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हीरा कौन? कोयला कौन?

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इंदु पाराशर

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हीरा है सदा के लिए, मेरा हीरा तुझे दे रही हूँ आदि अनेक विज्ञापन दिन भर हीरे के आकर्षण, बहुमूल्यता एवं महत्ता का परिचय देते रहते हैं। हीरा कितने ही साम्राज्यों के उत्थान पतन में सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। कोहिनूर के जाने का गम हर एक भारतवासी के मन में आज भी उतना ही सालता है।

आखिर यह हीरा है क्या? कहाँ से आया? कैसे बना? कैसे बना? क्यों इतना चमकीला है? यह जानने के लिए हमें इसकी जन्म-पत्री देखनी होगी। आवर्त सारिणी के चौदहवें ग्रुप में पहला सदस्य है काला कलूटा कार्बन। हीरा इसी कार्बन का 'अपररूप' है। यदि हम आंध्रप्रदेश के गोलकुंडा क्षेत्र से मिलने वाले हीरों की बात करें तो ये हमें किंबर लाइट चट्‍टानों से प्राप्त होते हैं।

विभिन्न भौगोलिक परिवर्तनों के कारण अनेकों पेड़-पौधों के जमीन के अंदर भूगर्भ में समा जाने पर कुछ विशिष्ट परिस्थितियों का निर्माण होता है। वहाँ आक्सीजन का अभाव होता है। इन परिस्थितियों में पेड़-पौधों में उपस्थित कार्बन 'कोलीफिकेशन' की प्रक्रिया द्वारा हजारों लाखों वर्षों में 'कोल' (पक्का कोयला) में परिवर्तित हो जाता है। किंतु यदि वहाँ का ताप पंद्रह सौ डिग्री सेंटिग्रेट, दाब सत्तर हजार एटमास्कियर हो तो कुछ कार्बन हीरे में परिवर्तित हो जाता है।

अब भूगर्भ से किंबरलाइट चट्‍टान एक तीर की तरह सतह की ओर उठती है एवं अपने साथ हीरे के टुकड़े भी लेकर आती है। यदि इसकी रफ्तार पंद्रह किलोमीटर प्रति घंटे एवं भूगर्भ की गहराई पृथ्‍वी की ऊपरी सतह से एक सौ पचास किमी अंदर हो तो यह हीरों को पृथ्वी की ऊपरी सतह तक ले आती है और यही हीरे लोगों को प्राप्त होते हैं किंतु यदि रफ्‍तार, तापक्रम या चट्‍टान के 'ओरिजन' की गहराई में परिवर्तन आया तो हीरा, ग्रेफाइट या कार्बन में बदल जाता है।

पृथ्‍वी की सतह पर आया यह हीरा तराशने की निपुणतापूर्ण कठिन प्रक्रिया से गुजरता है तब उसका संसार को चकाचौंध करने वाला रूप सामने आता है।

विचारणीय बात यह है कि आखिर क्या संरचनात्मक फर्क है कि वही कार्बन एक परिस्थिति में हीरा बन जाता है वहीं दूसरी परिस्थिति में कोयला ग्रेफाइट? यह जानने के लिए हमें हीरे और ग्रेफाइट की आंतरिक संरचना समझनी होगी। कार्बन की संयोजकता या कहें अन्य परमाणुओं से संयुक्त होने वाले बिंदु चार होते हैं।

डायमंड के केस में ये चारों संयोजकताएँ कार्बन के अन्य परमाणुओं की चारों संयोजकताओं से संबद्ध होती हैं और अत्यंत कठोर सुदृढ़ प्यारा और संसार के सबसे अधिक दैदीप्यमान पदार्थ को जन्म देती है, किंतु ग्रेफाइट का अध्ययन करने पर पाया गया कि ग्रेफाइट के केस में कार्बन की चार संयोजकताओं में से एक भटक जाती है। एक कार्बन का परमाणु अन्यों के साथ सिर्फ तीन संयोजकताओं से जुड़ता है और अब कार्बन हीरा नहीं ग्रेफाइट बन जाता है जो ‍न विद्युत प्रवाह का विरोध कर पाता न उसमें उतनी सुदृढ़ता व कठोरता है न वह चमक न मूल्य, अब वह साधारण से आघात से टूटने वाला घूसर काले रंग का पदार्थ बन गया है।

क्या हम इसकी तुलना हमारे जीवन में चारों ओर दिखाई देने वाले दृश्यों के किस व्यक्ति से नहीं कर सकते? कल्पना कीजिए किसी परिवार में दो पुत्र हैं अत्यंत कठिन परिस्थितियों में उनका पालन पोषण हुआ है दोनों एक ही परिवार एक ही परिवेश में जन्मे एवं पले बढ़े हैं दोनों में बुद्धिमत्ता, अनुशासन, आत्मविश्वास एवं उच्च चरित्र के गुण हैं जो कार्बन की संयोजकता की तरह अन्य से जुड़ाव या व्यवहार में काम आते हैं।

अब यदि बुरी संगति या किसी अन्य कारण से एक भाई अपने चरित्र से गिर जाता है तो वह हीरे की ग्रेफाइट में बदलने जैसी प्रक्रिया है। एक स्वतंत्र संयोजकता के कारण हीरा ग्रेफाइट में और एक उच्च प्रभावशाली व्यक्तित्व सिर्फ एक गुण में उच्च श्रृंखला होने के कारण प्रभावहीन हो जाता है ऐसे उदाहरण हमें अनेक जगह देखने को मिलेंगे।

मुझे ऐसा लगता है कि हमारे जीवन में जो भी घटित होता है चाहे वह व्यक्त्वि में हो, समाज में हो, व्यवहार में हो, प्रकृति में भी कहीं न कहीं हम वैसा ही कुछ होता है। हमारे जीवन को समान प्राकृतिक नियम नियंत्रित करते हैं। यदि हम विज्ञान के द्वारा इन नियमों को समझने की कोशिश में कामयाब हों तो हमें हमारी जिंदगी में आने वाली समस्त समस्याओं के हल मिल जाएँगे, सब अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर।

हमारी स्थिति उस अल्पज्ञ विद्यार्थी की तरह है जिसे परीक्षा कक्ष में प्रश्नपत्र के साथ पाठ्‍यपुस्तक भी थमा दी गई है लेकिन वह उत्तरों को पुस्तक में से ढूँढ नहीं पाता। यदि हम बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से ढूँढें तो हमारे हर प्रश्न का उत्तर प्रकृति के पास है।

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