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धृतराष्ट्र और गांधारी

हमें फॉलो करें धृतराष्ट्र और गांधारी
-मधुसूदन आनंद

जो लोग यह समझते हैं कि "महाभारत" की एक अमर पात्र गांधारी ने अपने अंधे पति धृतराष्ट्र के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली थी, वे शायद स्त्री मनोविज्ञान को पूरी तरह नहीं समझते। गांधारी के साथ छल हुआ था।

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उसे बताया नहीं गया था कि उसका पति अंधा है। वे गांधार की राजकुमारी थीं और उनके साथ उनका भाई शकुनि और आयु में बड़ी उनकी एक सखी भी हस्तिनापुर आई थीं। यह सखी उसे हस्तिनापुर साम्राज्य के वैभव के बारे में बताती है और गांधारी अवाक्‌ रह जाती है। तभी उसकी सखी महल देखने के बाद आकर कहती है-तुम्हारे साथ धोखा हुआ है। हमारे साथ धोखा हुआ है। तुम्हारा पति तो पैदा ही अंधा हुआ था।

एक क्षण को गांधारी को कुछ भी समझ में नहीं आता। दूसरे ही क्षण वह जमीन पर गिरकर बेहोश हो जाती है। फिर वह जीवन भर के लिए अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लेती है। यह उसका क्रोध है। प्रतिकार है। उसके द्वारा अपने पति को दी गई सजा है।

हस्तिनापुर के सामने गांधार कुछ भी नहीं था। ऐसे में एक स्त्री अपना गुस्सा और किस तरह व्यक्त करती और उसका भाई इसका बदला लेने के लिए वहीं क्यों नहीं रुक जाता-अपनी बहन के साथ हुए षड्यंत्र के खिलाफ कुरु वंश का नामोनिशान मिटाने के लिए आजीवन षड्यंत्र के निमित्त!

महाभारत हो चुका है। धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती और विदुर वन में आकर रहने लगे हैं। गांधारी ठंडी आहें भर रही हैं। धृतराष्ट्र कहता है-अब ठंडी आहें भरने से क्या फायदा? हमारा जीवन वैसा ही है जो दो अंधों का हो सकता है।

गांधारी कहती हैं : मैं अपने दुःख में आहें नहीं भर रही हूँ। जब से हम यहाँ आए हैं ये पहाड़, ये पाँवों के नीचे फैली घास की नोकें, ये देवदार के वृक्षों की महक, यह बहती समीर, नदी का लगातार कलकल करना, मुझे गांधार की याद दिला रहा है और बिना इस सबको पहचाने मेरी आह निकल गई।

धृतराष्ट्र कहता है :गांधारी, एक अंधे के साथ विवाह करने की वजह से तुम्हारा जीवन बर्बाद हो गया। सारी जिंदगी तुम अपने पिता के घर की लालसा करती रहीं।

गांधारी कहती हैं कि जिस दिन मेरा विवाह हुआ, उसी दिन से मैंने अपने पिता के घर के बारे में आने वाले विचारों को दबाना शुरू कर दिया। मैंने एक साथ रहते हुए कभी शकुनि से भी बात नहीं की। आज मुझे गांधार की ऐसे ही याद आ गई, वहाँ के लोगों की नहीं।

थोड़ी देर को मौन फैल जाता है। फिर धृतराष्ट्र कहता हैः "तुम्हारे साथ धोखा हुआ। मेरे बारे में बताए बिना तुम्हारी शादी कर दी गई। हमने तुम्हारे साथ हजारों गलतियाँ कीं। क्या तुम उन्हें भुला दोगी और हमें माफ करोगी?"

फिर वे थोड़ा उत्तेजित होकर कहते हैं : गांधारी तुमने वास्तव में मुझे बहुत दंड दिया है। जब तुम आँखों पर पट्टी बाँधकर विवाह के लिए मंडप में खड़ी हुईं, तब मैंने इस बात का अहसास नहीं किया।

मैंने सोचा मैं अपने प्रेम से तुम्हारा क्रोध दूर कर दूँगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। जब तुम पहली रात को आँखों पर पट्टी बाँधे और किसी का हाथ थामे आ रही थीं तब तुम्हारे पाँव लड़खड़ा रहे थे। तुम्हें ऐसे चलने की आदत जो नहीं थी। तुम्हारा शरीर अंधेपन का आदी नहीं था। कैसी भयानक रात थी वह! मुझे समझ में नहीं आता, मैंने तभी तुम्हारी हत्या क्यों नहीं कर दी।

