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जीना इसी का नाम है

डरती थी कि अब कभी खड़ी हो पाऊँगी या नहीं

हमें फॉलो करें जीना इसी का नाम है
- अनुराग तागड़
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श्रीमती फड़नीस प्रतिदिन सुबह के समय ट्यूशन पढ़ाने जाती थी। वह दिन भी सामान्य ही था श्रीमती फड़नीस ट्यूशन पढ़ाकर भंडारी मिल चौराहे से अहिल्याश्रम की ओर अपनी टू व्हीलर से लौट रही थीं। पुल से थोड़ा पहले ही एक स्कूल की बस गलत दिशा से आ रही थी। इससे पहले कि श्रीमती फड़नीस कुछ समझ पातीं, बस तेज गति से उनकी ओर आई और आमने-सामने से भिड़ंत हो गई।

टक्कर इतनी जोरदार थी कि वे बेहोश हो गईं। कुछ लोगों ने उन्हें सड़क से उठाने की कोशिश की ...इस दौरान उनकी नींद खुली और उन्हें तीव्र दर्द का एहसास हुआ। उन्होंने मदद करने वालों को सड़क के किनारे ही उन्हें लेटाने को कहा क्योंकि वे जान चुकी थी कि पैरों की हड्डियाँ टूट चुकी हैं। इस समय दर्द की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि रह-रहकर होश गायब हो रहे थे।

इस बीच कानों में टेलीफोन नंबर बताने की बात गूँजी। जैसे-तैसे देवर का मोबाइल नंबर बताया। लोगों ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें पास में ही शशि नर्सिंग होम में भर्ती करवाया और थोड़ी देर में परिवार के सदस्य भी अस्पताल पहुँच गए।

अस्पताल जाते-जाते श्रीमती फड़नीस के चेहरे पर काफी सूजन आ गई थी इस कारण तत्काल सीटी स्केन व एक्सरे करवाया गया। सीटी स्केन की रिपोर्ट सामान्य आने पर सभी ने राहत की साँस ली पर जब एक्सरे रिपोर्ट आई तो सभी के होश उड़ गए। एक्सरे रिपोर्ट में एक पैर की कमर के पास की हड्डी के 25 टुकड़े होना बताया गया।

यह हड्डी इस कदर टूट गई थी कि उसका ऊपरी सिरा कमर की हड्डी के भीतर घुस गया था। श्रीमती फड़नीस को तत्काल चरक अस्पताल में भर्ती करवाया गया वहाँ ऑपरेशन करके कमर से घुटने तक रॉड डाली गई। श्रीमती फड़नीस को कमर की हड्डी टूटने का पता चला तो उन्हें लगा कि वे अब शायद ही चल पाएँगी । उन्हें यह बात भी सताने लगी कि अब बच्चों का भविष्य क्या होगा। श्रीमती फड़नीस की उम्र तब मात्र 29 वर्ष की थी।

श्रीमती फड़नीस को घर पर मिलने वालों का ताँता लगा रहता था। नन्हे बच्चों के साथ परिवार के सभी सदस्य उनकी तीमारदारी में लगे रहते थे। श्रीमती फड़नीस अपनी आँखों से आँसू ढुलकाकर इस सेवा के लिए उन्हें मूक धन्यवाद देती थीं। धीरे-धीरे वे अवसाद से घिरने लगीं क्योंकि उन्हें अपने शरीर पर बैठे मच्छर तक को हटाने के लिए भी दूसरों की मदद लेना पड़ रही थी। लगभग 21 दिनों बाद उनका एक ऑपरेशन और किया गया।

दूसरी बार घर लौटने के बाद उन्हें अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी। श्रीमती फड़नीस मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की विशेषज्ञ शिक्षिका हैं और सरकार के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में विशेषज्ञ के तौर पर सेवाएँ देती हैं। उनके द्वारा पढ़ाए गए कई बच्चे अपनी टीचर का हाल जानने आते थे। श्रीमती फड़नीस के मन में स्वयं को लेकर तरह-तरह के विचार आते थे।

उस समय उनके लिए चलना तो दूर की बात थी, तब तो करवट बदलना भी एक सपना लग रहा था। पति से लेकर सासू माँ, देवर व उनकी बहन सभी दिन-रात उनकी सेवा में लगे थे। इस बात की कचोट भी उन्हें रुला देती थी। श्रीमती फड़नीस के घर शाम को राम मंदिर में आरती होती थी और वे खुद को दिलासा देती थीं कि भगवान सब कुछ ठीक करेंगे।

दृष्टिहीन फिजियोथेरेपिस्ट ने की मदद
फिजियोथेरिपिस्ट को भगवान ने आँखों की रोशनी नहीं दी थी पर उनके बोले हुए शब्दों ने इतनी हिम्मत दी कि श्रीमती फड़नीस एक दिन थोड़ा हिलने के लिए राजी हुई। खूब दर्द हुआ पर अगले दिन से वे बैठने लगीं। आँखों में आँसू थे कि कम से कम बैठ तो सकती हैं।तीन महीनों की लगातार मेहनत के बाद पलंग से नीचे पैर लटकाने लायक ताकत आ गई। पर शरीर था कि किसी तरह के दर्द को सहन करने के लिए राजी नहीं हो रहा था।

पैरों ने जैसे ही धरती को हौले छुआ, श्रीमती फड़नीस की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। वॉकर से खड़े होने में आठ दिन लग गए और पहला कदम बढ़ाते समय ईश्वर को धन्यवाद दिया। वे पहली बार वॉकर के साथ रामजी की आरती में शामिल हुईं और आरती के बोल मुँह से फुटने के बजाए आँसुओं के साथ बहते रहे। वॉकर का साथ जल्द ही छुट गया और हाथ में छड़ी आ गई।

फिजियोथेरेपी का कमाल वे महसूस कर रही थीं। छड़ी के सहारे पूरे घर का लगभग आठ महीनों बाद मुआयना किया। पैर में अभी भी लचक थी और लग रहा था कि यह लचक जिंदगी भर रहेगी। लगातार फिजियोथेरेपी की मदद से वे स्वयं में बदलाव महसूस कर रही थीं और तीन महीनों के बाद छड़ी का साथ छूट गया।

अब वे बिना मदद के अपना रोजमर्रा का काम करने लगी थीं। दुर्घटना के लगभग डेढ़ वर्ष बाद पहली बार टू व्हीलर पर बैठी तो एहसास हुआ कि जिंदगी कितनी खूबसूरत है। आज श्रीमती फड़नीस को तेज चलने में या पालथी मारने में हल्की सी तकलीफ होती है पर वे अब आत्मनिर्भर हैं। नौकरी और घर की जिम्मेदारी पूरी ताकत से निभा रही हैं।

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