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स्पंदन से निकलते बेहतर जिंदगी के अर्थ

बच्चों की सेहत पर आधारित स्पंदन ब्लॉग की चर्चा

हमें फॉलो करें स्पंदन से निकलते बेहतर जिंदगी के अर्थ

रवींद्र व्यास

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लोगों को जागरूक करने के तरीके कई बार निहायत ही बोरिंग होते हैं। यही कारण है कि जागरूक करने की कोशिशें कामयाब नहीं होती और समय और ऊर्जा दोनों नष्ट हो जाते हैं। यदि जागरूक करने की बातें दिलचस्प अंदाज में बताई जाएँ तो लोग जल्दी जुड़ जाते हैं। बातें ध्यान से पढ़ी जाती हैं और उसका असर होता है। इस तरह लोगों की जिंदगी पहले से कुछ बेहतर हो जाती है। ज्यादा संवेदनशील और समझदार हो जाती है।

ब्लॉग की दुनिया में ऐसा ही एक ब्लॉग हैं स्पंदन। इसकी ब्लॉगर हैं डॉ. बेजी जैसन। ब्लॉग के नाम से ही जाहिर है कि यह ब्लॉग स्पंदन की बात करता है। जीवन के कई स्पंदनों। और कुछ स्पंदन तो इतने मानीखेज हैं कि इनके बिना किसी भी खूबसूरत जिदंगी की कल्पना करना मुश्किल है। वस्तुतः यह ब्लॉग बच्चों और माँ की सेहत के लिए है। माता-पिता के लिए है। और इस तरह उस दुनिया के लिए भी है जहाँ कुछ सावधानियाँ रखकर, कुछ जानकारी हासिल कर जीवन का सबसे सुंदर राग गाया जा सकता है। यह ब्लॉग सेहत के बारे में बात करता है। बीमारियों के बारे में बात करता है। दुनिया में हो रहे शोध की बात करता है और लोगों को बेहतर लेकिन दिलचस्प ढंग से जागरूक करने की कोशिश करता है।

एक उदाहरण से बात शुरू की जाए। उनकी एक बहुत ही अच्छी पोस्ट है- एक बच्चे के व्यक्तित्व विकास में माता-पिता का योगदान। इस पोस्ट में वे बड़ी मार्मिक बात लिखती हैं। आप इस पर गौर करिए-संगीत में बहुत ताकत होती है। ऐडरेन फ्लेटची. एक स्कॉटिश...कहते हैं- तुम इस देश के नियम लिखो...मैं इस देश का संगीत लिखूँगा..और तुम देखोगे कि इस देश पर मैं राज करूँगा।

लय और ताल पर सुर में कहे गए शब्दों में बहुत ताकत होती है। रूह में शब्द बस जाते हैं। अगर इनमें गलत संदेश है तो वह संदेश आपका लाड़ला लगातार अपने सिस्टम में ढालता जाता है। वहीं सही संदेश लयबद्ध करके सिखाया जाए तो वह भी बच्चे तक पहुँच जाता है। कहने की जरूरत नहीं कि यहाँ संदेश पर उतना जोर नहीं है जितना जोर इस बात पर दिया गया है कि वह संदेश लयबद्ध हो। ऐसा होगा तो संदेश बेकार नहीं जाएगा। वह असर करेगा और अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा।

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इधर आधुनिक जीवन कुछ ऐसा होता जा रहा है कि हम हमारी इच्छाएँ और स्वप्न बच्चों के जरिये पूरा करना चाहते हैं। चाहते हैं कि वह तेज दौड़े और पहला पुरस्कार हासिल करे। हम चाहते हैं वह किसी भी तरह शिखर पर पहुँच जाए। हमारी महत्वाकांक्षाएँ ही बच्चों को कई बार बहुत पीडा़दायी अनुभव देती हैं। बच्चे अपना सहज जीवन जीने के बजाए अवसादग्रसत और तनावग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए बेजी इसमें एक बहुत ही मार्के की बात लिखती हैं। वे कहती हैं - हम अपने बच्चों को बहुत कुछ बनाना चाहते हैं.....काश हम उसे कुछ भी बनाने की जगह....उसे अपने रंग और महक में खुशी-खुशी फलने फूलने दें। उसे एक व्यक्ति बनने दें।

हैं न कितनी मार्मिक बात! कितनी संवेदनशील! यही कारण है कि यह हमारे दिल को छू कर हमें हमारे ही बच्चों के प्रति कुछ ज्यादा संवेदनशील औऱ समझदार बनाती हैं। इस तरह की तमाम बातें इस ब्लॉग पर पढ़ी और महसूस की जा सकती हैं। 'जुकाम की दवा और नुकसान' पोस्ट में वे बेहतर टिप्स देती हैं और आगाह भी करती हैं कि यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने खास इस बात पर जोर दिया है कि दो साल से छोटे बच्चों को ओवर द काउंटर मिलने वाली दवाइयाँ हरगिज नहीं देना चाहिए। इनसे जान तक को खतरा हो सकता है। छह साल से छोटे बच्चों में इनकी उपयोगिता साबित नहीं है। इन्हें लेने पर मृत्यु, फिट्स (कंपकंपी),हृदय की गति तेज होना या अचेत होना रकॉर्ड किया गया है। आम तौर पर यूँ बहुत देखने में ना भी आए तो भी छह साल से छोटे बच्चों में इनसे वाँछित लाभ भी नहीं मिलता।

बच्चे के दूध में मेलामिन पोस्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि मेलामिन बहुत ही घातक सिद्ध हो चुकी है। वे इसमें मेलामिन के बारे में भी बताती हैं और उससे होने वाले रोग के लक्षणों के बारे में भी बताती हैं। वे बच्चों की एक अजब बीमारी ऑटिस्म पर भी बात करती हैं। वे इसके बारे में बताती हैं और लक्षणों की जानकारी भी देती हैं। कुछ आम तौर पर दिखने वाले लक्षण की सूची भी वे देती हैं जो इस प्रकार है।

बोलचाल का कम होना, भाषा से अलग आवाज निकालना, देर से बोलना सीखना, एक ही शब्द, वाक्य बार-बार बोलना, मैं और तुम जैसे सर्वनाम के प्रयोग में गलती करना, मेलमिलाप कम करना और नापसंद करना, आँख ना मिलाना, पूछी बात पर प्रतिक्रिया ना देना, चिड़चिड़ापना, हाथों से विशेष लगाव, हाथ हिलाते रहना, कूदना, गोल घूमना, बैलेंस बनाने की कोशिश करना, ऐड़ी पर चलना, कुछ आवाजों को सख्त नापसंद करना, कुछ कपड़ों, खाने की चीजों को नापसंद करना पैटर्न्स में बात दुहराना, अनिच्छुक रहना, खुद को नुकसान पहुँचाना।

स्तनपान के बारे में वे तमाम जानकारी देती हैं। कहती हैं - कहते हैं भगवान ने माँ को इसलिए बनाया क्योंकि हर जगह हर समय हर शिशु के पास नहीं रह सकता....काश हर शिशु के पास उसका अपना भगवान (उसकी माँ हो) जो उसे ममता से सँभाल, दूध से सींच, स्नेह से छू....उसको उसकी अपनी पहचान दे.....

यह एक बहुत ही उपयोगी ब्लॉग है। इसे पढ़ा जाना चाहिए। पढ़ा ही नहीं, इसमें लिखी बातों को अपनाया भी जाना चाहिए। इस स्पंदन से बेहतर जिंदगी के अर्थ निकलते हैं।

इसका पता है- http://drbejisdesk.blogspot.com

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