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जसवंत की पुस्तक में कई गलतियाँ : बरनवाल

विभाजन को जिन्ना मानते थे सबसे बड़ी भूल

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हिंदी में जिन्ना पर पहली पुस्तक लिखने वाले प्रसिद्ध लेखक वीरेन्द्र कुमार बरनवाल ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी से निष्कासित वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी गई पुस्तक में कई तथ्यात्मक भूलें हैं। उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं लिखी है जो नई हो।

बरनवाल ने यह भी कहा है कि सिंह की पुस्तक में सरदार पटेल के बारे में कुछ भी ऐसा नहीं है जो अपमानजनक हो या जिससे उनकी छवि पर आँच आती हो। पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में भी ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल यह सारा भ्रम मीडिया ने फैलाया है।

जसवंत सिंह को पुस्तक के कारण नहीं, बल्कि राजनीतिक कारणों से पार्टी से निकाला गया है। मुंबई के मुख्य आयकर आयुक्त पद से सेवानिवृत्त बरनवाल ने पाँच साल पहले जब हिंदी में पहली बार जिन्ना एक पुनर्दृष्टि पुस्तक लिखी तो चार वर्ष में ही उसके चार संस्करण आ गए। इस वर्ष पाँचवाँ संस्करण छप रहा है।

उन्होंने कहा कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का यह कहना गलत है कि सरदार पटेल ने नेहरू के दबाव में आकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया था, बल्कि उन्होंने अपने विवेक से यह निर्णय लिया था। सरदार पटेल हिन्दूवादी नहीं थे बल्कि पक्के राष्ट्रवादी थे। लेकिन आज कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए हिन्दूवादी सिद्ध करने में लगे हैं।

उन्होंने कहा कि जसवंत सिंह की किताब उन्होंने पढ़ी है। उसमें कई तथ्यात्मक भूलें हैं। जहाँ तक भारत-पाक विभाजन में सरदार पटेल और नेहरू की भूमिका की बात है सिंह ने डॉ.राममनोहर लोहिया की पुस्तक को उद्धृत करते हुए यह बात लिखी है।

इन दिनों राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर पुस्तक लिख रहे बरनवाल ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विनायक दामोदर सावरकर ने 1936 में ही हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र की बात कही थी। हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के लोग कांग्रेस के भी सदस्य होते थे पर सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस के सदस्य नहीं थे। जिन्ना भी मुसलमानों के अकेले प्रवक्ता नहीं थे।

दरअसल जिन्ना का झगड़ा कांग्रेस से 1935 में तब शुरू हुआ जब वह मुसलमानों के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने की माँग करने लगे। बरनवाल का कहना कि विभाजन को जिन्ना ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल बताया था।

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