अपराध है कर बचाने के लिए जानबूझ कर थोखाधड़ी और जालसाज़ी। तब भी भारत सरकार स्विस सरकार को यदि किसी या किन्हीं लोगों के बारे में ठोस सूचना दे कि उनके बैंक-खाते में ऐसा काला धन है, जिस पर उन्होंने भारत में कोई कर नहीं दिया है, तो स्विस सरकार उसके आधार पर अपने बैंकों से मामले की छानबीन करने के लिए कह सकती है।

भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच दोहरे कराधान को टालने का समझौता इसकी संभावना देता है। भारत की शिकायत यदि सही पाई गई, तो वह संबद्ध खातों में जमा राशि के ब्याज पर कर पाने की आशा तो कर सकता है, किंतु हर खाते में जमा मूल धनराशि उसके हाथ फिरभी नहीं लग सकती। वह मिल सकती है केवल उसके मालिक को।

इसी समझौते के आधार पर भारत को 2011 में 782 ऐसे भारतीय नागरिकों के नाम बताए गए, जिनके HSBC बैंक मे खाते थे। स्विस बैंक आम तौर पर किसी खातेदार के बारे में कोई जानकारी नहीं देते। जानकारी तभी देते हैं, जब कोई स्विस अदालत ऐसा करने के लिए कहे। दिलचस्प बात यह रही कि स्वयं भारतीय वित्तमंत्रालय ने यह कह कर भारत में ये सारे नाम प्रकाशित करने से मना कर दिया कि यह व्यक्तिनिष्ठ सूचना की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन होगा।

शाबाशी मिली, जेल पहुँचे : ग्राहक संबंधी जानकारियों के बारे में परम गोपनीयता और विदेशी ग्रहकों के मामले में जमा धन से होने वाली आय का करमुक्त होना ही दुनिया भर का काला व सफ़ेद धन आकर्षित करने में स्विस बैकों की भारी सफलता का मूलमंत्र है। अमेरिका के 47 वर्षीय ब्रैडली बिर्कनफ़ेल्ड ने भी इस गोपनीयता की शपथ ली थी। वह स्विस बैंक यूएसबी की एक अमेरिकी शाखा में बैंकर था। अब, गत जनवरी से, जेल में है। वह एक ऐसे "अपराध" का दोषी है, जिसके लिए अमेरिका के आयकर विभाग से उसे एक करोड़ 40 लाख डॉलर के इनाम के साथ शाबाशी मिली थी!

विडंबना यह रही कि कर विभाग से जिस बात के लिए शाबाशी मिली, न्याय विभाग ने उसी को बैंक के साथ "धोखाधड़ी" बता कर 40 महीने जेल की सज़ा सुना दी। गत मई में स्विस इंटरनेट पोर्टल "स्विसइन्फ़ो" के साथ एक इंटरव्यू में बिर्कनफ़ेल्ड ने कहा, "मैं इसलिए जेल में हूँ, क्योंकि न्याय विभाग को अपना चेहरा बचाना था। मैं उसके लिए एक ऐसा "व्हिसलब्लोवर "(सीटी बजाने वाला) बलि का बकरा था, जिसने अमेरिकी इतिहास के कर-धोखाधड़ी के सबसे बड़े कांड का भंडा फोड़ कर एक ऐसा काम कर दिया था, जिसे न्याय विभाग या तो करना नहीं चाहता था या कर नहीं सकता था।"

बैंकों में भेदिये : "व्हिसलब्लोवर " को भारत में हम जयचंद कहेंगे। स्विस बैंक यूबीएस के लिए काम करते हुए बिर्कनफ़ेल्ड 2007 में अमेरिकी कर विभाग 'आईआरएस' का भेदिया बन गया। उसने कर विभाग को गोपनीय जानकारियाँ और ऐसे दस्तावेज दिये, जिनसे पता चलता है कि यूबीएस बैंक बड़े पैमाने पर करचोरी करने में अपने अमेरिकी ग्राहकों को दशकों से मदद दे रहा था।

