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चर्चा हमारा : एक बेबाक संकलन

पुस्तक समीक्षा

हमें फॉलो करें चर्चा हमारा : एक बेबाक संकलन
ज्योति चावला
ND
स्त्री विमर्श की दुनिया में हिंदी में महत्वपूर्ण काम हो रहा है। इनमें जिन विमर्शकारों का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है, उसमें स्वर्गीया प्रभा खेतान, अनामिका, मनीषा आदि के साथ मैत्रेयी पुष्पा का नाम प्रमुख हैं। वे एक अच्छी कथाकार के साथ-साथ स्त्री चिंतक भी हैं।

मैत्रेयी पुष्पा की नई पुस्तक 'चर्चा हमारा' उनके द्वारा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्त्री संबंधी विषयों पर लिखे गए लेखों का संग्रह है। इस पुस्तक में उनकी अन्य रचनाओं की तरह उद्वेग भी है और उद्वेलन भी। वे लिखते हुए कई बार भावुक भी हो जाती हैं, जहाँ तर्क के साथ संवेदनाएँ गड्डमड्ड हो जाती हैं लेकिन यदि ठहरकर विचार किया जाए तो किसी भी विमर्श के लिए इस तरह का अतिरेक शायद जरूरी भी है।

इस पुस्तक में उनके कई लेख बेहद विचारणीय हैं। 'श्लीलता की रक्षा के लिए जिंदगी को तबाह कर दूँ, ऐसे दबाव से इंकार करती हूँ।' लेख का शीर्षक ही पाठक में उत्तेजना पैदा कर देता है। क्या यह सच नहीं है कि स्त्रियों को श्लीलता और सामाजिक मर्यादाओं की बेड़ियों में कैदकर गुलाम बनाया जाता रहा है?

एक अन्य लेख है 'विरोध को सहनशक्ति के क्षय का नतीजा माना गया है' यह लेख पढ़ते हुए प्रेमचंद की कहानी 'बड़े घर की बेटी' याद आ जाती है, जिसमें प्रेमचंद ने एक आदर्श भारतीय स्त्री का चित्र खींचा है। देवर के हाथों अपमान सहकर भी यदि वह अपने सम्मान की बात न कर, परिवार के लिए अपमान का घूँट पी जाती है तो वह बड़े घर की बेटी है। स्त्रियाँ यदि विरोध करना सीख रही हैं तो यह कहा जा रहा है कि भारतीय संस्कृति खतरे में है।

किंतु सत्य यह है कि संस्कृति की पर्याय पुरुषवादी मनोवृत्ति संकट में है। संसद में स्त्रियों को मिलने वाले 33 प्रतिशत आरक्षण, स्त्री संबंधी नैतिकता, स्त्री को गर्भ का पर्याय मानना व सेरोगेट मदर्स जैसी विदेशी अवधारणा पर भी मैत्रेयी अपनी बेबाक राय रखती हैं।

मैत्रेयी के इन लेखों को पढ़कर एकबारगी आप विचार में डूब जाते हैं और फिर दुनिया को स्त्री की दृष्टि से देखने की कोशिश करने लगते हैं। बाजार स्त्री की ताकत है या वह उसे केवल प्रोडक्ट में तब्दील कर रहा है, यह एक विचारणीय मुद्दा है। मैत्रेयी का इस पर अलग ही नजरिया है। वे लिखती हैं: 'कभी सोचा है मर्द क्यों विज्ञापनों में आने पर गर्व करता है? उसका वहाँ कैसा इस्तेमाल हो रहा है, इस ब्यौरे को कौन खोलेगा? बात तो यही है न कि आप औरत के क्रियाकलापों को उसके शरीर से जोड़कर देखने का चस्का पाले हुए हैं।' (करवट ले रही है अब औरतों की ताकत) ऐसे ही कई ज्वलंत मुद्दों पर तफ्तीश से लेख लिखती रही हैं मैत्रेयी, जो इस पुस्तक में संकलित किए गए हैं।

स्त्री देह इस दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है, शादी की उम्र क्या हो, यह लड़की को सोचना होगा, लड़कियों में प्रेम करने का रोग नहीं, साहस होता है, बलात्कार के मामलों का फैसला अब करेंगी महिलाएँ ऐसे ही कुछ लेख हैं। 'चर्चा हमारा' के लेखों का संकलन प्रतिभा कटियार ने किया है। यह उनकी समझदारी का सूचक है कि उन्होंने मैत्रेयी के बिखरे लेखों को न केवल एक जगह संकलित किया, अपितु एक सूत्र में पिरोया है।

पुस्तक : चर्चा हमारा
लेखिका : मैत्रेयी पुष्पा
प्रकाशन : सामयिक प्रकाशन
मूल्य : 300 रुपए

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