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दिल क्‍यों होता है बीमार?

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- डॉ. गिरीश कवठेकर

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सारी दुनिया में सबसे अधिक मौतें दिल के दौरे से होती हैं। सबसे अधिक बीमार भी इसी रोग के मरीज हैं। अकेले अमेरिका में ही हर साल 5 लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी के कारण दम तोड़ देते हैं। भारत में इस रोग से पीड़ितों की और मरने वालों की संख्या और कहीं अधिक है। हाल ही में दिल के दौरे का नया इलाज सामने आया है। बीते कुछ समय से दिल के दौरे के इलाज में काफी बड़े बदलाव देखे गए हैं। नई औषधियाँ भी सामने आई हैं तथा आंतरिक चिकित्सा के नए तरीके आ गए हैं।

समय सबसे महत्वपूर्ण
दिल के दौरे में सबसे महत्वपूर्ण है समय। दिल के मरीज को जितना जल्दी हो सके चिकित्सा सहायता मिलना चाहिए। देखा गया है कि दिल के मरीजों में से 25 प्रतिशत अस्पताल पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। दौरा पड़ने के चंद घंटों में ही मरने वालों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है। इसी तरह इन्हीं घंटों में इलाज मिलने का भी सबसे अधिक फायदा होता है। इसकी वजह यह है कि दौरा पड़ने के बाद जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, वैसे-वैसे दिल और अधिक क्षतिग्रस्त होता जाता है।

दिल का दौरा तब पड़ता है जब दिल को खून की आपूर्ति कर रही आर्टरी में रुकावट आ जाती है। इसी मौके पर उपलब्ध कराए गए इलाज का लक्ष्य यह है कि जितना जल्दी हो सके रुकावट हटा दी जाए ताकि दिल को और होने वाली क्षति को रोका जा सके। एक तरीका यह है कि थक्के घोलने वाली दवाएँ देकर इलाज किया जा सकता है। यह इलाज छाती में दर्द शुरू होने के बाद दिया जा सकता है।

दर्द शुरू होने के एक घंटे के अंदर यानी जिसे चिकित्सकीय भाषा में 'गोल्डन अवर' कहा जाता है, उस अवधि में अवरोध घोलने वाली दवाएँ दी जा सकें तो बेहतर परिणाम आते हैं। आधुनिक दवाएँ 60 से 70 प्रतिशत मरीजों में खून का प्रवाह फिर से कायम करने में सक्षम होती हैं। बुजुर्ग मरीजों के मामले में इस तरह की दवाएँ एक सीमा तक ही दी जा सकती हैं।
प्रायमरी एंजियोप्लास्टी
लोकल एनेस्थिसिया देकर मरीज की बाँह या जाँघ के पास से कैथेटर और वायर डालकर उसकी नसों में आए अवरोधों की एंजियोग्राफी की जाती है। इससे पता चलता है कि अवरोध कहाँ, कितने बड़े हैं। एंजियोग्राफी के साथ सीधे टीवी मॉनीटर पर देखकर बैलून डालकर खोल दिया जाता है।
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प्रायमरी एंजियोप्लास्टी में आई नई तकनी
तीव्र दिल के दौरे के दौरान की जा रही प्रायमरी एंजियोप्लास्टी की नई तकनीक अब उपलब्ध है। इसे अब अधिक गुणवत्तायुक्त तकनीक माना जाता है। इस तरह के प्रोसीजर में मरीज को सीधे कोनोनरी एंजियोग्राफी के लिए ले जाया जाता है और जरूरत के मुताबिक उसकी एंजियोप्लास्टी कर दी जाती है। नए उपकरणों ने इस तरह की प्रोसीजर को और अधिक विश्वसनीय बना दिया है, इससे मृत्युदर में काफी कमी आई है। प्रायमरी एंजियोप्लास्टी रूटीन कोरोनरी एंजियोप्लास्टी की तरह ही होती है लेकिन एक फर्क होता है।

वह यह कि दिल के दौरे के दौरान मरीज और डॉक्टर दोनों को तत्परता से इलाज के लिए सक्रिय होना पड़ता है। दिल के दौरे के दौरान समय न गँवाते हुए इलाज तत्काल मुहैया कराया जा सके इसलिए डॉक्टर तथा अस्पताल दोनों का चयन महत्वपूर्ण होता है। मरीज और उसके परिजन एंजियोप्लास्टी के लिए निर्णय लेने में देर न करते हुए सहमति दें तो चिकित्सक के लिए आसानी हो जाती है।

भारतीय परिस्थितियों में कई बार सहमति मिलने में देर होती है जिससे मरीज का महत्वपूर्ण समय नष्ट हो जाता है। सहमति के बाद मरीज को ऐसे अस्पताल की जरूरत होती है जहाँ कैथलैब और ट्रेंड स्टाफ उसकी प्रोसीजर करने के लिए हर वक्त मुहैया हो।

कैसे की जाती है प्रायमरी एंजियोप्लास्टी
लोकल एनेस्थिसिया देकर मरीज की बाँह या जाँघ के पास से कैथेटर और वायर डालकर उसकी नसों में आए अवरोधों की एंजियोग्राफी की जाती है। इससे पता चलता है कि अवरोध कहाँ और कितने बड़े हैं। एंजियोग्राफी के साथ ही सीधे टीवी मॉनीटर पर देखते हुए अवरोध को बैलून डालकर खोल दिया जाता है।

एंजियोप्लास्टी की सफलता की दर 90-95 प्रतिशत तक है जबकि दवाओं से केवल 60 प्रतिशत मामलों में अवरोध खोलने में सफलता मिलती है। सफलता की दर मरीज का समय रहते एंजियोप्लास्टी के लिए निर्णय लेने और कुशल चिकित्सक की टीम द्वारा किए गए प्रोसीजर पर निर्भर है। बुजुर्ग मरीजों के मामलों में ऐसे प्रोसीजर आदर्श माने जाते हैं। 90 वर्ष तक के मरीजों पर भी ये प्रोसीजर सफलतापूर्वक किए जा सकते हैं, अतः कहा जा सकता है कि प्रायमरी एंजियोप्लास्टी खून के थक्के हटाने के मामले में सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।

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