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प्रेम के अमर कवि का दुखांत

हमें फॉलो करें प्रेम के अमर कवि का दुखांत
- उदयनारायण सिंह

यह विडंबना ही है कि अपने जीवन में आने वाली और आकर्षित करने वाली तमाम महिलाओं से प्रेम करने वाले अलेक्सांद्र पुश्किन की इहलीला अपने प्रेम के स्वाभिमान की रक्षा करते हुए समाप्त हुई। प्रेम कविताएपुश्किन के साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। राजनीति और समाज पर लिखा उनका तमाम साहित्य हमें उनके विचारों से अवगत कराता है, वहीं उनकी प्रेम कविताएहमें उनके हृदय और व्यक्तिगत जीवन के करीब ले जाती हैं।

पुश्किन के 38 वर्ष के छोटे जीवनकाल को हम 5 खंडों में बाँटकर समझ सकते हैं। 26 मई 1799 को उनके जन्म से 1820 तक का समय बाल्यकाल और प्रारंभिक साहित्य रचना को समेटता है। 1820 से 1824 का समय निर्वासन काल है। 1824 से 1826 के बीच वे मिखायेलोव्स्कोये में रहे। 1826-1831 में वे जार के करीब आकर प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचे। 1831 से उनकी मृत्यु (29 जनवरी 1837) तक का काल उनके लिए बड़ा दुःखदायी रहा। जीवन भर प्रेम के साथ अठखेलियाँ करने वाला यह भावुक कवि, प्रेम की रक्षा के नाम पर स्वाहा हो गया।

बारह साल की उम्र में पुश्किन को त्सारस्कोयेस्येलो के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया। सन्‌ 1817 में पुश्किन पढ़ाई पूरी कर सेंट पीटर्सबर्ग आ गए और विदेश मंत्रालय के कार्यों के अतिरिक्त उनका सारा समय कविता करने और मौज उड़ाने में बीता, इसी दौरान सेना के नौजवान अफसरों द्वारा बनाई गई साहित्यिक संस्था ग्रीनलैंप में भी उन्होंने जाना शुरू कर दिया था, जहाँ उनकी कविता का स्वागत तो हुआ ही, शराब और सुंदर औरतों से भी उनकी नजदीकी बढ़ी। मुक्त माहौल में अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए पुश्किन ने ओड टू लिबर्टी (1817), चादायेव के लिए (1818) और देश में (1819) जैसी कविताएँ लिखीं। इसका असर यह हुआ कि पुश्किन की छवि सत्ता की नजरों में खराब हुई और सन्‌ 1820 में उन्हें रूस के दक्षिण में निर्वासित कर दिया गया। यह वह समय था, जब कवि की प्रसिद्ध कृति रूस्लान और ल्यूदमीला छपकर आने वाली थीं।

दक्षिण में येकातेरीनोस्लाव, काकेशस और क्रीमिया की अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने खूब पढ़ा और खूब लिखा, इसी बीच वे बीमार भी पड़े और जनरल रायेव्स्की के परिवार के साथ काकेशस और क्रीमिया गए। पुश्किन के जीवन में यह यात्रा यादगार बनकर रह गई। काकेशस की खूबसूरत वादियों में जहावे रोमांटिक कवि बायरन की कविता से परिचित हुए वहीं जनरल की बेटी मारिया ने उनमें प्रेम की ज्वाला भी भड़का दी। सन्‌ 1823 में उन्हें ओद्देसा भेज दिया गया।

ओद्देसा में भी कवि के जीवन में कुछ खास बदलाव नहीं आया। यहाभी वे कविता, शराब और औरतों में रमे रहे, यहाँ जिन दो स्त्रियों से उनकी नजदीकी रही उनमें एक थी एक सर्ब व्यापारी की इटालियन पत्नी एमिलिया रिजनिच और दूसरी थी पुश्किन के अधिकारी, प्रांत के गवर्नर जनरल की पत्नी काउंटेस वोरोन्त्सोव। इन दोनों महिलाओं ने पुश्किन के जीवन में गहरी छाप छोड़ी, पुश्किन ने भी दोनों से समान भाव से प्रेम किया और अपनी कविताएँ भी उन्हें समर्पित कीं। किंतु दूसरी ओर काउंटेस से बढ़ी नजदीकी उनके हित में नहीं रही।

