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सुरों के चमत्कार से होगा नूतन वर्ष का आगाज

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- सुरेश गावड़
इंदौर। यहाँ अखिल भारतीय संगीत सम्मेलनों और देश के मूर्धन्य कलाकारों के खुले अर्थात निःशुल्क गायन-वादन के वार्षिक कार्यक्रमों की शुरुआत का श्रेय है स्व. बाबूलाल मालू को। पहला संगीत सम्मेलन सन्‌ 1953 में राज टॉकीज में हुआ था।

स्व. मालूजी की अगुवाई में अभिनव कला समाज के संगीत सम्मेलन सन्‌ 56 के बाद गाँधी हॉल प्रांगण में होने लगे। प्रांगण तो खचाखच भर ही जाता था, शास्त्री ब्रिज पर खड़े होकर हजारों की तादाद में लोग इन कार्यक्रमों को सुना करते थे। ऐसे जलसों में पं. ओंकारनाथ ठाकुर, पं. रविशंकर, उस्ताद बिसमिल्लाह खान आदि के कार्यक्रम अविस्मरणीय बने हुए हैं।

समय बीता और अभिनव कला समाज की गतिविधियाँ सिमटने के साथ एक कचोटने वाली रिक्तता पैदा हुई, जिसे 90 के दशक के बाद सानंद न्यास ने आश्चर्यजनक रूप से सफलतापूर्वक अब भर दिया है।

न्यास प्रतिमाह अपने सदस्यों के लिए मराठी नाटकों का मंचन तो करता ही है, पर समय-समय पर अपने 'फुलोरा' उपक्रम के माध्यम से गायन-वादन-कीर्तन के निःशुल्क कार्यक्रम भी करता रहता है। सन्‌ 94 से पिछले वर्ष तक फुलोरा में 14 विशिष्ट कार्यक्रम सानंद कर चुका है।

इस बार सानंद के 'फुलोरा' उपक्रम और इन्दूर परस्पर सहकारी बैंक ने संयुक्त रूप से नूतन वर्ष (संवत्‌) के आगाज का निश्चय किया है मल्हाराश्रम, रामबाग के मैदान पर 6 अप्रैल को संगीत मार्तण्ड, पद्मविभूषण पंडित जसराज के सुरीले गायन से।

वर्ष प्रतिपदा के पावन प्रसंग पर शाम सात बजे से पं. जसराज की सुरीली आवाज की महक का रसास्वादन करने का यह अवसर इंदौर की कलाप्रेमी जनता को मिल रहा है। सन्‌ 1809 में स्थापित इन्दूर परस्पर बैंक का यह शतकीय वर्ष है।

सानंद न्यास का हमजोली बन पं. जसराजजी के गायन का भव्य दिव्य खुला कार्यक्रम आयोजित कर बैंक ने अन्य संस्थाओं के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत किया है। यह इंदौर व प्रदेश के सांस्कृतिक जगत के लिए एक शुभशकुन ही है। इस महफिल में पं. जसराज हिन्दी-मराठी भक्ति संगीत प्रस्तुत करेंगे।

शास्त्रीय संगीत गायकों में शीर्ष स्थान पर विराजमान पंडित जसराज को अनेकानेक प्रशंसक 'रसराज' भी कहते हैं। मेवाती घराने के इस श्रेष्ठ व वरिष्ठ गायक ने अपने पिताजी पं. मोतीरामजी के सानिध्य में गायकी प्रारंभिक पाठ सीखे। उसके बाद तालीम बड़े भाई महामहोपाध्याय पं. मणिरामजी से प्राप्त की।

पं. जसराज को मधुर-धारदार आवाज का दैवी वरदान है। तीनों सप्तकों में उनकी आवाज अत्यंत सरलता से विचरण कर श्रोताओं को अनन्य अनुभूति कराती है। संस्कृत श्लोक उनके मुख से ऐसे प्रवाहित होते हैं मानो कोई विद्वान उन्हें सुरों से आन्दोलित कर रहा हो। पद्म, पद्मभूषण, पद्मविभूषण सहित करीब तीस अलंकारों से अलंकृत पंडितजी के खुद के नाम से भी कई अलंकार स्थापित किए जा चुके हैं।

उत्तरी अमेरिका में उनकी गायकी के सम्मान में सात संस्थाएँ कार्यरत हैं। टोरंटो विश्वविद्यालय ने उनके सम्मान में शिष्यवृत्ति का एक पीठ भी स्थापित किया है। ऐसी महती ख्याति व सफलता वाला भारतीय शास्त्रीय संगीत साधक दूसरा कोई नहीं।

उल्लेखनीय है कि टेबल टेनिस के अंतरराष्ट्रीय अम्पायर व इंदौर जिले के खनन अधिकारी दिलीप मुंगी उनके निकटतम शिष्यों में एक हैं। फुलोरा यानी महकते फूलों का पुष्पगुच्छ, ऐसा बहुप्रतीक्षित नायाब तोहफा पं. जसराज का गायन' मिल रहा है अब इंदौर के सुधी रसिक श्रोताओं को। (नईदुनिया)

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