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चिकित्सा विज्ञान का अनजाना पहलू - निश्चेतना

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- डॉ. राजेंद्र भटनागर

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आज जब भी किसी व्यक्ति की शल्य क्रिया होने वाली होती है तो उसके और उसके परिजनों के मन में सिर्फ यह जिज्ञासा रहती है कि दर्द तो नहीं होगा अथवा मालूम तो नहीं पड़ेगा। मरीज का अपने शल्य चिकित्सक से सिर्फ यही आग्रह रहता है कि उसे बेहोश कर दिया जाए, मगर यह मालूम नहीं होता है कि उसे कैसे बेहोश किया जाएगा, अथवा कौन उसे बेहोश करेगा।

आज हमारे देश में चिकित्सा विज्ञान ने काफी उन्नति कर ली है। यहाँ विश्व के किसी भी अन्य विकसित देश के समतुल्य शल्य क्रियाएँ की जाती हैं। इसमें निश्चेतना विज्ञान अथवा एनेस्थेशिया का महत्वपूर्ण योगदान है, किंतु खेद है कि आम आदमी को इसकी कोई खास जानकारी नहीं है और न इसके महत्व से ठीक से परिचित हैं।

क्या होता है निश्चेतना विज्ञान अथवा एनेस्थेशिया? एक सफल शल्य क्रिया के लिए जरूरी है कि एक कुशल निश्चेतना विशेषज्ञ उचित तकनीक द्वारा सफलतापूर्वक मरीज को निश्चेतन किया जाए। निश्चेतना विशेषज्ञ का काम शल्य क्रिया से पहले शुरू होता है और शल्य क्रिया खत्म होने के बाद तक जारी रहता है। शल्य क्रिया छोटी या बड़ी हो सकती है, मगर एनेस्थेशिया कभी भी छोटा या बड़ा नहीं होता।

निश्चेतना विज्ञान का मुख्य उद्देश्य है कि शल्य क्रिया के दौरान एवं उसके बाद में मरीज को किसी भी प्रकार का दर्द अथवा तकलीफ न हो, उसे शल्य क्रिया के दौरान हुई तकलीफों का स्मरण न रहे। उसके शरीर के सभी अंग जैसे कि दिल, दिमाग, गुर्दे, लीवर, फेफड़ेइत्यादि शल्य क्रिया के दौरान व बाद में सुचारू रूप से कार्य करते रहें। शल्य क्रियाओं के दौरान मांसपेशियों का तनाव कम हो, रक्तचाप नियंत्रित हो, रक्तस्राव कम हो, ताकि शल्य क्रिया चिकित्सक को अपना कार्य करने में किसी भी प्रकार की तकलीफ या परेशानी न हो और वह एक सफल शल्य क्रिया कर सके।

सर्वप्रथम निश्चेतना विशेषज्ञ मरीज से उसके स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी लेता है। यदि मरीज छोटा बच्चा है तो उसके माता-पिता द्वारा संपूर्ण जानकारी ली जाती है। फिर वह मरीज की अच्छी तरह से और संपूर्ण रूप से जाँच करता है। नियमित खून, पेशाब की जाँच के अलावा खून में शकर और यूरिया की जाँच कराई जाती है। यदि मरीज की आयु 35 वर्ष से ऊपर है तो छाती का एक्स-रे व कार्डियोग्राम कराया जाता है। यदि मरीज में खून की कमी है तो पहले उसे खून दिया जाता है और जरूरत पड़ने पर खून की पहले से व्यवस्था भी की जाती है।

