Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

टाइफाइड : एक खतरनाक बुखार

-सेहत डेस्क

हमें फॉलो करें टाइफाइड : एक खतरनाक बुखार
NDND
मोतीझरा या टाइफाइड एक खतरनाक बुखार है, इस बुखार का कारण 'साल्मोनेला टाइफी' नामक बैक्टीरिया का संक्रमण होता है। इस बीमारी में तेज बुखार आता है, जो कई दिनों तक बना रहता है। यह बुखार कम-ज्यादा होता रहता है, लेकिन कभी सामान्य नहीं होता।

यह बैक्टीरिया छोटी आंत में स्थापित हो जाता है, लेकिन कभी-कभी यह पित्ताशय में भी स्थापित रहता है। यह वहीं अपनी संख्या बढ़ाकर विष फैलाता है और रक्त में मिलकर इस बीमारी का कारण बनता है।

मोतीझरा का इन्फेक्शन होने के एक सप्ताह बाद रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं। कई बार दो-दो माह बाद तक इसके लक्षण दिखते हैं, यह सब संक्रमण की शक्ति पर निर्भर करता है।

टाइफाइड के कारण

* इसे सामान्य तरीके से हम यूँ भी समझा सकते हैं कि साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया केवल मानव में छोटी आंत में पाए जाते हैं। ये मल के साथ निकल जाते हैं। जब मक्खियाँ मल पर बैठती हैं तो बैक्टीरिया इनके पाँव में चिपक जाते हैं और जब यही मक्खियाँ खाद्य पदार्थों पर बैठती हैं, तो वहाँ ये बैक्टीरिया छूट जाते हैं। इस खाद्य पदार्थ को खाने वाला व्यक्ति इस बीमारी की चपेट में आ जाता है।

* इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति जब खुले में मल त्याग करता है, तो ये बैक्टीरिया वहाँ से पानी में मिल सकते हैं, मक्खियों द्वारा इन्हें खाद्य पदार्थों पर छोड़ा जा सकता है और ये स्वस्थ व्यक्ति को रोग का शिकार बना देते हैं।

* शौच के बाद संक्रमित व्यक्ति द्वारा हाथ ठीक से न धोना और भोजन बनाना या भोजन को छूना भी रोग फैला सकता है।

* कई व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनके पेट में ये बैक्टीरिया होते हैं और उन्हें हानि नहीं पहुँचाते, बल्कि बैक्टीरिया फैलाकर दूसरों को रोग का शिकार बनाते हैं। ये लोग अनजाने में ही बैक्टीरिया के वाहक बन जाते हैं।

मोतीझरा के लक्षण

webdunia
NDND
* मोतीझरा की शुरुआत सिर दर्द, बेचैनी तथा तेज बुखार के साथ होती है। साथ ही तेज सूखी खाँसी होती है और कुछ को नाक से खून भी निकलता है।

* मोतीझरा में बुखार 103 डिग्री से 106 डिग्री तक हो सकता है और यह बिना उतरे दो-तीन सप्ताह तक रहता है, इसमें तेज ठंड लगती है और मरीज काँपता रहता है।

* इसके अलावा पेट दर्द, पेट फूलना, भूख न लगना, कब्ज बना रहना, छाती व पेट पर हलके रंग के दाने निकलते हैं जो दो-तीन दिन तक रहते हैं। कई रोगियों में हार्ट बीट मंद हो जाती है।

* एक सप्ताह बाद पानी समान दस्त शुरू होते हैं, कुछ केस में दस्त में खून भी आता है, इससे रोगी कमजोर हो जाता है व उसके यकृत व प्लीहा का आकार बढ़ जाता है।

* इसके बाद तीसरे सप्ताह से बुखार कम होने लगता है व बाद में पूरी तरह उतर जाता है। समय पर इलाज न लेने से यह रोग आठ सप्ताह तक रह सकता है और जानलेवा होता है।

webdunia
NDND
उपचार तथा बचाव का तरीका
उपरोक्त लक्षणों में से कोई भी मिलता हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए और अपने मल-मूत्र की जाँ च करानी चाहिए। मल-मूत्र की जाँच इसलिए कि मोतीझरा के लक्षण अन्य सामान्य रोग का भ्रम पैदा करने वाले होते हैं, रोगी भ्रम की अवस्था में रहता है, इलाज में गेप देता है और रोग तीव्र हो जाता है।

* इस रोग का वैक्सीन आज उपलब्ध है, यह बचपन में ही बच्चे को लगा दिया जाता है। बच्चे को 6 से 8 सप्ताह के अंतर से दो डोज लगाए जाते हैं। इसके बाद बच्चा तीन वर्ष का होने पर फिर एक बार टीका लगाना जरूरी होता है।

* वर्तमान में मुँह से ली जाने वाली दवाएँ भी उपलब्ध हैं, इन्हें ओरल वैक्सीन कहते हैं।

* उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, पेट दर्द, बुखार तथा जो-जो तकलीफ हो, उनकी दवा दी जाती है।

* रोगी को दवा बगैर नागा दी जाए, उसे अलग कमरे में रखा जाए, रोगी की तथा उसके कमरे की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। हाथ हर बार साबुन से धोएँ।

* मोतीझरा ठीक होने के दो सप्ताह बाद यह फिर से हो सकता है, इसकी समय पर चिकित्सा न करने पर यह बढ़ता है और आंतों में छेद हो सकते हैं, आंतों से खून जा सकता है, जिससे पेरिटोनाइटिस रोग हो सकता है।

* मोतीझरा के साथ पीलिया हो सकता है, न्योमोनिया हो सकता है, मेनिन्जाइटिस, औस्टियोमाइलाइटिस तथा बहरापन भी हो सकता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi