Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हिन्दी कहानी का इतिहास : शोध प्रबंध

राजकमल प्रकाशन

हमें फॉलो करें हिन्दी कहानी का इतिहास : शोध प्रबंध
NDND
विगत दिनों राजकमल प्रकाशन ने बेहतरीन उपन्यासों की श्रृंखला प्रस्तुत की है। पेश है उनकी पुस्तक 'हिन्दी कहानी का इतिहास' का परिचय एवं प्रमुख अंश :

पुस्तक के बारे में
'हिन्दी कहानी का इतिहास' हिन्दी में, हिन्दी कहानियों का ही नहीं हिन्दी-उर्दू कहानियों का भी पहला समेकित इतिहास है। उल्लेखनीय है कि इस अवधि के अनेक कहानीकार एक साथ हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में लिख रहे थे। इनमें प्रेमचंद प्रमुख हैं। इसके अलावा सुदर्शन, उपेन्द्र नाथ 'अश्क' आदि की उर्दू और हिन्दी में भी साथ-साथ लिख रहे थे। इनकी हिन्दी और उर्दू में भी लिपि को छोड़कर, कोई विशेष अंतर नहीं है। इस पुस्तक में हिन्दी और उर्दू के साथ-साथ भोजपुरी, मैथिली और राजस्थानी कहानी-साहित्य को भी स्थान दिया गया है।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
संस्कृत से आधुनिक हिन्दी-कहानी के विकास का कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं है। खड़ी बोली आधारित हिन्दी गद्य का इतिहास भी बहुत पुराना और समृद्ध नहीं कहा जा सकता। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में मुद्रण यंत्रों के बढ़ते उपयोग के फलस्वरूप परम्परा से चलते आती मौखिक कथा को मुद्रित होने का लाभ मिला और पहली मौलिक गद्य कथा रानी केतकी की कहानी 1841 के दशक में प्रथम बार मुद्रित हुई। इस बीच बहुत सी संस्कृत और फारसी परम्परा की कथाएँ भी अनूदित होकर हिन्दी में छपी। 1870 में उन्नीसवीं शताब्दी की दूसरी मौलिक गद्य कथा 'देवरानी जेठानी की कहानी' देवनागरी में मुद्रित हुई, जिसके बाद कहानी और उपन्यास नाम से गद्य कथाओं के प्रकाशन का सिलसिला उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में चलता रहा।

'यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि 1921 का दशक समूचे हिन्दी साहित्य के अभूतपूर्व विकास का काल है। कविता, नाटक, आलोचना के क्षेत्र में इस काल की उपलब्धियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। पर कथा साहित्य और विशेषकर कहानी के लिए तो यह धरती से ऊपर उठकर, छतनार पेड़ बन जाने का काल है। दूसरे दशक में प्रेमचंद को छोड़कर और कोई उल्लेखनीय कहानीकार हिन्दी में नहीं था, जबकि इस दशक में प्रेमचंद के अतिरिक्त जयशंकर प्रसाद, रायकृष्ण दास, विनोद शंकर व्यास, चंडीप्रसाद हृदयेश, कौशिक, सुदर्शन, बेचन शर्मा उग्र, वृंदावन लाल वर्मा, चतुर सेन शास्त्री, आदि कहानीकारों की कहानियाँ प्रकाशित हुईं।'

समीक्षकीय टिप्पणी
इस पुस्तक में उर्दू-हिन्दी और मैथिली-भोजपुरी, राजस्थानी के लगभग 100 कहानी लेखकों और 3000 कहानियों का कमोबेश विस्तार के साथ विवेचन या उल्लेख किया गया है। कहानी-लेखकों और कहानी संग्रहों की अक्षरानुक्रम सूची अनुक्रमणिका में दी गई है। इसके साथ ही जो कहानियाँ किसी भी कारण चर्चित रही हैं, या उल्लेखनीय हैं, उनकी अक्षरानुसारी सूची भी इसमें उपलब्ध करा दी गई है। यह प्रयास पाठकों की जिज्ञासाओं की तुष्टि की दृष्टि से सराहनीय है।

हिन्दी कहानी का इतिहास
शोध प्रबंध
लेखक : गोपाल राय
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 480
मूल्य : 550 रु.

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi