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बहुत याद आएँगी 'दीदी'

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- नीलमेघ चतुर्वेद

अखिल भारतीय रचनात्मक समाज और अखिभारतीय हरिजन सेवक संघ की अध्यक्ष सुश्री निर्मला देशपांडे के देहावसान का समाचार सुन वे सभी स्तब्ध हैं, जो इन आंदोलनों से जुड़े हैं। अपने प्रशंसकों और सहयोगियों में 'दीदी' के नाम से परिचित निर्मलाजी की सबसे बड़ी विशेषता तमाम शक्ति केंद्रों के अति निकट रहने के बावजूद सहज बने रहने की थी।

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कार्यकर्ता प्रभावशाली हो या सामान्य, दीदी उन्हें नाम से जानती थीं, पुकारती थीं। आमजन दीदी के इसी गुण के कारण उनसे जुड़ा रहता था। आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय सहभागिता निभाने के बाद वे और प्रकाश में आईं। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्वकाल में जब इंदिराजी गिरफ्तार हुईं तो वे साये की तरह साथ बनी रहीं।

वैचारिक समानता ने उन्हें इंदिराजी के काफी निकट ला दिया था। इसके बाद अस्सी के दशक में दीदी ने अखिल भारतीय स्तर की दो संस्थाएँ खड़ी कीं। ये थीं अखिल भारतीय रचनात्मक समाज और फ्रेंड्स ऑफ सोवियत यूनियन। इन पंक्तियों के लेखक के पिता महेश चतुर्वेदी (अब स्वर्गीय) निर्मलाजी से निकटता के चलते इन दोनों संस्थाओं के मप्र के कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत किए गए थे।

जब भी वर्धा के पवनार आश्रम और नई दिल्ली में गाँधी समाधि पर सम्मेलन होते, शैक्षणिक अवकाश के दौरान पिताजी के साथ-साथ यह लेखक भी ज्ञानवर्द्धन के लिए ऐसे कार्यक्रमों में पहुँच जाया करता था। उस दौरान दीदी की कार्यकर्ता और कार्यक्रम प्रबंधन क्षमता को काफी निकट से देखने का अवसर मिला।

घंटों अथक मेहनत करना उनकी आदत में शुमार था। मालवा-निमाड़ से दीदी का काफी निकट का संपर्क रहा है। वे पत्रकार भी थीं। सर्वोदय आंदोलन की 'सर्वोदय साधना' इंदौर से और रचनात्मक कार्यकर्ता समाज की पत्रिका 'नित्य नूतन' नई दिल्ली के किंग्सवे केम्प से उनके प्रधान संपादकत्व में निकलती थीं।

मप्र हरिजन सेवक संघ, इंदौर और खादी आंदोलन से भी दीदी का काफी जुड़ाव था। उज्जैन के कृष्णमंगलसिंह कुलश्रेष्ठ तथा श्रीमती राजकुमारी सिसौदिया दीदी के निकट संपर्क में रहे हैं। उनके अचानक चले जाने से क्या रचनात्मक, तो क्या सर्वोदय, अंत्योदय और क्या खादी आंदोलन, सभी से जुड़े लोग स्वयं को अकेला-सा अनुभव कर रहे होंगे।

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