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राजेंद्र यादव : स्मृति विशेष

हमें फॉलो करें राजेंद्र यादव : स्मृति विशेष
- ऋषि गौतम

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हिन्दी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य की दुनिया के एक मजबूत स्तंभ थे। उन्हें मौजूदा दौर में हिन्दी साहित्य की कई प्रतिभाओं को सामने लाने का श्रेय जाता है। हिन्दी साहित्य जगत में उपन्यास, कहानी, कविता और आलोचना सहित साहित्य की तमाम विधाओं में राजेंद्र जी एक जैसी पकड़ रखते थे।

राजेंद्र यादव का नाम चोटी के लेखकों में शुमार था। वह मुंशी प्रेमचंद की पत्रिका हंस का 1986 से संपादन करते रहे थे, जो हिन्दी की सर्वाधिक चर्चित साहित्यिक पत्रिका मानी जाती है और इसके माध्यम से हिन्दी के नए लेखकों की एक नई पीढी़ भी सामने आई और इस पत्रिका ने दलित विर्मश और स्त्री विर्मश को भी स्थापित किया।

28 अगस्त 1929 को आगरा में जन्मे राजेंद्र यादव ने आगरा विश्वविद्यालय से 1951 में हिन्दी विषय से एमए की डिग्री हासिल की थी और कोलकाता में भी काफी दिनों तक रहे थे। बाद में वह दिल्ली आ गए और और राजधानी के बौद्धिक जगत की एक प्रमुख हस्ती बन गए। संयुक्त मोर्चा सरकार में वह प्रसार भारती के सदस्य भी बनाए गए थे।

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पहली बार शायद 20 साल की अवस्था में मुझे उन्हें पढ़ने का मौका मिला था। तब मैंने साहित्य पढ़ने की शुरुआत ही की थी। साहित्य पढ़ने की शुरुआत में ही उस समय के दूसरे युवाओं की तरह दो महत्वपूर्ण उपन्यास से मैं रूबरू हुआ था। धर्मवीर भारती का ‘गुनाहों का देवता’ और राजेंद्र यादव का ‘सारा आकाश’। फिर उनको पढ़ने का जो चस्का लगा वह हंस के माध्यम से बाद में भी जारी रहा।

तब शायद मैंने यह सोचा भी नहीं था कि किसी दिन उनसे मिलने का भी मौका मिलेगा। लेकिन मेरी जिंदगी में वह दिन भी आया जब एक बार मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। तब मैंने यह जाना कि उम्र के इस पड़ाव पर जहां राजेंद्र जी 80 वसंत देख चुके थे, उनका दिल अब भी जवान था। तभी मुझे उनकी लेखनी का भी मर्म समझ में आया।

इससे पहले मैं उनकी लेखनी को पढ़कर उनसे मिलने के लिए बहुत उत्साहित रहा था। तब चंद मिनटों की मुलाकात के बाद ही मैं उनका फैन हो गया, क्योंकि तभी मुझे उनकी जिंदादिली की खासियत समझ में आई।

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हिन्दी साहित्य के महानायक राजेंद्र यादव जिंदगी की 84 बहारें देखकर हम सबसे रुखसत हो गए। 66 वर्षों से वह लगातार लिख रहे थे। हंस का संपादन करते हुए 25 बरस से ज्यादा गुजर गए। यूं तो खुद अपने बारे में उन्होंने खूब लिखा है।

राजेद्र यादव किसी न किसी वजह से हमेशा ही चर्चा में रहे। बावजूद इसके साहित्य की दुनिया में उनकी ऊंचाइयों को कोई भी भूला नहीं सकता। हंस के संपादक के रूप में उनकी पहचान लेखकीय पहचान से ज्यादा बड़ी हो गई थी।

राजेंद्र जी यादव ने विश्व प्रसिद्ध लेखक चेखोव तुर्गनेव और अल्वेयर कामो जैसे लेखकों की रचनाओं का भी अनुवाद किया था। इसके अलावा वह नई कहानी के प्रवर्तक भी रह चुके थे। कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ उन्होंने नई कहानी आंदोलन की शुरुआत की थी। इसके अलावा उन्होंने कई उपन्यास और कहानियां लिखीं।

उनके मशहूर उपन्यास 'सारा आकाश' पर बाद में बासु चटर्जी ने फिल्म भी बनाई। इसके अलावा उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। इनमें देवताओं की मृत्यु, खेल-खिलौने, जहां लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक और वहां पहुंचने की दौड़ प्रमुख हैं


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