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मक्खन से बने मुलायम और मजबूत

मक्खन : चिकनाईयुक्त खाद्य

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मक्खन, माखन या बटर दुग्ध वर्ग का एक उत्पादन है, जो दही को बिलोकर (मथ) छाछ बनाते समय निकलता है। मक्खन को तपाकर ही घी निकाला जाता है।

मक्खन का प्रयोग ज्यादातर ब्रेड और टोस्ट पर लगाकर खाने या दाल, शाक में डालकर खाने या सूप में डालकर पीने में किया जाता है। आयुर्वेद ने मक्खन के गुण-धर्म और प्रभाव के विषय में उपयोगी जानकारी दी है।

गाय के दूध से निकाला हुआ मक्खन हितकारी, वृष्य, वर्ण को उत्तम करने वाला, बलकारी, अग्नि प्रदीपक, ग्राही और वातपित्त, रक्त विकार, क्षय, बवासीर, लकवा तथा खाँसी को नष्ट करता है। मक्खन बालक और वृद्ध के लिए हितकारी है। बच्चों के लिए तो मक्खन अमृत की तरह है।

मक्खन में थोड़ा अंश पानी व सूक्ष्म मात्रा में केसीनोजिन होता है अतः अधिक देर तक रखा रहने पर इसमें से दुर्गन्ध आने लगती है। इसमें कई वसाम्ल होते हैं जो छोटी आँत में विटामिन बी की प्रचूषण प्रक्रिया में सहायक होते हैं। मक्खन में विटामिन ए, डी, नमी 18 प्रतिशत व चिकनाई 80 प्रतिशत होती है।

भैंस के दूध का मक्खन : भैंस के दूध का मक्खन वात तथा कफ कारक, भारी और दाह, पित्त तथा थकावट को दूर करने वाला है और मेढ़ तथा वीर्य बढ़ाने वाला होता है।

ताजा मक्खन : ताजा मक्खन मधुर, ग्राही, शीतल, हलका, नेत्रों को हितकारी, रक्त पित्त नाशक, तनिक कसैला और तनिक अम्ल रसयुक्त (खट्टा) होता है।

बासी मक्खन : खारा, चटपटा और खट्टा हो जाने से वमन, बवासीर, चर्म रोग, कफ प्रकोप, भारी और मोटापा करने वाला होता है अतः बासी मक्खन सेवन योग्य नहीं।

* मक्खन का उपयोग किसी खाद्य पदार्थ पर लगाकर खाने में किया जाता है या आयुर्वेदिक औषधियों में वाजीकारक और उष्ण प्रकृति की औषधियों के विकल्प के रूप में किया जाता है।

* ताजे मक्खन के शिशु के शरीर पर मालिश करके आधा घण्टा सुबह की धूप में लिटाने से उसे सूखा रोग नहीं होता।

* मुख पर रोजाना मक्खन लगाकर मालिश करने और आधे घण्टे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालने से चेहरे की त्वचा का रंग साफ होता है, फुंसी मुँहासे या झाइयाँ हो गई हों तो ठीक हो जाती हैं।

* दुबले बच्चों, युवक-युवतियों को प्रतिदिन मक्खन-मिश्री 1-1 चम्मच या अपनी पाचन शक्ति के अनुसार सुबह खाली पेट खाना चाहिए। देर का रखा हुआ, खट्टा और दुर्गन्धित मक्खन सेवन योग्य नहीं होता।

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