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विपश्यना : कैसे छूटी बुरी लत...

- कमलाप्रसाद रावत

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मैं ऐसे मित्रों की संगत में फँस गया था, जिससे मुझे शराब की लत लग गई। शिविर में जाने के लिए मैंने संकल्प तो कर लिया परंतु यह भय हमेशा बना रहता कि किस प्रकार शिविर के नियमों का पालन कर पाऊँगा? इस बुरी लत से छुटकारा पाने का संकल्प लिए दृढ़ रहा कि शिविर में जरूर जाना है। इस संकल्प का ही इतना प्रभाव हुआ कि शिविर के आठ-दस दिन पहले ही पीना छोड़ दिया। मैंने अनुभव किया कि अच्छे काम के लिए यदि अंदर से श्रद्धा जागती है, तो किस प्रकार अदृश्य शक्तियाँ मदद करने लगती हैं।

बड़े उत्साह के साथ शिविर में चला गया। परंतु पहल तीन दिन तक तो ऐसा लगा कि यह साधना-वाधना मुझसे नहीं होगी। दोनों कंधों, कमर और जाँघों में इतनी पीड़ा थी कि एक मिनट भी नहीं बैठ पाता । मैंने भाग निकलने का मूड बना लिया था। परंतु कुछ पुण्य था, जिसने रोक लिया। चौथे दिन विपश्यना मिलते ही सारे के सारे दर्द न मालूम कहाँ छूमंतर हो गए। फिर तो मन लगने लगा और परिक्रमा करने लगा तो घंटा डेढ़ घंटा बैठा रह जाता और पता ही न लगता कि समय कैसे बीत गया। पाँचवें दिन ही धाराप्रवाह अनुभूति होने लगी।

शिविर के दौरान यह भी ज्ञात हुआ कि जब तक समाधि पुष्ट न होगी, तब तक प्रज्ञा न जागेगी। ऐसा कल्याणकारी मार्ग जिस करुणा भाव से पूज्य गुरुदेव बाँट रहे हैं, उससे यदि कोई वंचित रह जाए तो वह अभागा ही होगा। मुझे बड़ा खेद रहा कि मैं दस वर्ष पीछे रह गया। शिविर से लौटने पर साधना दोनों समय नियमित चल रही है। लाभ भी हो रहा है। एक घंटा बैठने के बाद बहुत हल्कापन महसूस होता है।

पहले मैं बात-बात में गुस्सा हो जाता था, अब गुस्सा बहुत कम होते जा रहा है। मन की चंचलता पहले से बहुत कम हो गई है। बड़े से बड़ा काम करने की हिम्मत बढ़ती जा रही है। मेरे घर में छः साधक हैं - माता-पिता, छोटा भाई, बड़ा लड़का और मेरी धर्मपत्नी तथा मैं। शेष परिवार भी इस धर्मगंगा में डुबकी लगाएँ और मंगल लाभी बने। इसी प्रकार विश्व के सभी लोगों का मंगल हो।

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