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आपका पेट नाशपाती जैसा तो नहीं?

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डॉ. अशोक से
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पेट का आकार हृदय रोग की ओर संकेत करता है। यदि तोंद निकली हुई है तो आपको दिल के रोग होने का जोखिम दूसरों की अपेक्षा अधिक है। यदि यह नाशपाती जैसी यानी पेट के निचले हिस्से में फैली हुई दिखने लगे तो समझो खतरे की घंटी बज चुकी है।

भले ही भारत में पेट को हिला-हिलाकर नाचने वाले बैले डांस का चलन न हो परंतु भारतीयों के पेटों का आकार खूब बढ़ रहा है। इससे खूब सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि जितना आपका पेट बड़ा होगा दिल की बीमारी का खतरा उतना ही ज्यादा होगा। आज के डॉक्टर पेट का आकार देखकर ही यह अनुमान लगाते हैं कि अमुक व्यक्ति को हृदयरोगों का जोखिम कितना अधिक है।

वास्तविकता तो यह है कि हमारे देश में हृदय रोग महामारी की तरह लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। जिस व्यक्ति का पेट नाशपाती की तरह दिखने लगता है उसकी समस्या उन लोगों की तुलना में बढ़ जाती है जिनका पेट सेबफल के आकार का होता है। जाहिर है कि पेट के आकार के आधार पर दिल के रोगों का जोखिम तय किया जाता है।

बाकी विश्व के मुकाबले सभी उम्र के भारतीयों को कोरोनरी आर्टरी डिसीज का जोखिम 4 गुना अधिक होता है। बाकी विश्व के 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों यानी युवाओं से तुलना की जाए तो भारतीय युवाओं को 10 गुना ज्यादा खतरा है। भारतीय लोग अन्य देशों के लोगों के मुकाबले 10-15 साल पहले ही हृदय रोगों के शिकार बन जाते हैं।

दक्षिण पूर्व-एशिया में कोरीनरी वैस्कूलर डिसीज (सीवीडी) यानी हृदयरोग बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और 2010 तक हमारा देश दिल के रोगों की विश्व राजधानी हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों के अनुसार 2015 तक दिल के रोगों से मरने वाले हिन्दुस्तानियों की संख्या दोगुनी हो जाएगी, यानी वर्तमान दर में 100 प्रतिशत का इजाफा।
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गौरतलब है कि अन्य देशों में दिल के रोगों से होने वाली मृत्यु दर में गिरावट आई है उदाहरणतः जापान व फिनलैंड में 60 प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व अमेरिका में 50 प्रतिशत, पश्चिमी योरप में 25 प्रतिशत की कमी आई है।

एक भारतीय होने का मतलब है हृदय रोग एवं हृदय की धमनियों के रोगों का अधिक खतरा होना। हम लोग जापानियों के मुकाबले 20 गुना अधिक जोखिम में जीते हैं। भारत में हृदयरोग एवं हृदय की धमनियों के रोगों के लिए जिम्मेदार कारण हैं- तीव्र शहरीकरण, वैश्वीकरण, औद्योगिकीकरण, जनसंख्या एवं खानपान में परिवर्तन। 1960 के बाद से सीएडी की दर में बढ़ोतरी हुई है जब यह 1 प्रतिशत थी।

2003 में यह दर 11 प्रतिशत और 2008 में 14 प्रतिशत है। 30 से 60 वर्ष की उम्र के 35 प्रतिशत लोग उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हैं। 60 साल से ऊपर के 55-70 प्रतिशत लोग उच्च रक्तचाप झेल रहे हैं। मेटाबॉलिक सिंड्रोम (एमएस) पूरे विश्व में एक बड़ी समस्या है और खासकर दक्षिण-पूर्व एशिया में यह महामारी की तरह फैल रही है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम से तात्पर्य है चयापचयी खतरों का एक समूह, जिसमें शामिल है :-
1. पेट संबंधी मोटापा यानी पेट के चारों ओर बहुत चर्बी का जमा हो जाना।

2. खराब कोलेस्ट्रॉल ज्यादा होना और अच्छा कोलेस्ट्रॉल कम होना। इससे आगे चलकर हृदय धमनियों में चर्बी जमने लगती है।

3. उच्च रक्तचाप।

4. मधुमेह-जब शरीर इंसुलिन या ब्लड शुगर का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता।

मेटॉबॉलिक सिंड्रोम मोटापे की वजह से होता है और फिर इसकी वजह से सीवीडी तथा मौतें होती हैं। अस्पतालों से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार उनके 65 प्रतिशत भर्ती रोगियों को चयापचय की समस्या है। इन रोगियों में पुरुषों का प्रतिशत 60 एवं महिलाओं का भाग 70 प्रतिशत है। अपनी जीवनशैली को सुधारने और समय से इलाज द्वारा ही इन परेशानियों से बचा जा सकता है।

खतरनाक है मेटॉबॉलिक सिंड्रोम
मेटॉबॉलिक सिंड्रोम सेहत का नाशक है। यह एक आदमी को हृदय रोगों, मोटापे, हाइपरटेंशन, त्वचा रोग, कैंसर, सेरिब्रोवेस्कुलर डिसीज, इंफर्टिलिटी, स्ट्रोक व डायबिटीज की ओर ले जाता है। इसके इलाज के लिए जीवनशैली में परिवर्तन करना जरूरी है तथा मेडिकल सहायता, मेकेनिकल सपोर्ट तथा सर्जिकल सहायता की दरकार होती है। हृदयरोग, हृदय की धमनियों के रोग तथा चयापचय की समस्या के खिलाफ लड़ने तथा दिल को ताकत देने वाले व्यायाम करने चाहिए जैसे 30 से 60 मिनट की पैदल सैर, जॉगिंग, साइकलिंग, तैराकी, नृत्य, स्कीइंग व ट्रेडमिल।

इन हालातों से निपटने के लिए एस्पिरिन एक अच्छा उपाय है। यदि मरीज एस्पिरिन लेना बंद कर दे तो बीमारी का जोखिम तीन गुना हो जाता है। हृदय रोगियों के लिए स्टेम सेल थैरेपी सबसे अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है। इनवेसिव सर्जरी के मुकाबले इसका असर सदैव रहता है। दुनियाभर में करोड़ों लोग कोर्डियो वेस्कुलर डिसीज से जूझ रहे हैं। इसलिए इस क्षेत्र में और शोध होना चाहिए।


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