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प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारी : टाइफाइड

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इस मौसम में सबसे ज्यादा बीमारियां गंदे पानी के पीने से होती हैं।


टाइफाइड :

यह बहुत ही गंभीर बीमारी है। अगर समय रहते पकड़ में आ जाए तो एंटीबायोटिक्स देने से ठीक हो जाता है। लेकिन टाइफाइड आमतौर पर समय पर पकड़ में नहीं आता। शुरू में तो मामूली बुखार लगता है जिसे अकसर अनदेखा कर देते हैं। कई बार पता ही नहीं चलता कि बच्चों को बुखार है, लेकिन यह बुखार अंदर ही अंदर पनप रहा होता है।



* इसमें सालमोनेला बैक्टीरिया पानी या खाने के द्वारा हमारी आंत में जाते हैं जिससे आंत में अल्सर (जख्म) हो जाता है। यह अल्सर बुखार की वजह बनता है। यह बै‍क्टीरिया ज्यादातर पोल्ट्री प्रोडक्ट्‍स जैसे अंडे को खाने से शरीर में जाता है।



* ज्यादातर मुर्गियों में सालमोनेला इंफेक्शन होता है। मुर्गी अंडे के ऊपर पॉटी कर देती है। अगर उस अंडे में दरार है, तो वह बै‍क्टीरिया अंडे के अंदर चला जाएगा। इस अंडे को अच्‍छी तरह से पकाए बगैर खा लेने से बै‍क्टीरिया शरीर के अंदर चले जाते हैं।

अगर इम्युन सिस्टम मजबूत नहीं है तो ये बै‍क्टीरिया आंतों के द्वारा खून में चले जाते हैं, तो वे शरीर के किसी भी अंग को संक्रमित कर सकते हैं। इसे टाइफाइड कहते हैं।



* जब तक जांच द्वारा टाइफाइड का पता चले और उसका इलाज शुरू न हो, तब तक बच्चा बुखार से पीड़ित रहता है।

इसके लक्षणों में भूख न लगना, वजन कम होना, मांस‍पेशियां कमजोर होना, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलित होना, पेट दर्द, डिहाइड्रेशन आदि शामिल हैं। जब बच्चे के लिए उठना-बैठना तक कठिन हो जाता है, तब पैरेंट्‍स उसे अस्पताल लेकर आते हैं और कहते हैं कि बच्चा लंबे समय से बुखार से पीड़ित है।


जांच : तब बच्चे का टाइफी डॉट टेस्ट और ब्लड कल्चर किया जाता है जिससे 2-3 दिन के अंदर बच्चे को टाइफाइड होने की पुष्टि हो जाती है।

* एक अन्य विडाल टेस्ट भी है। अगर बच्चे को एक हफ्ते तक लगातार बुखार हो, तो यह उसको डायग्नोज करने के लिए है।

ट्रीटमेंट : इसमें बच्चे के शरीर के इलेक्ट्रोलाइट संतुलित करने से लेकर एंटीबायोटिक्स ट्रीटमेंट दिया जाता है।

क्या सावधानी बरतें :



सावधानी :

बच्चे को अंडा, चिकन, दूध-दही और पानी देने में सावधानी बरतें। मुर्गी के अंडे को ठीक से पकाकर खिलाएं। अगर दूध पॉश्चराइज नहीं है, तो उससे भी टाइफाइड हो जाता है। दूध और पानी को अच्छी तरह उबालकर दें।

* इसमें हर मामले में सफाई का ध्यान रखा जाए, तो यह बीमारी नहीं होती।

* इस मौसम में बाहर का खाना न दें।

बचाव क्या हो : टाइफाइड से बचाव के लिए बच्चों में 3 साल में एक बार टीका लगाना जरूरी होता है। यह टीका 2 साल की उम्र से लगाना शुरू किया जाता है। यह 2, 5 और 8 साल की उम्र में लगाया जाता है।

* टाइफाइड का वैक्सीन 65 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करता है। यह शत-प्रतिशत बचाव का तरीका नहीं है।

* इसे लगाने से बच्चे में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जिस बच्चे में टीका लगवाया है, अगर वह बीमार हो भी जाए, तो जल्दी ठीक हो जाता है।

साइड इफेक्ट : इस बीमारी से दूसरी ‍दिक्कतें भी हो सकती हैं। यह दिल और दिमाग पर असर करती है।

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