प्रातः शल्य क्रिया होने पर मरीज को रात के दस बजे के बाद से कुछ भी खाने-पीने को नहीं दिया जाता है। यदि शल्य क्रिया किसी अन्य समय है तो मरीज को कम से कम छः घंटे पूर्व से कुछ भी खाने-पीने को नहीं दिया जाता है। यदि मरीज ने कुछ खाया हो तो शल्य क्रिया के दौरान उसे उल्टी हो सकती है, जिससे साँस नली में अवरोध पैदा हो जाता है और जान जाने का खतरा रहता है। इसी कारण शल्य क्रिया के बाद भी मरीज को कम से कम छः घंटे और खाली पेट रखा जाता है। शल्य क्रिया से पहले मरीज और उसके परिजनों को शल्य क्रिया और एनेस्थेशिया के बारे में संपूर्ण जानकारी दी जाती है और उनसे लिखित में अनुमति ली जाती है। लोकल एवं रीजनल एनेस्थेशिया तकनीक में शल्य क्रिया के स्थान पर उसके आस-पास लोकल एनेस्थेटिक दवाइयों को इंजेक्शन द्वारा लगा दिया जाता है, जिससे कि वह भाग सुन्नाहो जाता है और शल्य क्रिया बिना किसी तकलीफ के की जा सकती है। इससे पहले लोकल एनेस्थेटिक दवाइयों का एक बहुत छोटा-सा भाग इस्तेमाल करके यह जाँच की जाती है कि कहीं मरीज को दवाई से किसी प्रकार का रिएक्शन तो नहीं है। कम समयावधि की छोटी शल्य क्रियाएँ इस पद्धति से सरलतापूर्वक की जा सकती हैं। कई बार यह इंजेक्शन शल्य क्रिया किए जाने वाले स्थान या अंग तक आने वाली नर्व अथवा स्नायु तंत्र में लगाए जाते हैं, जिससे वह पूरा भाग सुन्न हो जाता है।

स्पाइनल और एपिड्यूरल एनेस्थेशिया तकनीकों का पैरों में अथवा नाभि के नीचे किए जाने वाली शल्य क्रियाओं में इस्तेमाल किया जाता है।
निश्चेतना विशेषज्ञ शल्य क्रियाओं के अलावा कैंसर इत्यादि जैसी बीमारियों में मरीजों को विभिन्न तरीकों से असहनीय दर्द से छुटकारा दिलाने में सहयोग करते हैं
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ये तकनीक ज्यादा सुरक्षित है। इन तकनीकों में रीढ़ की हड्डी में सुई लगाई जाती है और लोकल एनेस्थेटिक दवाइयाँ लगा दी जाती हैं। स्पाइनल इंजेक्शन लगाने के बाद कुछ मरीजों को सरदर्द एवं गर्दन में दर्द की शिकायत होती है। शल्य क्रिया के दौरान यदि पतली सुई का इस्तेमाल किया जाए, मरीज को 24-28 घंटे तक बिना तकिए के लिटा कर रखा जाए। उसके पलंग का पायताना ऊँचा रखा जाए और उसेपहले 24 घंटे में 4 से 5 लीटर फ्लुइड दिया जाए तो यह सरदर्द नहीं होता है, मरीज को दर्द निवारक दवाइयाँ भी दी जाती हैं।

जनरल एनेस्थेशिया तकनीक में मरीज को संपूर्ण रूप से बेहोश किया जाता है। स्त्री रोग एवं अस्थि रोग की कम समयावधि वाली शल्य क्रियाओं में तो सिर्फ नस में इंजेक्शन लगा कर मरीज को बेहोश किया जाता है। मरीज शीघ्र ही अपने आप होश में आ जाता है। मरीज की श्वसनक्रिया को निश्चेतना विशेषज्ञ नियंत्रित करता है।

निश्चेतना विशेषज्ञ शल्य क्रियाओं के अलावा कैंसर इत्यादि जैसी बीमारियों में मरीजों को विभिन्न तरीकों से असहनीय दर्द से छुटकारा दिलाने में सहयोग करते हैं। आजकल संसार के सभी अस्पतालों में गहन चिकित्सा इकाइयों का संचालन भी निश्चेतना विशेषज्ञों द्वारा कुशलतापूर्वक किया जा रहा है। निश्चेतना विज्ञान चिकित्सा विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है। एक कुशल निश्चेतक अपनी योग्यता, अनुभव एवं विशेषज्ञता का इस्तेमाल करके एक सफल शल्य क्रिया की नींव रखता है।

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