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जयपुर साहित्य महोत्सव : एकता कपूर को बोतल फेंककर मारी...

'एकता कपूर मुर्दाबाद' के नारे

हमें फॉलो करें जयपुर साहित्य महोत्सव : एकता कपूर को बोतल फेंककर मारी...
- स्मृति आदित्य, जयपुर से

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20 जनवरी का दिन जयपुर साहित्य उत्सव के लिए गहमा-गहमी भरा रहा। दिन के सारे सत्र यहां बौद्धिक वर्ग को समर्पित रहे, वहीं शाम का सत्र एकता कपूर के कार्यक्रम में हुए हंगामे के नाम रहा। यह फेस्टिवल जहां एक तरफ साहित्य की रोशनी को साल-दर-साल उज्ज्वल बनाता रहा है, वहीं विवादों से इसका नाता अटूट हो गया है।

इस बार की सबसे बड़ी कमी यह रही कि जेएलएफ की पीआर कंपनी एडलमैन ने व्यवस्था के नाम पर सारे काम चौपट किए। सबसे बड़ी बात तो यही है कि बाहर से आए पत्रकारों के लिए यहां कोई माकूल इंतजाम नहीं किए गए हैं।

विदेशों से आए कई पत्रकार मीडिया में रजिस्ट्रेशन न होने की स्थिति में दाएं-बाएं बैठकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, वहीं ज्यादातर मीडिया पास स्थानीय स्तर के उन अखबारों के पत्रकारों को बांट दिए गए हैं, जिनका कोई नाम तक नहीं जानता। यहां तक कि जयपुर के बाहर से आए भारतीय पत्रकार भी छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए परेशान होते देखे गए।

जयपुर के निवासियों का कहना है कि इस बार का फेस्टिवल पिछले सालों की तुलना में कमजोर रहा है। पहले दिन को छोड़ दिया जाए तो बाकी के दिनों में अधिकांश सत्र साहित्यप्रेमियों के लिए तरसते नजर आए।

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कुछ सत्र में सूत्रधारों ने कमजोर वक्ताओं को कुशलता से संभाला तो कहीं पर सूत्रधार अच्‍छे-अच्छे वक्ताओं का ठीक से उपयोग नहीं कर सके। उदाहरण के लिए जिन सत्रों का संचालन पत्रकार वर्तिका नंदा के हाथ में था, वहां उनके संतुलित और सहज संचालन ने दर्शकों का दिल जीत लिया।

उनकी उत्कृष्ट हिन्दी, मधुर आवाज, विषय पर पकड़ और त्वरित उपजे प्रश्नों ने हर भाषा के दर्शक को बांधकर रखा, जबकि पवन वर्मा, सुप्रिया नायर जैसे सूत्रधार वक्ताओं पर एक अजीब-सी घबराहट के साथ हावी दिखे।

एकवचन-बहुवचन सत्र में वर्तिका ने कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ और कवि पीयूष दईया के साथ सत्र आरंभ किया। उन्होंने एक मीठी-सी कहानी सुनाई 'समंदर ने नदी से पूछा तुम्हारा अस्तित्व मेरे समक्ष कुछ नहीं है, मैं इतना विराट हूं, फिर भी तुम्हारा पानी मीठा क्यों है? नदी ने विनम्रता से कहा क्योंकि तुम सबसे लेते हो, इसलिए तुम खारे हो और मैं सबको देती हूं, इ‍सलिए मीठी हूं। इसी कहानी को गूंथकर उन्होंने मनीषा से बातचीत आरंभ की।

मनीषा ने अपने रचना के प्रिय अंश सुनाए, उन्होंने कहा कि जिस प्रकार दो पेड़ पास-पास हों और एक को उखाड़ दिया जाए, तो दूसरा अपने आप हिल जाता है, कुछ इसी तरह कश्मीर की महिलाओं की व्यथा मेरी रचना में है।

पीयूष दईया ने वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी को एक संवेदनशील कविता समर्पित की। मनीषा ने अपने आने वाले उपन्यास 'पंचकन्या' पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि उनकी एक किताब बिरजू महाराज पर भी आने वाली है।

पीयूष का कहना था कि लेखन आत्मा का आश्चर्य है, माया और मौन के बीच रस्साकशी है। मैं लिखता हूं क्योंकि मैं खाली होना चाहता हूं। मैं अकेला हूं पर उम्मीद नहीं छोड़ता। मेरी नजर में हिन्दी का भविष्य उज्जवल है। एक प्रश्न के उत्तर में उनका कहना था कि अच्छा उपन्यास कविता के रास्ते से आता है।

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शाम के सत्र में एकता कपूर के आते ही एक समूह ने उसके धारावाहिक 'जोधा-अकबर' के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाए और कुछ लोगों ने बोतल फेंककर मारी।

दरअसल एक संगठन करणी सेना एकता कपूर के धारावाहिक 'जोधा-अकबर' से नाराज चल रहा है। उनकी मांग है कि एकता कपूर सीरियल का टाइटल बदलें। एकता कपूर ने आश्वासन दिया था कि टाइटल बदल दिया जाएगा, लेकिन बदला नहीं। इसी को लेकर एकता कपूर का विरोध किया गया। करणी सेना ने 'एकता कपूर मुर्दाबाद' के नारे लगाए और उन पर बोतल फेंकी गई। कुछ देर बाद हुड़दंगियों पर नियंत्रण पा लिया गया, लेकिन एकता की सेहत पर इस हंगामे का कोई असर नजर नहीं आया।

हालांकि एकता ने कहा कि वे प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने धारा‍वाहिक पर सफाई देंगी जबकि सफाई देना उनके स्वभाव में नहीं है। 'मैं वही करती हूं जो मुझे अच्छा लगता है, मैं तीन बातों पर भरोसा करती हूं- एंटरटेनमेंट, इंगेजमेंट और इफेक्टिवनेस।

मैं कभी सफलताओं से प्रेरित नहीं होती हूं और न ही असफलताओं से घबराती हूं। मैं सिर्फ अपना काम एन्जॉय करती हूं। फेस्टिवल का अंतिम दिन मैरीकॉम के नाम था, लेकिन बारिश ने समारोह की सफलता की उम्मीद पर पानी फेर दिया। कुल मिलाकर जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल हर बार की तुलना में बुझा-बुझा-सा रहा।



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