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हाई ब्लडप्रेशर खतरनाक है

उच्च रक्तचाप : खामोश हत्यारा

हमें फॉलो करें हाई ब्लडप्रेशर खतरनाक है
डॉ. विनोद गुप्त
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भागती-दौड़ती जिंदगी में आज उच्च रक्तचाप एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या बन गई है, जिसकी चपेट में अधिकांश लोग आ रहे हैं। इस बढ़ते उच्च रक्तचाप की वजह से कई बार व्यक्ति की जान भी संकट में पड़ जाती है। इसलिए यह जान लेना आवश्यक है कि ब्लड प्रेशर क्या है, यह क्यों बढ़ता है, इसके क्या-क्या खतरे हैं और इसे कैसे नियमित रखा जा सकता है?

हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप को खामोश हत्यारा कहा जाता है क्योंकि व्यक्ति को इस बात का पता ही नहीं चलता है कि उसे उच्च रक्तचाप की शिकायत है और जब कोई हादसा हो जाता है, तब मालूम पड़ता है कि इसकी वजह रक्तचाप का बढ़ना था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। उच्च रक्तचाप का रोग किसी भी व्यक्ति को किसी भी उम्र में हो सकता है। यह बीमारी स्त्री-पुरुष में विभेद नहीं करती। यदि यह रोग एक बार लग जाए, तो ताउम्र पीछा नहीं छोड़ता। इसलिए इसके प्रति सदैव सतर्क रहें।

रक्त द्वारा धमनियों पर डाले गए दबाव को ब्लड प्रेशर या रक्तचाप कहते हैं। रक्त दाब की मात्रा हृदय की शक्ति व रक्तसंचार प्रणाली में रक्त की मात्रा और धमनियों की हालत पर निर्भर रहती है। रक्तचाप दो प्रकार का होता है- अधिकतम और न्यूनतम। जब बायाँ निलय सिकुड़ता है, तब अधिकतम दबाव होता है। इसे प्रकुंचक दबाव कहते हैं। इसके तुरंत बाद न्यूनतम दबाव होता है, जिसे संप्रसारण दाब कहते हैं।

आमतौर पर किसी भी स्वस्थ युवा का औसत प्रकुंचकदाब (सिस्टोलिक) 120 मिमी और संप्रसारण दाब (डायस्टोलिक) 80 मिमी होता है। इन्हें 120/80 लिखा जाता है। यह औसत है, व्यवहार में इससे थोड़ा कम ज्यादा हो सकता है। लेकिन उच्च रक्तचाप का रोगी कोई व्यक्ति तभी माना जाता है, जबकि उसका प्रकुंचक दाब 140 मिमी और संप्रसारण दाब 90 मिमी या उससे अधिक हो।

रक्तचाप बढ़ने के मुख्य कारण हैं- मोटापा, तनाव, गर्भावस्था, धूम्रपान एवं शराब का सेवन, मधुमेह, गुर्दे की समस्या, जंकफूड, स्लीप एप्निया, आधुनिक जीवनशैली, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, वंशानुगत, शारीरिक श्रम का अभाव, अंतःस्रावी विकार आदि। किसी को यदि उच्चरक्तचाप की शिकायत है या रही है तो उनकी संतानों अथवा आने वाली पीढ़ियों में भी ऐसा होना संभावित है।

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अक्सर तनाव और ब्लड प्रेशर का चोली और दामन का रिश्ता होता है। तनाव आते ही शरीर की छोटी-छोटी धमनियाँ संकुचित होने लगती हैं। जितना अधिक तनाव, उतना अधिक धमनियों में संकुचन। नतीजा उतना ही उच्च रक्तचाप। इसी तरह जो लोग किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम नहीं करते, उन्हें भी उच्च रक्तचाप की शिकायत हो जाती है, क्योंकि उनके शरीर की धमनियाँ व्यायाम के अभाव में संकुचित हो जाती हैं। वहीं उच्च रक्तचाप गुर्दों के खराब होने का कारण भी है और परिणाम भी यानी खराब गुर्दों की वजह से रक्तचाप बढ़ सकता है। सका कारण यह है कि जिन रक्त नलियों से गुर्दे में रक्त पहुँचता है, वे सिकुड़ जाती हैं, जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है।

कई बार कुछ अंतःस्रावी विकार भी ब्लड प्रेशर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। एक और प्रमुख कारण है मोटापा, यह वैसे भी सौ रोगों की जड़ है। जो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा मोटे होते हैं, उन्हें दुबले या सामान्य वजन के व्यक्तियों की तुलना में उच्च रक्तचाप होने की आशंका दुगुनी रहती है।

परिणाम-
* हृदयरोग एवं दिल का दौरा, *ब्रेन हेमरेज, *अंधत्व, * लकवा, * गुर्दे की खराबी।

उच्च रक्तचाप हृदय की गति को भी बंद कर सकता है। कई बार ब्लड प्रेशर की वजह से आँखों की कोई धमनी भी फट सकती है जो व्यक्ति को अंधा भी बना सकती है। उच्च रक्तचाप का सर्वाधिक चिंतनीय पहलू यह है कि यह व्यक्ति की मौत का कारण बन सकता है। यही नहीं इसकी वजह से व्यक्ति को लकवा भी आ सकता है। कभी-कभी उच्च रक्तचाप की वजह से दिमाग की नसें भी फट जाती हैं और उनमें रक्तस्राव शुरू हो सकता है जिसे ब्रेन हेमरेज कहते हैं। इसमें व्यक्ति या तो तत्काल मर जाता है अथवा कोमा में चला जाता है। उच्च रक्तचाप, गुर्दे को, जोकि शरीर के काफी महत्वपूर्ण अंग हैं, भी क्षतिग्रस्त करता है।

क्या करें-

इसके दो प्रमुख तरीके हैं-
* नियमित जाँच कराएँ।
* नियमित रूप से दवाएँ लें।

नियंत्रण-

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* मोटापा घटाएँ
* धूम्रपान एवं शराब का परित्याग करें।
* नमक का सेवन बहुत कम करें।
* भोजन में कैल्शियम, मैग्नेशियम और पोटेशियम की मात्रा बढ़ाएँ।
* नियमित व्यायाम करें।
* योग को अपनाएँ।
* भरपूर नींद लें।
* सुबह की सैर करें।
* तनाव से बचें।

इसके अतिरिक्त अनावश्यक चिंता, फिक्र, सोच-विचार यह सब तनाव ही तो उत्पन्न करते हैं। अतः चिंताओं में डूबकर अपना ब्लड प्रेशर बढ़ाने से अच्छा है, उनका निराकरण करें। कई बार व्यक्ति को यह पता ही नहीं रहता या चलता है कि उसे उच्च रक्तचाप है, लेकिन परीक्षण से पता चलता है कि उसका ब्लड प्रेशर काफी अधिक है। इसलिए 40 वर्ष की आयु के ऊपर हर स्त्री-पुरुष को सचेत रहना चाहिए तथा 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को हर छः माह में अपना परीक्षण कराना चाहिए।

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