जल्दी ही उन्हें अपनी माकी जागीर मिखायेलोव्स्कोये में निर्वासित कर दिया गया। रूस के इस सुदूर उत्तरी कोने पर पुश्किन ने जो दो साल बिताए, उनमें वे ज्यादातर अकेले रहे। पर यही समय था जब उन्होंने 'येव्गेनी अनेगिन' और 'बोरिस गोदुनोव' जैसी विख्यात रचनाएपूरी कीं तथा अनेक सुंदर कविताएलिखीं। मिखायेलोव्स्कोये के इस एकांत को पड़ोसी जागीर की मादाम ओसिपोवा और उनकी दो बेटियाअक्सर भंग कर जाया करती थीं।

अंततः सन्‌ 1826 में 27 वर्ष की आयु में पुश्किन को जार निकोलस ने निर्वासन से वापस सेंट पीटर्सबर्ग बुला लिया। मुलाकात के दौरान जार ने पुश्किन से उस कथित षड्यंत्र की बाबद पूछा भी जिसकी बदौलत उन्हें निर्वासन भोगना पड़ा था। सत्ता की नजरों में वे संदेहास्पद बने रहे और उनकी रचनाओं को भी सेंसर का शिकार होना पड़ा, पर पुश्किन का स्वतंत्रता के प्रति प्रेम सदा बरकरार रहा। सन्‌ 1828 में मास्को में एक नृत्य के दौरान पुश्किन की भेंट सोलह वर्षीय नाताल्या गोंचारोवा से हुई। 1829 के बसंत में उन्होंने नाताल्या से विवाह का प्रस्ताव किया पर नाताल्या की माकी तरफ से साफ उत्तर न मिलने के कारण उन्हें बड़ा इंतजार करना पड़ा।

अनेक बाधाओं के बावजूद सन्‌ 1831 में पुश्किन का विवाह नाताल्या के साथ हो गया। पुश्किन के जीवन में कई स्त्रियाआईं और उन्होंने सबसे प्रेम किया। किंतु अंततः नाताल्या गोंचारोवा की खूबसूरती पर वे मर मिटे। नाताल्या गोंचारोवा के प्रति एकनिष्ठ प्रेम पुश्किन के लिए आत्मघाती साबित हुआ। अप्रतिम सौंदर्य की मलिका नाताल्या समाज में बड़ी लोकप्रिय थी।

कहा जाता है कि स्वयं जार निकोलस भी उसमें रुचि लेता था और नाताल्या के कारण ही पुश्किन को सामाजिक उत्सवों, नृत्य आदि में निमंत्रित किया जाने लगा था। परंतु पुश्किन की प्रवृत्ति ऐसी नहीं थी, जो ऐसे व्यापार को सहन कर पाती। नतीजा यह हुआ कि पुश्किन का विवाहित जीवन सुखी नहीं रहा। इसकी झलक उनके लिखे पत्रों में मिलती है, पुश्किन का टकराव नाताल्या गोंचारोवा के एक दीवाने फ्रांसीसी द'आंतेस से हुआ जो जार निकोलस का दरबारी था। अपनी स्थिति से परेशान पुश्किन ने उसे द्वंद्व युद्ध की चुनौती दी। लोगों के बीच में पड़ने पर यह द्वंद्व युद्ध टल गया।

द'आंतेस ने नाताल्या की बहन कैथरीन से विवाह का प्रस्ताव रखा। फिर भी वो और नाताल्या छुपकर मिले, स्थितियाँ और बिगड़ीं, द्वंद्व युद्ध को टाला नहीं जा सका। 27 जनवरी 1837 को हुए द्वंद्व युद्ध में पुश्किन द'आंतेस की गोलियों से बुरी तरह घायल हुए और दो दिनों बाद 29 जनवरी 1837 को मात्र 38 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। पुश्किन की अचानक हुई मौत से सनसनी फैल गई। तत्कालीन रूसी समाज के तथाकथित कुलीनों को छो़ड़कर छात्रों, कामगारों और बुद्धिजीवियों सहित लगभग पचास हजार लोगों की भीड़ कवि को श्रद्धांजलि अर्पित करने सेंट पीटर्सबर्ग में जमा हुई थी।

केवल 37 साल जीकर पुश्किन ने संसार में अपना ऐसा स्थान बना लिया जिसे उन्होंने अपने शब्दों में कुछ इस तरह व्यक्त किया है-
मैंने स्थापित किया है
अपना अलौकिक स्मारक
उसे अनदेखा नहीं कर सकेगी
जनसामान्य की कोई भी राह...
गरिमा प्राप्त होती रहेगी
मुझे इस धरा पर
जब तक जीवित रहेगा
रचनाशील कवि एक भी!

स्रोत : नईदुनिया

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