Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

टॉन्सिलाइटिस और होम्योपैथी उपचार

हमें फॉलो करें टॉन्सिलाइटिस और होम्योपैथी उपचार
डॉ. एस.के. सिन्हा
WDWD
आधुनिक जीवन में टॉन्सिलाइटिस यानी गले की बीमारी प्राय: हर घर के कम से कम एक सदस्य खासकर बच्चों को जरूर परेशान करती है। लिहाजा घर के प्रत्येक सदस्य उसके इस रोग से उद्विग्न दिखाई पड़ते हैं।

किस जगह होता है टॉन्सिलाइटिस: मुँह खोलने पर जीभ की जड़ के पास देखने पर उपजिह्वा दिखाई देती है। यदि यह देखने में आए कि उपजिह्वा ठीक दोनों ओर फूली हुई है और लाल है, वहाँ लसदार सर्दी लगी है, तो समझ लें कि टॉन्सिलाइटिस हुआ है।

इसे हिन्दी में तालुमूल-प्रदाह (तालुमूल-टॉन्सिल) और उस टॉन्सिल के प्रवाह को ही अँग्रेजी में टॉन्सिलाइटिस कहते हैं।

प्रकार - टॉन्सिलाइटिस दो प्रकार का होता है।
1. नया (acute) 2. पुराना (Chronic)
नए प्रकार के लक्षण - पहले दोनों ओर की तालुमूल ग्रंथि (टॉन्सिल) या एक तरफ की एक टॉन्सिल, पीछे दूसरी तरफ की टॉन्सिल फूलती है। इसका आकार सुपारी के आकार का हो सकता है। उपजिह्वा भी फूलकर लाल रंग की हो जाती है। खाने-पीने की नली भी सूजन से अवरुद्ध हो जाती है‍ जिससे खाने-पीने के समय दर्द होता है।

टॉन्सिल का दर्द कान तक फैल सकता है एवं 103-104 डिग्री सेल्सियस तक बुखार चढ़ सकता है।जबड़े में दर्द होता है। गले की गाँठ फूलती है, मुँह फाड़ नहीं सकता है। पहली अवस्था में अगर इलाज से रोग न घटे तो धीरे-धीरे टॉन्सिल पक जाता है और फट भी सकता है।

पुरानी बीमारी के लक्षण - जिन व्यक्तियों को बार-बार टॉन्सिल की बीमारी हुआ करती है तो वह क्रोनिक हो जाती है। इस अवस्था में श्वास लेने और छोड़ने में भी कठिनाई होती है तथा टॉन्सिल का आकार सदा के लिए सामान्य से बड़ा दिखता है।

टॉन्सिल्स के प्रकार

1. कैटेरल 2. फॉलिक्यूलर 3. सुपरेटीव

पथ्य - घूँट लेने या निगलने में तकलीफ के चलते पतला द्रव्य पदार्थ (दूध, फल का रस, बार्ली, पतला दलिया (नमकीन या मीठा कोई भी), शाकाहारी या माँसाहारी सूप।
फॉलिक्यूलर टॉन्सिलाइटिस - एपिस मेल, बेलाडोना, कैलीक्यूर, मरक्यूरियसबिन आयोड, फाईटोलैक्का को नीचे की पोटेंसी फायदेमंद है।
हाइपरट्रो‍फाइड टॉन्सिलाइटिस - बेराइटाकार्ब बेराईटा आयोड, बेराईटा क्यूर, आयोडिन, फैटॅलैक्का, कैल्केरिया कार्ब, कोलचिकम इत्यादि कारगर है।

साधारण औषधि - बेराईटा, बेलाडोना, एसिड बेन्जो, बार्बेरिस, कैन्थर, कैप्सिकम, सिस्टस, फेरमफॉस, गुएकेम, हिपर सल्फर, हाईड्रैस्टीस, इग्नेसिया, कैलीबाईक्रोम, लैकेसिस, मरक्युरियस, लाईकोपोडियम, मर्क प्रोटो ऑयोड, मर्क बिन आमोड, नेट्रम सल्फ, एसिड नाइट्रीकम, फाईटोलैक्का, रसटक्स, सालिसिया, सल्फर एवं एसिड सल्फर कारगर दवाएँ हैं।

क्रोनिक की अवस्था में 200 पोटेन्सी की उपरोक्त लक्षणानुसार दवा बारंबारता से दोहराव करने पर रोग का कुछ महीनों में शमन होता है एवं आरोग्यता आती है।

होम्योपैथिक दवाओं के टॉन्सिलाइटिस में प्रयोग से सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कभी-कभी सर्जरी के बाद भी गले में खिंचाव का दर्द लिए रोगी मिलते हैं । अत: वैसे रोगी जो सर्जरी से बचना चाहते हैं या कम उम्र के बच्चे , डायबिटीज अथवा हृदय रोग से पी‍ड़ित रोगी जिन्हें टॉन्सिल्स हैं, एक बार होम्योपैथिक दवाओं का चमत्कार आजमा कर स्वस्थ हो सकते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi