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आहार का रखें खास ख्याल

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कई देशों में किए गए प्रयोगों से यह सिद्ध होता है कि भोजन करने का सर्वोत्तम समय सुबह उठने के एक घंटे बाद से सूर्यास्त तक का है। हम भारतीय प्राचीनकाल से इसे ही अपनाते आए हैं। प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया गया है कि सूर्यास्त के बाद देरी से खाने और गरिष्ठ आहार का सेवन करने से पाचन-शक्ति मंद पड़ती है। परिणामस्वरूप चर्बी बढ़ती है या पैदा होती है।

भारतीय आयुर्वेद पद्धति में इस बात का विस्तृत वर्णन किया गया है कि भिन्न-भिन्न प्रकार के अन्न, साग, सब्जी (भाजी), मसाले, फल, दूध, दही, छाछ, औषधि, खनिज आदि का सेवन करने पर उनका क्या-क्या असर होता है। आयुर्वेद हमें बड़ी बारीकी से समझाता है कि कौन-सा आहार लेना चाहिए, कैसे लेना चाहिए और कब लेना चाहिए। रसोईघर के मसालों को दवा के रूप में कैसे उपयोग किया जाए (जैसे, हल्दी, जीरा, हींग, नमक, मैथी आदि)। इन सबका अनुशीलन कर कार्यान्वयन करना बहुत ही हितकारी होगा।

साधारण मनुष्य के रूप में हमें इतना ध्यान जरूर रखना चाहिए कि हमारे पेट का चूल्हा बराबर काम करता रहे और हम जो आहार लें वह ठीक से पच जाए। 35 वर्ष की आयु के बाद हमें इस बात का पता चल जाता है कि कौन-कौन-सी वस्तुएँ हमारे लिए अनुकूल हैं। इसके बाद ऐसी वस्तुएँ हमें अपने आहार से छाँट देनी चाहिए।

स्वाद की संतुष्टि के लिए कुछ भी खा सकते हैं, क्योंकि स्वाद भी जीवन का बेजोड़ आनंद है। लेकिन उस समय प्रकृति के संकेत का बराबर पालन कीजिए। पहली डकार आने पर खाना बंद करना शुरू कर दीजिए। दूसरी डकार स्पष्ट बताती है कि पेट भर गया है। इतने पर भी खाना जारी रखा तो वह पेट के रोगों को निमंत्रण देने के बराबर होता है। इसके अलावा ऋतु के अनुसार आहार में भी आवश्यक परिवर्तन करते रहिए।

आप जो भी आहार लें, उसका ठीक से पाचन हो इस बात को ध्यान में रखकर जठराग्नि को बराबर प्रदीप्त रखिए। अदरक, काली मिर्च, करेला, नीम और मैथी जैसे तीखे व कड़वे पदार्थ, सूर्य-स्नान, कसरत वगैरह से यह जठराग्नि प्रदीप्त है, जबकि ठंडे पेय (आइसक्रीम) आदि से जठराग्नि मंद पड़ती है तथा पाचन तंत्र पर बोझ बढ़ता है। याद रखिए गर्मी जीवन है और ठंड मृत्यु। इस सूत्र को ध्यान में रखकर ही खाना-पीना चाहिए।

इसके अलावा अंकुरित दलहन बहुत पोषक होते हैं। यथासंभव पत्ता गोभी, खजूर, द्राक्ष व कुछ गुड़ डालने से अनोखा स्वाद आता है और हर प्रकार का पोषक (विटामिन 'बी' कॉम्प्लेक्स, विटामिन 'सी' और 'ई') एवं खनिज उपलब्ध हो जाता है। इसलिए वे सबके लिए उपयोगी हैं। विकासशील बच्चे, गर्भवती स्त्रियाँ और वृद्ध व्यक्ति तो इसे जरूर खाएँ। वजन कम करने के लिए अंकुरित दालें (दलहन) उपयोगी हैं, किंतु उस समय खजूर, गुड़, द्राक्ष का प्रयोग यथासंभव कम करें।

भोजन के बाद हममें स्फूर्ति बढ़नी चाहिए, शरीर हल्का लगना चाहिए और स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि हम काम कर सकें और जरूरत पड़ने पर दौड़ सकें। यदि भोजन के बाद शरीर भारी लगे, आलस्य या नींद आए, तो समझ लीजिए कि या तो आपकी पाचन शक्ति कमजोर है या हमने बिना चबाए जल्दी-जल्दी और आवश्यकता से अधिक खा लिया है। आहार में अदरक, नींबू और आँवला लें। प्रतिदिन खाली पेट एक प्याला गरम पानी लें। संभव हो तो 2-3 बार छाछ लें। पत्तेदार भाजियाँ भोजन में अवश्य लें। ये सावधानियाँ रखें और स्वस्थ जीवन पाएँ।

अच्छी पाचन शक्ति बनाए रखने के लिए ध्यान रखने हेतु विशेष बातें

* आहार ठीक से पकाया हुआ होना चाहिए और उसे गरम-गरम (उचित) खाना चाहिए।

* ऐसे गेहूँ के आटे का उपयोग करना चाहिए जिसमें से चोकर न निकाला गया हो। चावल मशीन द्वारा पॉलिश हुए सफेद चावल का उपयोग कम कीजिए।

* तली हुई वस्तुओं का उपयोग कम कीजिए।

* आहार में छाछ, दही अधिक मात्रा में लें।

* ऋतु के अनुसार फल, साग-भाजी (कच्ची या ठीक से पकाई हुई) का सेवन करना चाहिए।

* आहार को अच्छी तरह चबाइए।

* दो बार के भोजन के बीच 5-7 घंटे का अंतराल दीजिए।

* दो बार के भोजन के बीच पानी या छाछ के सिवा कुछ भी खाने-पीने की आदत बंद कीजिए।

* पेट भी एक यंत्र है। उसे भी सप्ताह में दो जून पर्याप्त आराम देना चाहिए। उस समय फल, फलों का रस या कुनकुना (गरम) जल ले सकते हैं।

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