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आधी आबादी का संघर्ष

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे में
राजस्थान की महिलाओं का, अपनी अस्मिता और पहचान के लिए किए गए संबंधों की विकट गाथा है - आधी आबादी का संघर्ष। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि राजस्थान के महिला आंदोलन की बागडोर मुख्‍यत: मजदूर महिलाओं के हाथों में रही इसलिए उसने कभी भी समाज के ध्रुवीकरण का रास्ता नहीं लिया। इस आंदोलन का रुझान पुरुषों की बराबरी करना रहा - पुरुष विरोध नहीं।

विविध महिला आलेखन एवं संदर्भ केंद्र व विविधा फीचर्स, जयपुर ने राजस्थान की आधी आबादी के गुमनाम सफर का इस पुस्तक में दस्तावेजीकरण का काम किया है। पुस्तक भारतीय महिला आंदोलन के स्वरूप को समझने का एक सार्थक उपक्रम है।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
* राजस्थान में कई इलाकों में आज भी कन्या- वध की परंपरा है। इसी रिवाज के चलते बाड़मेर के हाथी सिंहपुरा गाँव में राठौरों के परिवारों में चार सौ लड़कों में मात्र दो ही लड़कियाँ हैं। जबकि जैसलमेर के देवरा गाँव में एक सौ दस साल बाद किसी बेटी की बारात आई है। यहाँ भाटियों के परिवार की जीवित बची पहली कन्या का विवाह 17 वर्ष की आयु में किया गया। इस गाँव में सौ भाटी परिवारों में मात्र पाँच लड़कियाँ ही जीवित हैं।
('आजादी के पश्चात औरतों की स्थिति' से)
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* दहेज हत्याओं के इर्द-गिर्द प्रारंभ हुए प्रदर्शन से राजस्थान की पुलिस ने दहेज हत्याओं को आत्महत्या कहना थोड़ा कम किया। अभी तक इस तरह के मामलों को घरेलू मसला मानकर पुलिस ज्यादा ध्यान नहीं देती थी। कुछ ही‍ दिनों में महिला संगठनों ने इस तरह की सोच को उलट दिया। इस तरह की मृत्यु को दहेज-यातना से जोड़ा जाने लगा था। महिला संगठनों ने इस बात पर जोर दिया कि लड़की को मरने नहीं देना है। जब पता लगे कि किसी लड़की को दहेज के कारण सताया जा रहा है तब उसे बचाना जरूरी है। परिवारों के पितृसत्तात्मक सोच को बदलना प्रारंभ किया।
('महिला हिंसा के खिलाफ आंदोलन' से)
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* राजस्थान की महिलाएँ आंदोलन करने और कुर्बानी देने में किसी से पीछे नहीं थीं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देशी राज्यों के अधीन होते हुए भी राजस्थान की महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। अखिल भारतीय व स्थानीय गतिविधियों में राजस्थान की महिलाएँ कंधे से कंधा मिलाकर खडी नजर आई थीं। 1927 में अखिल भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस की स्थापना हुई। राजस्थान भी तब इससे अछूता नहीं रहा। इस संस्था की राजस्‍थान में भी शाखा बनी। महारानी गायत्री देवी इसकी अध्यक्ष बनी।
('महिला आंदोलन : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ' से)
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समीक्षकीय टिप्पणी
राजस्थान में देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा रजवाड़ों और जागीरदारों का जबरदस्त दबदबा रहा, लेकिन जैसे ही सामंती व्यवस्था हटी तब औरतों के लिए अवसर आए, शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। अपनी स्थिति पर उनके बीच चर्चा व मंथन की शुरुआत हुई तथा राजस्थान की आम औरतों ने अपनी आवाज को बुलंद करना शुरू किया।

यह एक पुनर्जागरण की शुरुआत थी। इस पुनर्जागरण से राजस्थान की महिलाओं के सामाजिक/व्यवहारिक/पारिवारिक/ शैक्षिक और आर्थिक स्थितियों में जो तब्दीलियाँ आईं उसका लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रही है यह पुस्तक।

पुस्तक : आधी आबादी का संघर्ष
लेखक : ममता जैतली- श्री प्रकाश शर्मा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 356
मू्ल्य : 350 रुपए

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