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विघ्नहर्ता गणपतिजी का पर्व

गणेश चतुर्थी विशेष

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- विलास जोशी

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भादौ (भाद्रपद) माह की चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी। इस दिन से 10 दिवसीय गणेशोत्सव का प्रारंभ होता है। भगवान मंगलमूर्ति बुद्धि के देवता तो हैं ही, साथ ही उन्हें सौंदर्य का देवता भी कहा जाता है। गणेशजी के बारे में यह बात निर्विवाद रूप से कही जाती है कि आप गणेशजी को मन में स्मरण कर कहीं कैसी भी आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींच दें तो उनका ही चित्र आकार लेने लगता है और उनको किसी भी कोण से देखिए- वे सुंदर ही लगते हैं। उनकी मूरत है ही मनमोहक।

गणेशजी को 'कर्ता' भी कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी मंगल कार्य का आरंभ उनको प्रथम पूजकर किया जाता है, क्योंकि वे 'सुखकर्ता' हैं और 'दुखहर्ता' भी हैं। 'श्री गणपत्यथर्वशीर्षम्‌' में यहाँ तक बताया गया है कि भगवान विष्णु और शंकर तक उनका पूजन कर सम्मान करते हैं।

जब कभी देवलोक में संकट के बादल छाने लगते, तब देवताओं के राजा इन्द्र तक ने गणेशजी की वंदना कर उन्हें संकटमोचन बनने की विनती की, क्योंकि वे संकटों में रक्षा करने वाले गणनायक देवता हैं। उनकी निरंतर आराधना करने पर वे भक्त की सारीइच्छाएँ (मनोरथ) पूरी करते हैं और भगवान शंकर की ही तरह वे भी शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोकामनाएँ पूरी करते हैं।
  गणेशजी को 'कर्ता' भी कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि किसी भी मंगल कार्य का आरंभ उनको प्रथम पूजकर किया जाता है, क्योंकि वे 'सुखकर्ता' हैं और 'दुखहर्ता' भी हैं।      


हर माह की चतुर्थी को 'गणपति स्त्रोत्र' (स्तोत्र) या 'श्री गणपत्यथर्वशीर्ष' का पाठ करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। जो भक्त किसी भी कारण श्रीगणपत्यथर्वशीर्ष का पाठ करने में असमर्थ हो, यदि वे उसके उपमंत्र 'ॐ गं गणपतये नमः' की तीन मालाएँ करे तो भी साधक की सारी इच्छाएँ पूरी होती हैं।

श्री गणेशजी केवल 'बुद्धि' के दाता ही नहीं हैं, बल्कि वे 'शक्तिस्वरूप' भी हैं। उन्होंने कई क्रूर राक्षसों का वध कर अपनी वीरता का परिचय भी दिया है। गणेशजी समस्त कला आराधकों के प्रिय देवता हैं इसीलिए हर एक कलाकार के मन में गणेशजी का चित्र और प्रतिमा (मूर्ति) बनाने की उत्सुकता बहुत होती है, फिर चाहे वे झूले पर लेटे हुए गणपति हों, नटेश्वर रूप हो या कोई भी रूप। गणेशजी हर रंग-रूप में दर्शनीय ही लगते हैं।

गणेश चतुर्थी से अनंत चौदस तक गणेशोत्सव के 10 दिन यानी समूची भारत भूमि का हर्षोत्सव। गणेशजी की दस दिनों बाद बिदाई भी बहुत धूमधाम के साथ होती है। 'गणपति बप्पा मोर्‌या, अगले बरस तू जल्दी आ' की हर्षगूँज के साथ वे हमारे घरों में आनंदोत्सव का वातावरण बना देते हैं कि- 'अब तैयारी में लग जाओ' की श्रृंखला शुरू होने वाली है।

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