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योग करो मुँहासे हटाओ

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- डॉ. बीके बांद्रे

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आधुनिक जीवनशैली और खानपान के प्रति लापरवाही से मुँहासों में इजाफा होता है। क्रीम या लोशन प्राथमिक उपचार कर सकते हैं, लेकिन दीर्घकालीन फायदा लेना हो तो योग से बढ़कर कुछ नहीं।

अधिकांश युवाओं को मुँहासों से परेशानी होती है। चेहरे का आकर्षण कम हो जाता है। अनेक बाह्य उपायों से चेहरे के मुँहासे समाप्त करने की दवाइयाँ, लोशन, क्रीम आदि लगाने के उपरांत भी विशेष लाभ नहीं होता।

प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रमुख कारण कब्जियत है। इसके अतिरिक्त व्यायाम का भी अभाव होता है। युवाओं में व्यायाम के प्रति अरुचि तथा आलस्य होता है। योगाभ्यास मुँहासों की रोकथाम के लिए अति उपयुक्त होता है। प्राकृतिक चिकित्सा में सादे पानी से चेहरे को दिन में तीन-चार बार धोने के पश्चात चेहरा पोंछे बिना ही सूखने दिया जाए, इससे चेहरे का तेल घुल जाता है और मुँहासों का उभरना कम हो जाता है।

ये हैं कारगर उपाय
तीस दिन में एक बार दीर्घ शंखप्रक्षालन करना चाहिए। इसके अंतर्गत 20 से 25 गिलास गर्म पानी में नमक-नींबू मिलाकर (हृदय रोगी तथा उच्च रक्तचाप वाले नहीं करें) प्रातःकाल उठते ही यह पानी 4 गिलास पीकर तीर्यकताड़ासन, कटिचक्रासन, उदरार्कशणासन एवं तीर्यक भुजंगासन 10-10 बार करने के बाद शौच के लिए जाना चाहिए।

उपरांत फिर 3-4 गिलास वही पानी पीकर टहलने के बाद पुनः शौच को जाना चाहिए। इस प्रकार 4-5 बार शौच जाने एवं पानी पीने से गुदाद्वार से पिया हुआ पानी निकलने लगता है इस क्रिया में लगभग डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है। इसके पश्चात संपूर्ण दिन विश्राम करें और भूख लगने पर ही घी-खिचड़ी का सेवन करें।

अग्निसार करने के लिए खड़े होकर घुटनों को हल्का मोड़कर सामने झुकते हुए हाथों को घुटनों पर रखें, सामने देखते हुए श्वास बाहर निकालकर बाह्य कुंभक करें और जब तक श्वास बाहर रुकी रहती है, तब तक पेट को गहराई से आगे-पीछे चलाए, लगभग 25-30 बार पेटको चलाने के बाद खड़े होकर 4-5 बार लंबा गहरा श्वास-प्रश्वास करें, उपरांत क्रिया को 4-5 बार दोहराना चाहिए।

शशकासन करने के लिए दोनों घुटने मोड़कर जमीन पर आसन बिछाकर बैठे और पैरों के पंजों को फैलाते हुए एड़ियों को बाहर की तरफ झुकाते हुए पुट्ठों को रखकर बैठे इसे व्रजासन कहते हैं। इसके उपरांत दोनों हाथों को ऊपर उठाकर सामने झुके और दोनों हाथों को जमीन पर फैलाएँ ताकि कोहनियाँ सीधी रहें। नाक या माथा जमीन पर बिना पुट्ठे उठाए लगाने की चेष्टा करें। 20-25 श्वास-प्रश्वास होने तक इस आसन की स्थिति में रुके फिर ऊपर उठे, एक बार इसे दोहराएँ।

वक्रासन भी कब्जियत मिटाने में सक्षम है। पैर फैलाकर जमीन पर बैठकर दाहिना पैर मोड़कर बाएँ घुटने के पास जमाकर खड़ा रखें। दाहिना हाथ पीठ के पीछे जमीन पर रखें। बायाँ हाथ खड़े घुटने के ऊपर से निकालकर बाएँ घुटने को पकड़कर गर्दन, सिर, छाती दाएँ तरफ घुमाकर 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।

धनुरासन भी पेट का मोटापा कम करते हुए कब्जियत मिटाता है। जमीन पर दरी डालकर पेट के बल लेट जाए, घुटनों से दोनों पैर मोड़कर टखनों को पकड़कर गर्दन, सिर, छाती और घुटनों को ऊपर उठाए और 15-20 श्वास-प्रश्वास करे फिर धीरे-धीरे नीचे शरीर को उतारे2-3 बार दोहराना लाभप्रद है।

उत्तानपादासन कब्जियत मिटाने में लाभप्रद है। पीठ के बल लेटकर हाथों को बगल में रखें। गर्दन नहीं उठाते हुए दोनों पैरों को घुटनों से सीधे रखते हुए अँगूठे दिखने लगे इतनी ऊँचाई पर उठाकर रखें और 10-15 श्वास-प्रश्वास करें, 3 बार इस आसन को दोहराना लाभप्रद है।

पवन मुक्तासन अंत में लाभप्रद है। पीठ के बल लेटे-लेटे पैरों को घुटनों से पकड़कर दोनों हाथों से छाती की तरफ खींचते हुए ठोढ़ी घुटनों से लगाने का प्रयास करते हुए 10-15 श्वास-प्रश्वास करें, इसे दो बार दोहराएँ।

शवासन का अभ्यास अंत में अवश्य करना चाहिए। कमर के बल गर्दन, सिर, सीधी दिशा में रखकर आँखें बंद करें। शरीर ढीला छोड़ें, पैरों में एक-डेढ़ फुट का अंतर रखें। लंबी गहरी दस श्वास लेना-छोड़ना करें। फिर आँखें बंद रखते हुए तीस साधारण श्वास-प्रश्वास नाक के सिरे पर ध्यान करते हुए विश्राम करें।

प्राणायाम के अंतर्गत विशेष रूप से नाड़ी शोधन या अनुलोम-विलोम को दस बार 1:2 के अनुपात में करना चाहिए। इसी प्रकार कपालभाँती क्रिया सौ बार या डेढ़ सौ बार करना चेहरे की कांति बढ़ाने में लाभप्रद है।

भस्तिका प्राणायाम में दस बार जल्दी-जल्दी, लंबी-लंबी गहरी श्वास-प्रश्वास करने के बाद आंतरिक (श्वास रोकना) कुम्भक करें और यथाशक्ति अंदर रोकने के बाद धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ें और इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराने से पर्याप्त लाभ मिलता है।

उपरोक्तानुसार योगाभ्यास एवं प्राकृतिक जीवन पद्धति को अपनाने से मुँहासों का रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।

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