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कोहरे में कंदील : सच की कहानियाँ

पुस्तक समीक्षा

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इलाशंकर गुहा
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अवधेश प्रीत का नया कहानी संग्रह 'कोहरे में कंदील' आज के समाज, मध्यवर्गीय और ग्रामीण दोनों के जीवन के सच को उजागर करती कहानियों का संग्रह है। वस्तुतः कहानी आँखन देखी और कानन सुनी की पुनर्बयानी ही है जो कल्पना के पंख पर सवार होकर आकाश की अनंत ऊँचाइयाँ तय करती हैं।

इस संग्रह में अवधेश की दस नई कहानियाँ हैं। जिन्हें पढ़ना अपने समय की विसंगतियों, भ्रष्टाचार और टूटते-बदलते समाज से रूबरू होना है। वे सामान्य शिल्प का सहारा लेते हैं। अधिक आदर्शवादिता या अनावश्यक वैचारिक फैलाव के बदले वे सीधे अपना कथ्य आपके सामने रखते जाते हैं। जटिलता या उलझाव पर उनका आग्रह नहीं है बल्कि वे कथा को आपको सुनाने से लगते हैं।

यही सरलता, लोकभाषा का प्रयोग और पात्रों की केंद्रीय भूमिका उनकी कहानी को सशक्त बनाता है- चाहे 'फिरंट' हो या 'चरित्तर नेतवा' या 'शीतल' सभी पात्र हमारे आज के समाज में मौजूद हैं, हमारे आसपास ही हैं। लेखक को कोहरे के कई रूप दिखाई पड़ते हैं ये कुहासा घना भी है, ऊपर तक छाया हुआ। इसी में वे मनुष्य की जिजीविषा की तलाश करते हैं। आशा की किरण ने कंदील की तरह राह दिखाई हैं-इसमें।

आज का शिक्षातंत्र अपनी तमाम ऊँचाइयाँ छूने के बाद भी कस्बाई या गाँव के स्तर पर अभी भी बुनियादी रूप से कमजोर है। पहली कहानी 'छलांग' इसी की एक बानगी पेश करती है। हर जगह कुछ सिद्धांतवादी, आदर्शवादी लोग होते हैं जो समाज को, बच्चों को कुछ आगे बढ़ाना चाहते हैं, पर शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण का तंत्र आदर्श को लील जाता है।

'लबरा' इस संकलन की सबसे रोचक और जीवंत कहानी है। बिहार-उत्तर प्रदेश के ग्राम्य समाजों में आज भी भांड पार्टियों का प्रचलन है। मेले-ठेले, शादी-ब्याह में ये मनोरंजन करते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं। इनके बीच एक अन्य पात्र 'नेतवा' यानी नेता भी आ जाता है जो इनकी लोकप्रियता को अपने लिए इस्तेमाल कर उन्हें अपने दल में शामिल करना चाहता है। चरित्तर जाता तो है पर फिर उसे कलाकार की स्वतंत्र चेतना का अहसास होता है- और वह राजनीतिक दंभ के संसार से अपने को मुक्त पंछी की भांति अगल कर लेता है।

कहानी 'फसाद का मैदान' दो मोहल्लों के बच्चों के बारे में है जो कचरे के मैदान को क्रिकेट के मैदान में बदल देते हैं। 'डस्टर' एक प्रतीकात्मक कथा है जो मध्यवर्गीय परिवार में लड़कियों के विवाह की समस्या उजागर करती है। ऐसे ही अव्यक्त प्रेम की कहानी है 'प्रेमकथा'। दुर्दिनों का मारा नौजवान जीवन दफ्तर की एक सहकर्मी दीपा से डाँट खाता है। बाद में दुर्घटना के बाद अस्पताल में मिलने आने वालों से जीवन पूछता है, सब आए दीपा नहीं आई। उसके अव्यक्त संसार में एक हलचल सी मचती है- इस अनाम प्रेम में।

बाढ़ और भ्रष्टाचार का चोली-दामन का साथ है। बिहार हमेशा बाढ़ की चपेट में आता रहता है। गाँव के गरीब लोगों को इस बहाने कैसे ठगा और उनका शोषण किया जाता है। यही कथानक है 'उफान' कहानी का। संग्रह की अन्य कहानियाँ 'जड़ें', 'केंचुल', 'अगला मौसम' भी पठनीय हैं और जीवन के कई अनछुए पहलुओं को प्रकट करती हैं। अवधेश प्रगतिशील विचारधारा के पक्षधर हैं और मनुष्य के पक्ष में अपनी बात बिना कोई मुलम्मा चढ़ाए कहते हैं। कंदील कहीं न कहीं तो कोहरे में उजाला करेगी ही, ऐसी संभावना वे जगाते हैं।

पुस्तक : कोहरे में कंदील
लेखक : अवधेश प्रीत
प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन
मूल्य : 100 रुपए

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