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जल्दी असर करता है इन्हेलर

हमें फॉलो करें जल्दी असर करता है इन्हेलर
-डॉ. सलिल भार्ग

दवाएँ कई तरह से ली जाती हैं। इनमें इंजेक्शन के जरिए और मुँह से ली जाने वाली दवाएँ प्रमुख हैं। कई दवाएँ इंजेक्शन के जरिए शरीर में पहुँचाई जाती हैं, तो कई मुँह से ली जाती हैं। इंजेक्शन से ली गई दवा सीधे रक्त में मिलती है, इसलिए तेजी से असर करती है। मुँह से ली जाने वाली दवाओं के अपने फायदे और नुकसान हैं। पेट में जाने वाली दवा पाचन प्रणाली से होती हुई रोगाणुओं तक पहुँचती है। फेफड़ों और श्वास नली में होने वाले संक्रमणों को बेहतर तरीके से केवल इन्हेलेशन थैरेपी से ही निपटा जा सकता है। इसमें दवा साँस के जरिए सीधे संक्रमण तक पहुँचती है, इसीलिए अधिक फायदेमंद साबित होती है। आने वाले वर्षों में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले अनुसंधानों से ऐसी औषधियाँ भी खोजी जाएँगी जो सीधे रोग केंद्र पर हमला करेंगी।

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हम विभिन्न दवाइयों को कई माध्यमों या रास्तों से ले सकते हैं। ज्यादातर दवाइयाँ मुँह के रास्ते या इंजेक्शन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करती हैं। फिर ये दवाइयाँ पेट या मांसपेशियों से होते हुए रक्तवाहिनियों के द्वारा जिस अंग में कार्य करना होती हैं, वहीं पहुँचती हैं। इस दौरान उनके साइड इफेक्ट्स पेट व अन्य शरीर के हिस्सों को भी सहना होता है। दमा, साँस, क्रोनिक ओबस्टरक्टीव पलमोनरी डिसीज में बीमारी साँस की नलिकाओं में होती हैं। इनके इलाज के लिए गोली, जो पेट से होते हुए यहाँ पहुँचेंगी, के बदले एरोसोल रूट या इन्हेलर के जरिए सीधे साँस नलिकाओं में पहुँच जाती हैं।

किन बीमारियों में इन्हेलेशन के माध्यम से दवाइयाँ दी जा सकती हैं-

* वर्तमान में दमा, सीओपीडी व साँस की कुछ बीमारियों में इन्हेलेशन थैरेपी दवाएँ देने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। भविष्य में मधुमेह में इंसुलिन व कुछ अन्य बीमारियों में एंटीबायोटिक्स, अन्य दवाइयाँ भी दी जा सकेंगी।

* इन्हेलेशन थैरेपी से फायदे व नुकसान- इन्हेलर से दवा की छोटी-सी खुराक ही काफी असरदार साबित होती है। गोली की मात्रा से 100 गुना कम मात्रा में भी दवा का प्रभाव अत्यंत शीघ्रतापूर्वक उत्पन्न हो जाता है। इससे दवा के साइड इफेक्ट्स काफी हद तक कम हो जाते हैं। चूँकि इसका बहुत कम हिस्सा रक्त में जाता है, इसलिए शरीर के अन्य अंगों पर दुष्प्रभाव काफी कम हो जाता है। ये दवाइयाँ पेट में जाती ही नहीं इसलिए एसीडिटी व अल्सर जैसे दुष्प्रभाव भी बिलकुल नहीं होते हैं।

क्या इन दवाइयों की आदत हो जाती है-

* कई लोगों के मन में यह भ्रम या भ्रांति होती है कि इन्हेलर की आदत पड़ जाती है, ऐसा नहीं होता है। अन्य दवाइयों के अनुसार ही जरूरत के मुताबिक इन्हें चालू या बंद किया जा सकता है।

* यह दमा व साँस का आखिरी उपचार है!

- ऐसा नहीं है अपितु यह दमा की प्रथम दवाई है, सर्वश्रेष्ठ उपचार है।

दवा लेने का तरीका-

- बिलकुल नहीं। अन्य उपचार की तुलना में ये सस्ती व अच्छी दवाइयाँ हैं।

- इन्हेलर लेने का तरीका क्या है, क्या ध्यान रखना चाहिए?

* एरोसोल रूट या इन्हेलेशन थैरेपी लेने की मशीनें कई तरह की होती हैं। आपके चिकित्सक आपकी उम्र व सुविधा के अनुसार आपके लिए सर्वश्रेष्ठ तरीका बताएँगे। जैसे-

* एमडीआई- मीटर्ड डोज इन्हेलर : इसमें हर बार पंप को दबाने से एक नपा हुआ डोज निकलता है।

* नेबुलाइजर : यह मशीन 2 से 6 हजार रु. तक की आती है व इसमें हर बार एक निश्चित दवाई का डोज भरना पड़ता है जिसे मशीन में लगी मोटर धुएँ का रूप देती है।

* डीपीआई : ड्राई पावडर इन्हेलर- इसमें दवाई एक केप्सूल या कार्ट्रिज में भरी रहती है, जिसे एक छोटी-सी मशीन के जरिए छोड़ा जाकर साँस के माध्यम से मरीज को खींचना पड़ता है।

* स्पेसर : या गुब्बारा- इसे इन्हेलर के साथ जोड़ देने से इसका असर बेहतर हो जाता है (महिलाओं, बुजुर्गों व बच्चों हेतु उपयोगी है)।

* इन्हेलर लेने की विधि : यदि इन्हेलर को सही तरीके से नहीं लिया जाता है तो आप उससे पूरा फायदा नहीं उठा पाते हैं व दवाई का डोज भी ज्यादा लगता है।

* पंप को मुँह के सामने रखकर या होंठों में दबाकर रखें।

* जब साँस अंदर लेना प्रारंभ करें तब पंप को दबाए रखें।

* जब पूरी साँस ले लें तब कुछ क्षण तक (जब तक संभव हो) साँस को रोके रखें। इससे दवाइयों को कार्य करने का वक्त मिलता है।

* फिर धीरे से साँस छोड़ें।

* पुनः दो-तीन बार गहरी-गहरी साँस लें।

* यदि उसी दवाई या अन्य दवाई के इन्हेलर लेना हो तो 3 से 5 मिनट के बाद इसी प्रक्रिया से लें।

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