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पहला प्यार जूतों से हुआ-शाइनी

मेरा बचपन

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शाइनी आहूजा
जन्मदिन - 15 मई

NDND
दोस्तो, मेरा जन्म खूबसूरत शहर देहरादून में हुआ पर मेरी स्कूल की पढ़ाई और बचपन का ज्यादा हिस्सा दिल्ली में ही बीता। मेरे पिताजी आर्मी में थे। उनके ट्रांसफर होते ही रहते थे, इसी बहाने मुझे अलग-अलग जगहों पर रहने का मौका मिला। फिर भी दूसरे शहरों के मुकाबले दिल्ली में मैंने ज्यादा दिन बिताए।

मैं कह सकता हूँ कि बचपन के दिन ही मेरी जिंदगी के सबसे मजेदार दिन हैं। जब मैं तुम्हारे जितना था तो मैं शैतान भी था और शांत भी रहता था। इस तरह पकड़ में आने से मैं आसानी से बच निकलता था। मेरी शुरुआती स्कूली पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल राँची में हुई और बाद की दिल्ली में।

दिल्ली में धौलाकुआँ के आर्मी पब्लिक स्कूल में बीते दिन राँची से भी ज्यादा मजेदार थे। स्कूल की क्रिकेट टीम में मेरा नाम जरूर शामिल होता था। बचपन का यह शौक आज भी है। क्रिकेट देखना पसंद है। खासकर रोमांचक मैच। जैसे आजकल ट्वेंटी-20 में होते हैं कुछ-कुछ वैसे ही। स्कूल के दिनों में से ही मुझे ड्रामा करने का भी शौक लग गया था।

ड्रामा टीम के साथ लगे एक्टिंग के शौक ने ही तो एक्टर बना दिया। एक्टिंग वैसे ही बहुत मजेदार है। जिसने किसी ड्रामा ग्रुप के साथ काम किया है वह इस बात को आसानी से समझ सकता है। स्पेक्ट्रम के दोस्तो अगर तुमने किसी ड्रामा ग्रुप के साथ काम नहीं किया तो इस साल ज्वाइन करो। देखना इससे तुम्हें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

मैं कभी भी ज्यादा दोस्त नहीं बना पाया। जब तक मैं एक जगह दोस्ती बढ़ाता था, पापा का ट्रांसफर हो जाता था और हमें किसी दूसरी जगह जाना होता था। पर जब मैं दिल्ली में रहने लगा तो मैंने खूब दोस्त बनाए। एक और खास बात जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ वह यह है कि छुट्‍टियों में मैं कुछ न कुछ नया करने को जरूर उत्साहित रहता था। छुट्‍टियों में कहीं बाहर घूमने जाने का बड़ी उतावली से मुझे इंतजार रहता था। एक बार की छुट्‍टी में हम कश्मीर भी गए थे। यह अभी तक की सबसे यादगार ट्रिप है। इसके बाद कश्मीर के अलावा भी बहुत सी जगहों पर जाने का मौका मिला पर इस यात्रा की तो बात ही कुछ निराली थी।

बचपन में मैं कुछ सनकी भी था। एक वाकया इसका भी है। बचपन में मुझे नए जूते दिलाए गएथे पर मैं उन्हें पहनता ही नहीं था, क्योंकि मुझे डर था कि वे गंदे न हो जाएँ। माता-पिता के बहुत कहने के बाद भी मैंने जूते नहीं पहने। हाँ, उन्हें एक दिन में एक बार मैं साफ करके जरूर रख देता था। उन जूतों से मुझे प्यार हो गया था। अब यह बात किसी को, कहता हूँ तो हँसी आती है पर आज भी वे जूते कैसे थे, यह मुझे अच्छी तरह याद है। अपनी स्कूल की पढ़ाई मैंने फर्स्ट डिवीजन लाकर पूरी की।

  दोस्तो, मुझे अपने दादा-दादी से भी बहुत प्यार रहा। वे मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। उन्होंने मुझे बहुत सी बातें सिखाईं। उनकी सिखाई बात पर मैं आज भी अमल कर रहा हूँ।      
यह मेरे लिए खुशी का मौका था। इस बेहतरीन रिजल्ट के लिए पापा ने मुझे एक बाइक भी दिलवाई। अगर हम अच्छा रिजल्ट लाकर दिखाते हैं तो मनचाही चीज मिलती है। फिर उसे माँगना भी नहीं पड़ता है। वह खुद-ब-खुद मिल जाती है।

दोस्तो, मुझे अपने दादा-दादी से भी बहुत प्यार रहा। वे मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। उन्होंने मुझे बहुत सी बातें सिखाईं। उनकी सिखाई बात पर मैं आज भी अमल कर रहा हूँ। उन्होंने ही मुझे बताया कि सफलता पाना है तो खूब मेहनत करो। दादा-दादी के पास अच्छी कहानियों का खजाना होता है। उनसे सुनने का वक्त होना चाहिए बस। उनके पास रहोगे तो यह खजाना तुम्हारा हो सकता है।

अब फिल्मों की कुछ बातें। बचपन से मुझे एक्टिंग का शौक लगा था उसने ही आज फिल्मों तक पहुँचा दिया। मॉ‍डलिंग और विज्ञापन में काम करते हुए मैं फिल्मों में आ गया। पहली फिल्म 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' थी, जिसे खूब पसंद किया गया। इस फिल्म ने मुझे पहला अवार्ड भी दिलवाया। कई दोस्तों ने मुझे फिल्म भूलभुलैया में भी पसंद किया। सफर चल रहा है। हर काम की शुरुआत किसी शौक से होती है। यह बात याद रखना और इन दिनों में कुछ नया जरूर करना। क्या पता एक शौक तुम्हें भी कल एक्टर बना दे।

तुम्हारा
शाइनी आहूजा


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