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अंतरंग बहिरंग: सार्थक नाट्य विमर्श

राजकमल प्रकाशन

हमें फॉलो करें अंतरंग बहिरंग: सार्थक नाट्य विमर्श
पुस्तक के बारे में
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पुस्तक 'अंतरंग बहिरंग' में नाटक की दर्शकीयता, नाटक का अध्ययन और अध्‍यापन, रंगमंच और नाटक, हिन्दी में मौलिक नाटक लेखन की समस्याएँ, भारतेंदु का रंग-चिंतन, नाटककारों के सामाजिक सरोकार, रंगमंच और नारी तथा दलित, मृच्छकटिकम और यहूदी की लड़की की प्रस्तुतियों का अध्ययन, आदि विषयों को छूते हुए देवेंद्र राज अंकुर ने हिन्दी में आधुनिक नाट्य विमर्श की कमी को दूर किया है। देवेंद्र राज अंकुर गत कई दशकों से भारतीय रंगमंच और खासतौर से हिन्दी थिएटर के साथ गहराई के साथ जुड़े हैं।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
'नाटककार को नाटक की एक मूल विशेषता को हमेशा याद रखना है और वह यह है कि नाटक एकमात्र ऐसी विधा है जो हमेशा वर्तमान काल में घटित होती है। साहित्य की दूसरी विधाओं के साथ ऐसा नहीं होता। यहाँ तक कि नाटक की कहानी बेशक भूतकाल या भविष्यकाल से संबद्ध हो, तब भी उसे घटित वर्तमान में ही होना पड़ता है।'
('नाटक लिखने का व्याकरण' से)
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'आज जरूरत इस बात की है कि रंगमंच और संचार माध्यमों को परस्पर विरोधी तत्वों के रूप में न देखकर एक-दूसरे के पूरक तत्वों के रूप में देखा जाए ताकि भावी नाटक और रंगमंच की एक ऐसी परिकल्पना को साकार रूप में दिया जा सके जिसमें शब्द भी हों, अभिनेता भी हों और दोनों के सामंजस्य से बनते-सँवरते दृश्य भी हों। तामझाम हो या न हो यह उसका निर्णायक कारक तत्व नहीं होना चाहिए।'
('हिन्दी में मौलिक नाट्‍य लेखन की समस्याएँ' से)
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'इतिहास साक्षी है कि दुनिया में जब भी कहीं भी अच्छा, समर्थ और सशक्त रंगमंच हुआ है, उसकी बुनियाद नाटककार के आलेख पर ही आधारित रही है। बेशक एक लंबी परंपरा मौलिक आलेखों की भी रही और उसके बाद निर्देशकों ने भी अपने आलेख स्वयं लिखे और आज भी लिखते रहे हैं। लेकिन उन्हें आलेख की दृष्टि से कभी बड़ी रचनाओं के रूप में नहीं लिया गया।
(नाटककार रंगमंच के लिए क्यों लिखे' से)

समीक्षकीय टिप्पणी
रंगमंच के विविध पहलुओं पर रोशनी डालती विख्यात नाट्‍य चिंतक व निर्देशक देवेंद्र राज अंकुर की यह पुस्तक हिन्दी की एक उपलब्धि के रूप में देखी जानी चाहिए। इस पुस्तक में उन्होंने नाटक में लेखन से लेकर उसकी प्रस्तुति तक के विभिन्न पड़ावों को लेकर विचार किया है। इस पुस्तक के माध्यम से देवेंद्र राज अंकुर ने विभिन्न नाटकों की प्रस्तुतियों के विश्लेषण तथा थिएटर के इतिहास और वर्तमान की विभिन्न समस्याओं पर अपने निर्णायक विचार हिन्दी जगत को दिए हैं।

पुस्तक : अंतरंग बहिरंग
लेखक : देवेंद्र राज अंकुर
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 236
मूल्य : 250 रुपए

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