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सपने अधूरे छोड़ गए महर्षि

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रायपुर , गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008 (15:29 IST)
- अनुज सक्सेन

महर्षि महेश योगी का अपने जन्मस्थली गाँव पाण्डुका के विकास का सपना अधूरा रह गया। गाँव में अच्छा स्कूल, अस्पताल और आयुर्वेद विद्यापीठ बनाने की उनकी योजना थी। स्कूल और अस्पताल की तो नींव भी नहीं रखी जा सकी, लेकिन विद्यापीठ का सपना पूरा होने को है।

राजधानी से करीब 75 किमी दूर गरियाबंद रोड पर स्थित ग्राम पाण्डुका के एक कच्चे मकान में 12 जनवरी 1917 को महर्षि महेश योगी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम महेश वर्मा था। हालाँकि महर्षि बचपन में ही वहाँ से जबलपुर चले गए थे। गाँव के लोगों को आयुर्वेद, ध्यान और अध्यात्म की शिक्षा देने के उद्देश्य से उन्होंने महर्षि आश्रम की स्थापना की।

कच्चे मकानों में चलने वाले आश्रम को पिछले साल ही पक्के भवन मिले हैं। करीब 50 एकड़ जमीन में फैले आश्रम में आयुर्वेद विद्यापीठ जल्द ही शुरू हो जाएगी। इसके लिए ध्यान साधना केंद्र के लिए एक हाल और यज्ञ मंडप के लिए छः खंडों में भवन बन चुके हैं। मंदिर व कुछ कमरे और बनने बाकी हैं। व्यवस्थापक अतुल श्रीवास्तव ने बताया कि महर्षि गाँव के सुनियोजित विकास के लिए प्रयासरत थे।

बुधवार सुबह जब नीदरलैंड में महर्षि की मृत्यु की सूचना मिली तो आश्रम में माहौल शोकाकुल हो गया। 11 फरवरी को प्रयाग इलाहाबाद में महर्षि महेश योगी का अंतिम संस्कार किया जाएगा, तब तक रोजाना गीता का पाठ किया जाएगा।

जबलपुर में हुई शिक्ष
महर्षि महेश योगी के पिता रेवेन्यू विभाग में आरआई थे। महर्षि जब छोटे थे, तभी उनके पिता का तबादला पाण्डुका से गाडरवाड़ा जबलपुर हो गया था। वहीं महर्षि ने शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उनका झुकाव वेदों, योग और अध्यात्म की ओर हो गया। उन्होंने वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर इनका प्रचार-प्रसार किया।

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