गांधारी कुढ़कर जवाब देती हैं : "काश तुम मुझे मार देते आर्यपुत्र! हम दोनों को यह दिन तो न देखना पड़ता।"

जनता के प्रतिनिधि दोनों हाथों से लूट रहे हैं। साल-डेढ़ साल के भीतर चार-चार हजार करोड़ रुपए तक की अंधी लूट करके हवाला के जरिए कहीं पैसा देश से बाहर भेजा जा रहा है तो कहीं थैली के बल पर चुनी हुई सरकार को गिराने का षड्यंत्र चल रहा है।
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धृतराष्ट्र :ऐसा न कहो गांधारी। हम कुरु लोग चाहे कितने ही कमजोर क्यों न हो गए हों, हम हैं तो क्षत्रिय ही। हम औरतों को मारकर अपनी मर्दानगी नहीं दिखाते। मैं राजा था और तुम्हारी आँखों पर से जबरदस्ती पट्टी हटवा सकता था पर मैंने सोचा बल की बजाय तुम अपने आप अपनी पट्टी हटाओ। मैं तुम्हें इसके लिए मना लूँ मगर यह तो अंततः स्थायी हो गई। जब बच्चे पैदा हुए तो मैंने सोचा मेरी खातिर न सही बच्चों को देखने की खातिर तुम पट्टी हटा लोगी। बाद में मैं भी कठोर हो गया और मुझे इसमें बदला लेने का सा-मजा आने लगा।

महाभारत के पात्रों को लेकर लिखी गई इरावती कर्वे की प्रसिद्ध पुस्तक "युगांत" के "गांधारी" नामक अध्याय के आधार पर लिखा गया यह दृश्य आज के हमारे भारत की कहानी कह रहा है। राजा अंधा है और जनता ने अपनी आँखों पर खुद पट्टी बाँध ली है।

जनता के प्रतिनिधि दोनों हाथों से लूट रहे हैं। साल-डेढ़ साल के भीतर चार-चार हजार करोड़ रुपए तक की अंधी लूट करके हवाला के जरिए कहीं पैसा देश से बाहर भेजा जा रहा है तो कहीं थैली के बल पर चुनी हुई सरकार को गिराने का षड्यंत्र चल रहा है।

निर्वाचित प्रतिनिधियों की निष्ठाएँ खरीदी जा रही हैं और मुख्यमंत्री को शर्तें मानने के लिए मजबूर किया जा रहा है। कर्नाटक में बाढ़ से भारी नुकसान हुआ है, लोग बेघरबार हो गए हैं, दाने-दाने को मोहताज हैं लेकिन जनप्रतिनिधि दिल्ली के बड़े-बड़े होटलों में बैठकर लूट में हिस्सेदारी के लिए सौदेबाजी कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में मलाईदार पद हासिल करने के लिए घमासान चलता रहा है। गवर्नेंस नामक चीज खत्म हो गई है। देश भर में अराजकता फैल रही है। लोग गरीबी में और असुरक्षा में जी रहे हैं। एक अजब आपाधापी है, लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है। सबसे दुःखद बात यह है कि सिविल सोसायटी ने भी गांधारी की तरह आँखों पर पट्टी बाँध ली है।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यदि सिविल सोसायटी भी आँखों पर पट्टी बाँध लेगी तो तमाम धृतराष्ट्रों और उनके पुत्रों को और भी लूटने का मौका मिलेगा। उन्होंने कुशलता से नियमों-कानूनों में छेद ढूँढ लिए हैं और उन छेदों के बीच से अपने साम्राज्यों के लिए रास्ते ढूँढ लिए हैं।

गरीबी और बेरोजगारी के कारण जनता को यह सब देखने का अवसर हो भी, तो उसके पास समय नहीं है जबकि सिविल सोसायटी संभवतः परिवार से आगे आकर कुछ भी नहीं देखना चाहती। ऐसे में एक नए महाभारत का रास्ता खुलने लगे तो कोई आश्चर्य भी नहीं। (नईदुनिया)

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