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होऽऽऽ धन्नो की आँखों में, हाँ, रात का सुरमा...

हमें फॉलो करें होऽऽऽ धन्नो की आँखों में, हाँ, रात का सुरमा...

अजातशत्रु

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गुलजार के गीतों को धुनों में पिरोना बहुत मशक्कत का काम है। वे पद्य के बजाए गद्य-गीत लिखते हैं। यह अजीबो-गरीब, प्यारा-सा गीत, आपने कुछ सालों पहले, कई बार सुना होगा। उन दिनों यह अक्सर बजता रहता था। बच्चों के लिए लिखा गया एक बालगीत है यह। गुलजार ने इसे लिखा था। गुलजार इसलिए भी बच्चों के लिए इतनी साफ- सुथरी और संवेदनशील फिल्म बनाने लगे थे, और उनके लिए इतने प्यारे-प्यारे बालगीत लिखने लगे थे, कि उन्हें अपनी बच्ची बोस्की से बहुत लगाव था। बोस्की, जिसकी माँ राखी, अपने पति को छोड़कर चली गई थी और परिणामतः गुलजार की उस नन्ही बच्ची के लिए संवेदनशीलता और भी बढ़ गई थी। एक तरह से यह बोस्की के लिए लिखा गीत था।

आर.डी. बर्मन बताते थे कि गुलजार के गीतों को धुन में बिठाना अच्छी-खासी मशक्कत चाहता था। कारण, गुलजार गीत कम, गद्य-गीत ज्यादा लिखते हैं। उनमें विचार, प्रधान होते हैं, कोमल बोलों की सीधी, गेय, रवानी नहीं होती। 'यहाँ तक कि अगर गुलजार कह दें' एक बार हँसी-हँसी में आर.डी. ने कहा था- 'कि ये लो, अखबार की खबर का यह टुकड़ा और इस पर धुन बना दो, तो वैसा करना उतना मुश्किल नहीं होगा जितना गुलजार के अजीबो गरीब कलाम की ट्यून सेट करना।' बात ठीक भी है। गुलजार के बहुत-से गीतों की धुन न मोहक है और न उनमें रवानी है। गीत उनके जरूर अपील करते रहे हैं अपनी कल्पनाशीलता और मर्मस्पर्शी लाइनों के कारण!

'धन्नो की आँखों में' गीत फिल्म 'किताब' का है। 'किताब' सन्‌ 78 की फिल्म है। इस गीत की धुन और वाद्य संगीत इतना अनोखा, कल्पनाप्रधान और दिल को छू जाने वाला है कि... आप इस अहसास से गुजरते हैं... कि न ऐसी धुन पहले कभी सुनी और न ऐसा विचित्र गीत पहले कभी पढ़ा। 'विलक्षण'- बस एक यही शब्द कहा जा सकता है इस गीत के सभी पहलुओं के बारे में।

...गीत को स्वयं इसके संगीतकार आर.डी. बर्मन ने गाया है। धुन और गायन दोनों में फेंटसी का टच है। एक अजीब ढंग से गाया गया यह गीत... किसी अन्य लोक में खड़े ऐसे बूढ़े का अहसास कराता है... जो, पहाड़ की चोटी पर खड़ा होकर, चर्खी (मेले वगैरह में खिलौने वालों के पास मिलने वाला बच्चों का एक खिलौना, जिसे गोल-गोल घुमाने पर मिट्ठू के चीखने जैसी आवाज आती है) घुमाते हुए, रहस्य पुरुष की तरह, यह गीत गा रहा है और अदृश्य बालक उसकी गोद में है।

समीक्षक और लेखक कैलाश मंडलेकर (खंडवा) कमेंट करते हैं- 'आर.डी. बर्मन' की विलक्षण जीनियस का विस्मयकारी प्रमाण है यह अनोखा गीत, जो विचित्र धुन में दिखने वाली कल्पना की सर्वथा मौलिक और स्वच्छंद उड़ान के कारण, और श्रोताओं पर पड़ने वाले विशिष्ट प्रभाव के कारण, हिन्दी फिल्म संगीत के इतिहास में 'अभूतपूर्व और अनुत्तर' कहा जाना चाहिए।' यही राय 'गीत गंगाकार' की भी है। पढ़िए गीत के बोल-

ओऽऽऽ होऽऽऽ (चर्खी के घूमने का संगीत जारी रखते)
धन्नो की आँखों में रात का सुरमा... या चाँद का चुम्माऽऽऽऽ (चर्खी का संगीत जारी)...

धन्नो हो रहेगी तेरे बिना बात अकेली,
छाला पड़े आँख पे, जैसे चाँद पे जो हाथ लगे,
ओऽऽऽ धन्नो का गुस्सा है तीर का चुम्मा और चाँद का चुम्मा...
ओऽऽऽऽ धन्नो की... चाँद का चुम्माऽऽऽ!

ओ धन्नो तुझे ख्वाब में देखा है,
हाय लैला की, हीर की, किताब में देखा है
ओऽऽऽ धन्नो की आँखों में नूर का सुरमाऽऽऽ, ओ चाँद का चुम्माऽऽऽ
(मुखड़ा एक बार फिर से और समाप्ति)

इतना प्यारा बालगीत है दिल के अनजान कोनों को गुदगुदाने वाला, कि आर.डी. बर्मन को जिंदा करके देखने का मन होता है और यह पूछने की तबीयत होती है- 'हैलो, नई पीढ़ी के मसीहा संगीतकार, ऐसी बढ़िया चीज तुमने कैसे बना ली!

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