जानकारियाँ सही निकलीं। यूबीएस बैंक के हाथ-पैर फूलने लगे कि अब तो उस पर अरबों डॉलर का मुदमा चलेगा। अतः उसने पहले ही 78 करोड़ डॉलर दे कर अमेरिकी राजस्व विभाग से सौदा पटाया और अपनी गर्दन बचाई। यह वादा भी किया कि वह स्विट्ज़रलैंड में स्थित अपनी शाखाओं के साढ़े चार हज़ार से अधिक अमेरिकी खातेदारों के नाम भी अधिकारियों को बताएगा।

अमेरिकी सरकार ने भी एक क्षमादान कार्यक्रम की घोषणा की कि विदेशों में गुप्त बैंक खातों वाले जो अमेरिकी नागरिक अपनी आय की स्वेच्छा से घोषणा कर देंगे, उनके साथ नरमी बरती जाएगी। अब तक लगभग 14 हज़ार अमेरिकी नागरिकों ने इस क्षमादान का लाभ उठाते हुए 5 अरब डॉलर कर या जुर्माने के तौर पर अदा किये हैं।

लेकिन बिर्कनफ़ेल्ड इस कथित सफलता की खिल्ली उड़ाता है। "स्विसइन्फ़ो" के साथ अपने इंरव्यू में उसने कहा, "अकेले यूसबी बैंक के 19 हज़ार ऐसे ग्राहक हैं, जो हर साल 20 अरब डॉलर की कर चोरी कर रहे हैं।... फ़रवरी 2009 से अमेरिकी न्याय विभाग ने केवल 14 मामलों की छावबीन की है। इस गति से तो उन साढ़े चार हज़ार मामलों को जजों के सामने लाने में 400 साल लग जाएंगे, जिनके बारे में स्विस सरकार ने जानकारियाँ दी हैं।"

खोदा पहाड़, निकली चुहिया : विदेशी बैंकों में अपने जयचंद बनाने का "व्हिसलब्लोवर " कार्यक्रम अमेरिका में 2006 से चल रहा है। 6 साल की कसरत के बाद केवल 5 अरब डॉलर मिलना खोदा पहाड़, निकली चुहिया से अधिक नहीं कहा जा सकता। तब तो और भी नहीं, जब यह मालूम हो कि अपने नागरिकों के विदेशी खातों के अकेले ब्याज को ही लेकर अमेरिका को हर साल कम से कम 100 अरब डॉलर कर-राजस्व की चपत लग रही है। ब्याज देने वाली मूल धनराशि तो उसे भी मिलने से रही।

प्रश्न यह है कि जिस स्विट्ज़रलैंड का अमेरिका तक बाल बाँका नहीं कर पाता, क्या वह भारत के सामने घुटने टेकेगा? यदि स्विस सरकार कालेधन के भूखे भारत पर दया कर उसे सारी जनकारियाँ परोस भी दे, जो वह कभी नहीं करेगी, तब भी क्या भारत के सभी कार्यालय और न्यायालय अमेरिका की अपेक्षा अधिक तेज़ी और चुस्ती से सारे मामले निपटा पाएंगे?

यही नहीं, अमेरिका की तरह भारत को भी अपने नागरिकों के सारे स्विस खातों का न तो अब भी अता-पता है और न यही मालूम है कि कितने लोगों ने विदेशी बैंकों में कितना धन छिपा रखा है? यह भी नहीं भूल जाना चाहिये कि हम जिन खातेदारों को भारतीय नागरिक माने बैठे हैं, उनमें से कई इस बीच किसी और देश के नागरिक बन गए हो सकते हैं या उनके पास दोहरी नागरिकता हो सकती है। स्वयं भारत ने भी ऐसे कई अनिवासी भारतीयों को फिरसे भारतीय नागरिकता दी है, जो साथ ही अपने निवास देश के नागरिक हैं।

तो क्या है स्विट्ज़रलैंड के बैंकों का राज, जानिए अगली कड़ी में


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