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कितना खाएँ पान बनारस वाला

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डॉ. संजीव कुमार लाले़
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पान औषधि है किंतु अधिक मात्रा में सेवन करने से अन्य रोग भी उत्पन्न करता है, जिनमें प्रमुख दंतदौर्बल्य, रक्त की कमी (एनीमिया), नेत्ररोग एवं मुख के रोग हैं। जैसा कि कहा गया है अति सर्वत्र वर्जयेत, अर्थात किसी भी चीज की अति बुरी होती है। लोग चाहे जब पान खा लेते हैं तथा कई निरंतर चबाते रहते हैं। इससे फायदा होने के बजाय नुकसान अधिक होता है।

पान का प्रचलन अत्यंत प्राचीन समय से चला आ रहा है। भोजन के पश्चात पान का सेवन करते प्रायः लोगों को देखा जा सकता है। भोजन पश्चात पान का सेवन भोजन को पचाने हेतु एवं मुखशुद्धि (माउथ फ्रेशनर) के रूप में होता है। इसका प्रचलन आयुर्वेद में प्राचीनकाल से है। उस समय औषधि के रूप में पान का सेवन किया जाता था।

पान के साथ कपूर, जायफल, लवंग, कत्था, लताकस्तूरी, शीतलचीनी, चूना व सुपारी को डालकर खाया जाता था। इससे मुख में दाँत, जीभ, मुँह में अधिक कफ आना, भोजन में अरुचि एवं गले के रोगनष्ट होते थे। इसके अतिरिक्त कृमि को नष्ट करने वाला एवं कामोत्तेजक होता था।

पान क्षारीय (अल्कली) प्रकृति का होता है यह मुख की दुर्गन्ध, कफ, थकावट एवं स्वरयंत्र (लेरीग्स) के रोगों को नष्ट करता है।

पान लता प्रजाति की वनस्पति है तथा इसका पत्ता ही पान कहलाता है। इसे औषधि के रूप में ग्रहण किया जाता है। संस्कृत में ताम्बूल, ताम्बूलवल्ली, नागवल्ली आदि अनेक नामों से जाना जाता है। अँगरेजी में बिटल लीफ एवं बॉटनी में इसे पाइपर बीटल कहा जाता है यह पाइपरेसीफेमेली का सदस्य है। पान की अनेक प्रजातियाँ होती हैं आयुर्वेद में सात प्रकार की जातियाँ बताई गई हैं।

1. श्रीवटो (सिरिवाडी पान) 2. अम्लवाटी (अंबाडे पान) 3. सतसा (सातसी पान) 4. गुहागरे (अडगर पान) 5. अम्लसरा (मालवा में होने वाला अंगरा पान) 6. पटुलिका (आंध्रप्रदेश का पोटकुली पान) 7. ह्वेसणीया (समुद्र देश का पान) इसके अतिरिक्त बंगला, साँची, महोबा, महाराजपुरी, विलोआ, कपूरी, फुलवा आदि अनेक प्रजातियाँ सेवन की जाती हैं।


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पान के रासायनिक संगठन में उड़नशील तेल (0.2-1.2%), स्टार्च, शर्करा, टेनिन, विटामिन 'ए', 'सी' अधिक प्रमाण में होता है। कुछ मात्रा में आयरन, आक्सेलिक एसिड, एमिनो एसिड पाया जाता है। डायस्टेस (0.8-1.8%), फेनाल भी पाया जाता है।

पान के रस में चविकॉल नामक तत्व होता है जो कार्बोलिक एसिड की तुलना में पाँच गुणा अधिक 'एंटिसेप्टिक' का कार्य करता है। पान में 'डायास्टेस' होने के कारण यह भोजन के स्टार्च जैसे तत्वों के पाचन में सहायक होते हैं एवं पान चबाने पर मुँह में अधिक पाचक तत्वों का स्त्राव होता है जो भोजन के पाचन में सहायक होता है।

सेवन कब करें
सोकर उठने के बाद। भोजन करने के बाद। स्नान करने के बाद। उल्टी (वोमिटींग) होने के बाद।

कब न करें
दूध पीने के बाद। अधिक दस्त लगने पर। नेत्र रोगों में। दुर्बलता एवं मूत्र संबंधी व्याधियों में।

पान का पहला पीक दोषों को बढ़ाता है अतः अहितकारी है, दूसरा पीक दुर्जर तथा तीसरे पीक के बाद अमृत समान है। अतः पहले दो पीक थूक देना चाहिए। पान में सुपारी कम होने पर पान का रंग अच्छा आता है । अधिक सुपारी होने पर रंग ठीक नहीं आता है। चूना अधिक मात्रा में होने पर दुर्गंध आती है एवं कत्थे की मात्रा अधिक होने पर सुगंध आती है।
  पान का सेवन मुख के रोगों में मुखशुद्धि के रूप में एवं भोजन के पाचन हेतु किया जाता है परंतु व्यक्तियों को इसका व्यसन हो जाता है। पान के व्यसनी व्यक्ति पान खाने पर अच्छा महसूस करता है।      

पान के कुछ औषधि प्रयोग
1. खाँसी, कफ, श्वांस रोग में इसके पत्तों का रस शहद से लेने पर उक्त रोगों में लाभ होता है।

2. सूजन, गाँठ व्रण होने पर इसके पत्ते गर्म करके बाँधने से जलन वेदना कम हो जाती है।

3. इसके पत्र के डंठल से (चिकित्सक की देखरेख में) चूने को मस्से पर एक सप्ताह तक लगाने से मस्सा जलकर गिर जाता है।

पान औषधि है किंतु अधिक मात्रा में सेवन करने से अन्य रोग भी उत्पन्न करता है जिसमें प्रमुख दंतदौर्बल्य, रक्त की कमी (एनीमिया), नेत्ररोग एवं मुख के रोग हैं।

पान का सेवन मुख के रोगों में मुखशुद्धि के रूप में एवं भोजन के पाचन हेतु किया जाता है परंतु व्यक्तियों को इसका व्यसन हो जाता है। पान के व्यसनी व्यक्ति पान खाने पर अच्छा महसूस करता है। उसका मन प्रसन्न एवं थकावट दूर होती है। यह अल्प मात्रा में कामोत्तेजक भी होता है। हालाँकि इसकी लत के कोई घोषित दुष्परिणाम नहीं होते।

लेकिन निरंतर खाते रहने से इसका फायदा सीमित हो जाता है। लगातार कत्थे, चूने और सुपारी के संपर्क में रहने से दाँत खराब हो जाते हैं। जरूरी है कि पान खाने के बाद दाँतों को ठीक प्रकार सफाई करें। लेकिन देखा गया है कि अक्सर पान खाने के बाद कोई ब्रश नहीं करता। आयुर्वेद में धरती पर पाई जाने वाली हर वनस्पति को औषधि माना गया है, पान भी इसमें से एक है। हर औषधि एक सीमा में फायदा देती है।

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