Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हर पखवाड़े एक भाषा मृत

21 फरवरी : अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

हमें फॉलो करें हर पखवाड़े एक भाषा मृत
ND
जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने अपने अनुसंधान कार्य से भारत के भाषा और संस्कृति संबंधी तथ्यों से जिस तरह समाज को परिचित कराया था, उसी तर्ज पर अब गहन प्रयास किए जाने की जरूरत है क्योंकि हर पखवाड़े एक भाषा मर रही हैं और सरकार की तरफ से इस दिशा में कोई खास कोशिश नहीं की जा रही।

कई आदिवासी भाषाएँ उपेक्षा की शिकार हैं और लगातार विलुप्त हो रही हैं। नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी और लिविंग टंग्स इंस्टीट्यूट फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजेस के अनुसार प्रत्येक पखवाड़े एक भाषा की मृत्यु हो रही है।

सन 2100 तक धरती पर बोली जाने वाली सात हजार से अधिक भाषाएँ विलुप्त हो सकती हैं। उनमें से कई के बारे में तो रिकॉर्ड भी नहीं है। एक भाषा की मौत सिर्फ एक भाषा की ही मौत नहीं होती, बल्कि उसके साथ ही उस भाषा का ज्ञान भंडार, इतिहास, संस्कृति और उससे जुड़े तमाम तथ्य और मनुष्य भी इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं।

भाषा विज्ञानी अन्विता अब्बी के अनुसार जिस अत्याधुनिक सभ्यता पर हमें गर्व होता है दरअसल वह झूठा अहम है। भाषाएँ धरोहर हैं और मुख्यधारा में लाने के नाम पर हम आदिम भाषाओं को खोते जा रहे हैं।

अंडमान की भाषाओं पर अनुसंधान कार्य करने वाली इस प्रोफेसर ने कहा कि आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के जो प्रयास किए गए इसके दुष्प्रभाव से अंडमान की कई भाषाएँ लुप्त हो गईं।

अंडमान क्षेत्र में 10 भाषाएँ थी । लेकिन धीरे धीरे ये सिमट कर ग्रेट अंडमानी भाषा बन गईं। यह चार भाषाओं से मिलकर बनी है। भारत सरकार ने उन भाषाओं के आँकड़े संग्रह किए हैं जिन्हें 10 हजार से अधिक संख्या में लोग बोलते हैं। 2001 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार ऐसी 122 भाषाएँ और 234 मातृभाषाएँ हैं। इस कारण कई भाषाएँ जिनके बोलने वालों की संख्या 10 हजार से कम हैं वे रिकार्ड में भी नहीं आ पाती। आदिवासियों की भाषाएँ बहुत उन्नत हैं। उसमें पारंपरिक ज्ञान का खजाना है। शहरीकरण के कारण ये आदिम भाषाएँ लुप्तप्राय हो रही हैं।

सरकार जहाँ राजभाषा की नीति के तहत हिंदी को प्रोत्साहन जारी रखे हुए है वहीं, आदिवासियों की भाषाएँ विलुप्त हो रही हैं। इस दिशा में भी प्रयास किए जाने की जरूरत है ।

समय आ गया है कि सरकार स्कूलों में विभिन्न चरणों में चार स्तरीय भाषा नीति का क्रियान्वयन करे। इससे छात्रों की स्कूल छोड़ने की दर में कमी आएगी। प्रतिस्पर्धा के दौर में अपनी मातृभाषा को लेकर जो हीन भावना है वह ऐसी सकारात्मक नीति से समाप्त होगी। जनवरी में अंडमान क्षेत्र की एक भाषा ‘बो’ बोलने वाली अंतिम महिला के निधन के साथ यह भाषा भी विलुप्त हो गई।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi