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राजश्री
(हाय-हाय ये मजबूरी)
हाय-हाय रे यह महँगाई
बढ़ती महँगाई ने
तोड़ दी है
आम आदमी की कमर।
ऐसे में कैसे जिएँ
कैसे खाएँ, कैसे पिएँ
यही है आम आदमी की सोच।
तेल महँगा, दालें महँगी
और हुआ रोजमर्रा की जरूरत
का सारा सामान महँगा।
ऐसे में कैसे जिएँ
यह सोचना भी
पड़ रहा है
बहुत महँगा।
हाय हाय रे
यह जीने की मजबूरी
चोरी करो, डाका डालो
लूटो और लूटपाट मचाओ
दो जून की रोटी
जुटाने के लिए
इस बढ़ती महँगाई में भी
जीने के लिए
मजबूर है आम आदमी
हाय-हाय ये मजबूरी
बढ़ती महँगाई की मजबूरी।