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रोको इस आग को...

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संदीपसिंह सिसोदिया

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने एक बार फिर 'माझी भूमिका माझा लडाह' (मेरा संकल्प, मेरा संघर्ष) का नारा लगाते हुए महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा को जायज ठहराते हुए इसे उपयुक्त और हिंसक प्रतिक्रिया करार दिया। उनका कहना है कि छठ पूजा जैसी चीजें उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों द्वारा मराठी संस्कृति को नुकसान पहुँचाने के लिए और अपनी ताकत जताने के लिए की जाती हैं। मैं इस तरह की दादागिरी बर्दाश्त नहीं कर सकता तथा यदि उनके द्वारा मराठी संस्कृति को बिगाड़ने का कोई प्रयास किया गया तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा।

हाशिए पर पडी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जिसे अभी तक एक राजनीतिक पार्टी की हैसियत नहीं मिली है, जिसे महज एक एनजीओ माना जा सकता है, ने अपने आका के इस बयान पर त्वरित कार्रवाई करते हुए सीधे तौर पर उत्तर भारतीयों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, बेचारे गरीब रेहड़ी वाले, खोमचे वाले, टैक्सी चालक और लघु उद्योगों से जुड़े लोग इनके सीधे निशाने पर हैं।

राज ठाकरे का कहना है कि यदि प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह भारत की यात्रा पर आए फ्रांसीसी राष्ट्रपति के समक्ष फ्रांस में रह रहे सिखों के पगड़ी पहनने पर प्रतिबंध का मुद्दा रख सकते हैं, करुणानिधि मलेशियाई सरकार से मलेशिया में रह रहे तमिलों की समस्याओं को लेकर बातचीत कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं बोल सकता हूँ?

तो श्रीमान राज ठाकरे अगर महाराष्ट्र की तुलना आप 'मलेशिया और फ्रांस' से करते हैं तो शायद आप महाराष्ट्र को भारत का अभिन्न अंग नही मानते, जो की सीधे तौर पर आपकी अलगाववादी विचारधारा का संकेत करता है। इस कार्रवाई की तुलना हम 80 के दशक में आतंकवादियों के डर से काश्मीर घाटी से हुए पंडितों के पलायन या फिर असम में आए दिन होते हिन्दी भाषी मजदूरों के कत्लेआम जैसी घटनाओं से कर सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि वहाँ बन्दूकें हैं और यहाँ लात-घूँसे और गालियाँ, पर इस बात का क्या भरोसा कि कार्यकर्ता किसी हिंसक कार्रवाई को अंजाम नही देंगे। क्या गारंटी है कि आज खाली बसें फूँकने वाले कल किसी भरी बस में आग नहीं लगाएँगे?

राज ठाकरे को 'बर्ड फ्लू से ग्रस्त सहमा हुआ चूजा' कहने वाले बाला साहेब ठाकरे भी इस समस्या को रोक नहीं पाए या उन्होंने अभी तक वो 'हुँकार' नहीं भरी जिसे सुनते ही हजारों शिवसैनिक सड़कों पर उतर आते थे। अगर बाला साहेब ठाकरे एक बार इस अन्याय को रोकने को सिर्फ बोल भर दें तो पूरे महाराष्ट्र मे किसी की ताकत नही की उत्तर भारतीयों की तरफ आँख भी उठा कर देखे।

मगर ऐसा होगा नहीं, क्योंकि उद्धव ठाकरे का हाल का बयान राज ठाकरे की करतूतों को समर्थन देता हुआ ही प्रतीत होता है। उल्लेखनीय है कि उद्धव में हाल ही में कहा था कि मुंबई में हवाई अड्‍डे के निर्माण के लिए आने वाले बाहरी मजदूरों को 'पार्सल' बनाकर वापस कर दिया जाएगा।

आज केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार में इतना भी दम नहीं दिखता कि इस बढ़ते दावानल को रोक लें क्योंकि एक बार यह आग भड़कनी शुरू हुई तो इसे रोक पाना मुश्किल होगा। लालू यादव की समझाइश पर बिहार से गुजरती महाराष्ट्र की ट्रेनों के मुसाफिरों को अभी गाँधीगिरी दिखाते हुए बिहार के स्टेशनों पर अभी गुलाब के फूल दिए जा रहे हैं पर अगर कुछ बड़ी घटना होती है तो यही फूल गोलियों में बदलते देर नहीं लगेगी।

आज हमारी सरकार ने उल्फा, बब्बर खालसा या हरकत उल मुजाहिदीन जैसे आतंकी गुटों को प्रतिबंधित कर रखा है पर पिछले 15 साल का इतिहास देखें तो इन गुटों की शुरुआत भी ऐसी ही घटनाओं से हुई थी। शुरू में तो इनकी हरकतों को छोटी-मोटी घटना या स्थानीय निवासियों की प्रतिक्रिया मानकर ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई मगर आज नतीजा सामने हैं। भारत में क्षेत्रवाद काफी हद तक केन्द्र सरकार पर हावी हो गया है। वोटबैंक को खो देने के डर से सभी नेता-मंत्री चुप्पी साधे तमाशा देख रहे हैं।

एमएनएस भी इस बात को बखूबी समझती है इसीलिए पहले ही उन्होंने प्रोएक्टिव होकर राज ठाकरे की गिरफ्तारी की आशंका मात्र से ही हंगामा बरपा दिया। अरे, विरोध करने के और भी तरीके हैं। अपनी माँगें शांतिपूर्ण ढंग से रखिए, अगर किसी समुदाय से कोई परेशानी है तो बैठकर बातचीत से मामला सुलझाइए, शांतिपूर्वक बहिष्कार करिए। हमारे राष्ट्रपिता ने विश्व का सबसे प्रभावशाली तरीका हमें सिखाया है उस पर अमल कर 'सत्याग्रह' कीजिए पर कम से कम अपने देश मे अपने देशवासियों पर अत्याचार तो मत कीजिए।

अगर ऐसी ही धारणा पुलिस या फौज भी बना ले तो क्या होगा? मान लीजिए कि पंजाब रेजिमेंट बोल दे कि हम तो साहब सिर्फ पंजाब की ही रक्षा करेंगे या राजपूताना राइफल्स का कमांडिंग अफसर अपनी बटालियन को सिर्फ राजस्थान की रक्षा करने का निर्देश दे दे और इसी तरह अन्य बटालियन भी अपने-अपने क्षेत्र विशेष के हित मे आ जाएँ तो न तो महाराष्ट्र बचेगा न राजस्थान और न ही दिल्ली। सब कुछ खत्म हो जाएगा।

मेरा हमेशा से मानना है कि कोई भी राष्ट्र 'मैं' से नहीं बनता उसे 'हम' बनाते हैं। 'मैं' सिर्फ अंहकार लाता है। गणतंत्र की आत्मा किसी एक प्रदेश या समुदाय से नहीं बनती सभी गण, धर्म, समुदाय और प्रदेश मिलकर उसे सम्पूर्ण बनाते हैं।

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