Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

उन्हें पाठकों और लेखकों का अगाध प्रेम हासिल था

ब्लॉग की दुनिया ने दी विष्णु प्रभाकर को श्रद्धांजलि

हमें फॉलो करें उन्हें पाठकों और लेखकों का अगाध प्रेम हासिल था

रवींद्र व्यास

ND
विष्णु प्रभाकर नहीं रहे। आवारा मसीहा के लिए पूरे साहित्य जगत में ख्यात रहे विष्णप्रभाकर का शनिवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया। ब्लॉग दुनिया ने इस दिग्गज साहित्यकार के चले जाने का तुरंत नोटिस लिया और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वे अपनी कृतियों धरती अब भी घूम रही है, आवारा मसीहा, पंखहीन और अर्धनारीश्वर के लिए जाने जाते हैं। उन्हें आवारा मसीहा पर पद्मभूषण और अर्धनारीश्वर पर साहित्य अकादमी पुरस्कार हासिल है लेकिन वे उन विरले लेखकों में से थे जिन्हें लेखकों का अप्रतिम प्रेम हासिल था।

यही कारण है कि ब्लॉग एक जिद्दी धुन पर ब्लॉगर धीरेश सैनी ने ठीक ही उल्लेख किया है कि पिछले कई वर्षों में उन्हें बीमारी और दुर्घटना की वजह से बार-बार अस्पताल जाना पड़ा था लेकिन उनकी जिजीविषा उन्हें हर बार जिलाए रखती थी। इन्हीं दिनों कई पत्रिकाओं में उन पर उनकी बाद की पीढ़ी के लेखकों के कुछ लेख भी छपे।

समयांतर में पंकज बिष्ट ने भी बेहद सम्मान और आत्मीय ढंग से इस वरिष्ठ कथाकार पर लिखा था। यह वाकई बेहद दुर्लभ था कि हिंदी के वयोवृद्ध लेखक से उनके बाद की पीढ़ी ऐसा गर्वभरा रिश्ता महसूस करती हो। शायद त्रिलोचन, शमशेर और नागार्जुन के बाद वे इस तरह के अकेले हिंदी लेखक बचे थे।

webdunia
WD
और जिस तरह से उन्हें छोटे-बड़े लेखकों का स्नेह और आदर प्राप्त था ठीक वैसा ही आदर और स्नेह उन्हें पाठकों से मिला। यह बात कई लेखक स्वीकार करते हैं कि इस तरह का पाठकीय स्नेह हिंदी में बहुत कम लेखकों को प्राप्त है।

इसीलिए मार्क राय अपने ब्लॉग कुछ खास पर एक महत्वपूर्ण बात रेखांकित करते हैं कि उन्हें पाठकों का बहुत स्नेह मिला। वे लिखते हैं -विष्णु प्रभाकर हमारे बीच से चले गए लेकिन उनकी रचनाएँ हमेशा लोगों के साथ रहेंगी। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया था, लेकिन देर से दिए जाने के कारण अपने आत्म सम्मान पर चोट मानते हुए उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया था। उन्होंने अपने स्वाभिमान से कभी भी समझौता नही किया। उनका साहित्य पुरस्कारों से नहीं बल्कि पाठकों के स्नेह से प्रसिद्ध हुआ।

लेकिन हिंदी युग्म ब्लॉग पर विष्णु से विष्णु प्रभाकर नाम पड़ने पर एक दिलचस्प जानकारी दी गई है। इसमें लिखा गया है कि विष्णु के नाम में प्रभाकर कैसे जुड़ा, उसकी एक बेहद रुचिपूर्ण कहानी है। अपने पैतृक गाँव मीरापुर के स्कूल में उनके पिता ने उनका नाम लिखवाया था विष्णु दयाल। जब आर्य समाज स्कूल में उनसे उनका वर्ण पूछा गया तो उन्होंने बताया-वैश्य। वहाँ के अध्यापक ने उनका नाम रख दिया विष्णु गुप्ता।

जब उन्होंने सरकारी नौकरी ज्वॉइन की तो उनके ऑफिसर ने उनका नाम विष्णु धर्मदत्त रख दिया क्योंकि उस दफ्तर में कई गुप्ता थे और लोग कन्फ्यूज्ड होते थे। वे 'विष्णु' नाम से लिखते रहे। एक बार उनके संपादक ने पूछा कि आप इतने छोटे नाम से क्यों लिखते हैं? आपने कोई परीक्षा पास की है? उन्होंने कहा कि हाँ, हिन्दी में प्रभाकर की परीक्षा पास की है। उस संपादक ने उनका नाम बदलकर रख दिया विष्णु प्रभाकर।

जबकि नुक्कड़ ब्लॉग पर अविनाश वाचस्पति ने उन्हें काव्यमय श्रद्धांजलि दी है। इसमें वे लिखते हैं कि

कि सिर्फ देह का अंत हुआ है
विचार उनके जीवित रहेंगे सदा
आज से हम सब उन्हें
मन में महसूस पाएँगे
मानस में उनके विचारों की
ज्वाला धधकती पाएँगे
इसी तरह उन्हें याद
सदा करते नजर आएँगे।

हिंदी में कई लेखक हैं जो अपने आत्मसम्मान के साथ लिखते और जीते हैं। उन्हीं लेखकों में विष्णु प्रभाकर का नाम शीर्ष पर है। उनकी इसी खासियत को रेखांकित किया है कविता वाचक्नवीजी ने। वे अपने ब्लॉग हिंदी भारत पर लिखती हैं कि जब 2005 में राष्ट्रपति भवन के कुछ कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के कारण उन्होंने पद्मभूषण लौटने की इच्छा व्यक्त की तो तत्कालीन राष्ट्रपित डॉ. अब्दुल कलाम ने आग्रहपूर्वक उनके पास जाकर उन्हें सम्मानित किया।

कविताजी लिखती हैं कि किसी भी हिंदी लेखक के स्वाभिमान का ऐसा उदाहरण इस सदी में दूसरा कोई नहीं। जबकि हिंदुस्तान का दर्द ब्लॉग के ब्लॉगर संजय सेन नाहर लिखते हैं कि वे गाँधी विचारों और सिद्धांतों से प्रभावित रहे और इसी कारण उन्होंने अपनी लेखनी को अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किया।

जाहिर है ब्लॉग की दुनिया ने इस दिग्गज साहित्यकार को आत्मीय ढंग से याद करने की कोशिश की है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi