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लिखे में दुक्ख : छोटी कविताओं का बड़ा संग्रह

दुख सबको मांजता है

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साधना अग्रवाल
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लीलाधर मंडलोई समकालीन कविता के उर्वर प्रदेश के वरिष्ठ नागरिक हैं। 'घर-घर घूमा' से लेकर अब तक उनके आधा दर्जन से ऊपर कविता संग्रह निकल चुके हैं। 'लिखे में दुक्ख' लीलाधर मंडलोई की कविताओं का संग्रह है जिसमें उनकी 98 कविताएँ संकलित हैं। बेशक ये कविताएँ छोटी हैं। दो पंक्तियों से लेकर चौदह पंक्तियों तक की लेकिन इन कविताओं का आशय बड़ा है।

कवि का कमाल लंबी कविता लिखने में नहीं बल्कि छोटी कविता लिखने में है क्योंकि यहाँ उसके काव्य कौशल की परख होती है। वैसे तो हिंदी में अधिकांश कवियों ने छोटी कविताएँ भी लिखी हैं लेकिन श्रीकांत वर्मा अकेले ऐसे कवि हैं जिनके संग्रह 'दिनारंभ' को छोड़कर जिसमें सिर्फ छोटी कविताएँ संकलित हैं, छोटी कविताओं की कोई स्वतंत्र पुस्तक नहीं है।

इस पुस्तक के ब्लर्व में विष्णु नागर ने भी इस ओर संकेत किया है। इस संग्रह के आरंभ में 'भाषा' शीर्षक से दो कविताएँ हैं जिसमें यदि एक तरफ कवि ने भाषा को अपनी पहचान मान लिया है तो दूसरी ओर भाषा को सपनों की सहयात्री कहा है। अगली कविता 'फूल' है जो चार पंक्तियों की है और मार्मिकता के साथ हमारे जीवन सत्य को उदघाटित करती है।

'लिखे में दुक्ख' शीर्ष कविता में अभिव्यक्त दुख को कवि व्यक्तिगत दुख नहीं बल्कि सार्वजनिक दुख बनाना चाहता है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो मुहावरे की भाषा में कहता है -'मेरे लिखे में/अगर दुक्ख है/और सबका नहीं/मेरे लिखे को आग लगे।' यानी कई बार लोक प्रचलित मुहावरे कवि की अभिव्यक्ति में कौंध पैदा करते हैं। दुख के बाद सुख भी जीवन में आता है। लेकिन कवि की दृष्टि में यह सुख भी व्यक्तिगत नहीं है बल्कि धूल-धड़ के बाद पिता द्वारा घर की सफाई 'गुजरते लोगों की आँखों के सुख के लिए है।'

'मिथिला के लोग' भी इस संग्रह की एक छोटी कविता ही है जिसका आधार सीता से संबंधित लोक प्रचलित पौराणिक आख्यान तथा मिथक और किंवदंती है। कविता इस प्रकार है - 'इतना दुख/इतना अपमान/इतनी घृणा/मिथिला के लोग/नहीं ब्याहते अपनी बेटी/अयोध्या में।' इस संग्रह की छोटी कविताएँ इसलिए भी पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती हैं कि इसमें हमारे जीवन समाज के यथार्थ को कवि ने शब्द स्फीति के बावजूद गहराई से उद्घाटित किया है।

इन कविताओं में यदि एक तरफ स्मृतियाँ हैं, अवसाद है, व्यंग्य है, विद्रूपता और विडंबना है तो दूसरी तरफ एक गहरी उदासी और निर्विकार भाव से परिवेश का अवलोकन और जीवन-जगत के सुख-दुख के बारे में एक समाधिस्थ तटस्थता। निश्चित रूप से इस संग्रह की कविताओं ने पाठकों को आश्वस्त किया है कि लीलाधर मंडलोई की कविता का आकाश और बड़ा होगा।

पुस्तक : लिखे में दुक्ख
कवि : लीलाधर मंडलोई
प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन
मूल्य : 150 रुपए

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