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विश्व अस्थमा दिवस आज

दवा के दम पर दमे को हराना मुश्किल है

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-सेहत डेस्क
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दमा या अस्थमा के मरीज को साँस लेने में परेशानी होती है, दम फूल जाता है, खाँसी आती है, वह भी बलगम वाली। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती हैदमे के मरीज को रात में ज्यादातर परेशानी होती है। दमा बढ़ जाने पर खाँसते-खाँसते और टूटी-फूटी साँस लेते हुए मरीज रात गुजार पाता है।

बढ़े हुए दमा में मरीज को खाँसी का दौरा भी पड़ सकता है, जो कुछ घंटों तक भी जारी रह सकता है। यहाँ तक कि दौरे के दौरान मरीज की मौत भी हो सकती है। यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है, पुरुषों में इसके होने की संभावना ज्यादा रहती है, बच्चों को यह अपनी गिरफ्त में जल्दी ले लेता है।

हमारे शरीर में साँस नली का व्यास 2 से 3 सेंटीमीटर होता है, यह दो ब्रोंकाई में विभाजित होता है, जो दोनों फेफड़ों में जाकर फिर से विभाजित हो जाता है। इसमें सबसे छोटी नली का व्यास कुछ मिलीमीटर तक ही होता है, इसमें मांसपेशियाँ होती हैं, जो सिकुड़ती व फैलती रहती हैं। यदि ये मांसपेशियाँ सिकुड़ जाएँ तो मरीज को साँस लेने में अत्यंत परेशानी होती है।

दमा साँस का रोग है, इसमें साँस की नलियों में विशेष संवेदी तत्वों के संपर्क में आते ही सिकुड़न आ जाती है। यह सिकुड़न कुछ घंटों या मिनटों तक रहत सकती है। श्वास नलियों की दीवारों में ऐंठन, सूजन तथा स्रावक की मात्रा बढ़ जाना सामान्य बात है। कुछ लोगों में सर्दी-जुकाम व गले में सूजन पैदा करने वाले बैक्टीरिया व वायरस भी इस रोग को बढ़ाने में मदद करते हैं।

कुछ लोगों को सेंट, परफ्यूम, इत्र, खुशबूदार तेल, पावडर आदि से भी एलर्जी रहती है, इनकी सुगंध नाक में जाते ही कुछ लोगों को खाँसी या साँस में परेशानी शुरू हो जाती है।

हवा में तैरते जहरीले पदार्थ, पराग कण, खरपतवार, सुगंध, फफूंद, रूई या अन्य के रेशे, पालतू पशुओं के रेशे या पंख आदि एलर्जी पैदा करते हैं। दमे के लगभग 30 प्रतिशत मामले में ये मदद करते हैं। बिस्कुट, केक, बेकरी के उत्पाद, जैम, अचार, सॉस व अन्य डिब्बाबंद पदार्थ भी दमे को उकसाते हैं।

सर्दी का मौसम दमा रोगियों के लिए खास तकलीफदायक होता है। इसका कारण यह है कि सर्दी में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस, सल्फर डाइऑक्साइड तथा ओजोन गैस की मात्रा प्रदूषण से बढ़ जाती है। फैक्टरियों से निकलने वाला धुआं कई हानिकारक पदार्थों से युक्त होता है, यह दमा के नए रोगी बनाता है।

* साँस लेने में परेशानी होना, दम घुटना, साँस लेते समय आवाज होना, साँस फूलना, छाती में कुछ जमा हुआ सा या भरा हुआ सा महसूस होना, बहुत खाँसने पर चिकना-चिकना कफ आना, परिश्रम का काम करते समय साँस फूलना आदि लक्षण दमे के होते हैं।

अस्थमा के कारण

* मेडिकल साइंस में दमा का कारण वंशानुगत भी माना गया है। अर्थात दमे के मरीज के परिवार में पहले किसी को यह बीमारी रही हो तो यह भी एक कारण होता है वर्तमान मरीज के लिए।

* आनुवंशिकता के अलावा अन्य कारणों में एलर्जिक कारण होते हैं। मरीज को कुछ वस्तुओं से एलर्जी हो सकती है, इससे भी दमा होता है। इसके अलावा धुएँ व धूल के संपर्क में ज्यादा रहना, रूई, रेशे आदि के बीच काम करना, दमघोंटू माहौल में रहने या काम करने को मजबूर होना, ठंडे माहौल में ज्यादा रहना, ठंडे पेय तथा ठंडी वस्तुओं का सेवन करते रहना, धूम्रपान, प्रदूषण आदि ऐसे कारक हैं, जो दमा रोग होने में सहायक होते हैं।

दमे के उपचार का तरीका

भारत में एक कहावत प्रचलित है कि दमा दम के साथ ही जाता है। अर्थात दमा रोग को खत्म करना संभव नहीं है, हाँ रोग की तीव्रता कम की जा सकती है, रोगी को उपचार द्वारा साँस लेना आसान बनाया जा सकता है।

* दमे का इलाज डॉक्टर से कराएँ। इलाज के साथ ही इसके बढ़ने के कारणों से बचें, तो ही फायदा हो सकता है। नियम पालन अत्यंत जरूरी है।

* दमे का परीक्षण, फेफड़ों की जाँच तथा एलर्जी के कारकों का पता लगाकर किया जाता है। रोगी को एलर्जी से मुक्त करने का उपचार किया जाता है। इससे भी दमा में आराम मिलता है।

* दमा रोगी को ऐसी दवाएँ दी जाती हैं, जो श्वसन क्रिया को आसान बनाती हैं। इनहेलर्स का प्रयोग आजकल दमा रोग में किया जाता है, ये श्वसन तंत्र की सूजन को कम करते हैं, इससे रोगी को तुरंत आराम मिलता है और कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।

* दमा रोग को काबू में करने के लिए दमा के कारणों के विपरीत आचरण करें यानी धूम्रपान न करें, कोई कर रहा हो तो उससे दूर रहें, ठंड से तथा ठंडे पेय लेने से बचें, थकान का काम न करें, साँस फूलने लगे ऐसा श्रम न करें।

* दमा रोगी को यह समझ लेना चाहिए कि दवा के दम पर दमे को नहीं हराया जा सकता, इसलिए नियमित व्यायाम, पौष्टिक आहार, खुली हवा में लंबी-लंबी साँस लेना लाभदायक रहता है।

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