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अब आसान हुई जोड़ों की सर्जरी

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-डॉ. ए. मुखर्ज

आर्थोस्कोप

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आर्थोस्कोपी शब्द दो ग्रीक शब्दों आर्थो (जोड़) और स्कोपीन (देखना) से बना है। इस तकनीक का प्रयोग करके, एक आर्थोपेडिक सर्जन (हड्डी रोग विशेषज्ञ) जोड़ के अंदर बिना चीर-फाड़ के रोग को देखकर, उसका आकलन कर रोग का निदान व उपचार करता है। यह तकनीक खेल के दौरान लगने वाली चोटों और दूसरे जोड़ों में महत्वपूर्ण व अत्यंत कारगर है।

आर्थोस्कोपी की तकनी

बेहोशी के बाद, इस तकनीक के दौरान, एक छोटा-सा चीरा मरीज की त्वचा में लगाया जाता है और पेंसिल के आकार का आर्थोस्कोप (1/10 से 1/4 इंच) जिसमें लैंस लगा होता है, जोड़ में डालते हैं। इस आर्थोस्कोप से एक रोशनी (लाइट), कैमरा और तरल पदार्थ आदिलगा होता है। कैमरा आगे टीवी से जुड़ा रहता है जिस पर सर्जन (हड्डी रोग विशेषज्ञ) जोड़ के अंदर की कई गुना बड़ी तस्वीर देख सकता है। विशेष उपकरण जोड़ के अंदर डाले जाते हैं, एक दूसरे छोटे से चीरे की सहायता से और विभिन्न प्रकार की शल्यक्रियाएँ इस पद्धति से की जा सकती हैं।

आर्थोस्कोपिक सर्जरी का उपयो

आर्थोस्कोपिक सर्जरी किसी भी जोड़ के लिए की जा सकती है जैसे कि घुटना, कूल्हा, एड़ी, कोहनी आदि। आमतौर पर इस तकनीक का सबसे ज्यादा प्रयोग घुटने की सर्जरी में किया जाता है जैसे-

* घुटने की गादी (मेनिस्कस) चोटग्रस्त होने पर इसका उपचार किया जा सकता है। * घुटने के लिगामेंट में चोट/ टूट जाने पर मरीज के घुटने में लचक, सूजन व दर्द बना रहता है। इन लिगामेंट (क्रुशीएट व अन्य) की सर्जरी एवं बदलाव किया जा सकता है। * लूज बॉडीज (जोड़से अलग हुए हड्डी के टुकड़े) एवं फोरन बॉडीज) (बाहरी तत्व) आर्थोस्कोपी से निकाले जा सकते हैं। * विभिन्न प्रकार की जटिल बीमारियों की पहचान के लिए उपयोग होने वाली बायोप्सी तकनीक भी आर्थोस्कोपी से कर सकते हैं।

* जोड़ों में अनावश्यक रूप से बढ़ी हुई झिल्ली का उपचार भी इस तकनीक से कर सकते हैं। * ओस्टिओआर्थराइटिस (उम्र बढ़ने के साथ-साथ
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होने वाला जोड़ों का घिसाव) में जोड़ों की सफाई भी इस तकनीक से की जा सकती है। * कार्टिलेज की बीमारी की शुरुआती अवस्था में ही इस तकनीक का प्रयोग करके जोड़ों में होने वाले घिसाव को कम किया जा सकता है। * घुटने की कटोरी के अपनी जगह से बार-बार फिसल जाने की बीमारी का उपचार भी इस तकनीक से कर सकते हैं।

आर्थोस्कोपिक सर्जरी के लाभ

* जोड़ों से संबंधित ज्यादातर शल्यक्रियाएँ आर्थोस्कोपिक तकनीक से कर सकते हैं। * जोड़ों की समस्या की शुरुआत में ही यदि आर्थोस्कोपिक तकनीक का लाभ मिल जाता है तो कई बार भविष्य में होने वाले जोड़ों के नुकसान को कम किया जा सकता है। *इसमें छोटे-छोटे छिद्रों से ऑपरेशन किया जाता है इसलिए त्वचा पर दाग (स्कार) एवं जोड़ों में संक्रमण (इंफेक्शन) का खतरा बहुत ही कम होता है। *जोड़ के अंदर की रचना को बारीकी से और कई गुना बड़ा टीवी स्क्रीन पर देखा जाता है इसलिए उपचार ज्यादा बेहतर तरीके से और पूर्ण रूप से संभव होता है।

* आमतौर पर ऑपरेशन के बाद मरीज को प्लास्टर की आवश्यकता नहीं होती है एवं मरीज ऑपरेशन के दूसरे दिन से चलने-फिरने में सक्षम होता है। * ऑपरेशन के दिन या दूसरे दिन ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है और वह शीघ्र ही अपने काम पर लौट सकता है जिससे मरीज को आर्थिक रूप से भी यह तकनीक फायदेमंद एवं कारगर होती है। * ओपन सर्जरी की तुलना में इस तकनीक से ऑपरेशन करने में समय काफी कम लगता है और मरीज की फिजियोथैरेपी (मशीन द्वारा सिकाई, व्यायाम आदि) भी जल्दी शुरू की जा सकती है।

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