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इक लड़की बयाबाँ में तन्हा खड़ी है

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ज्ञानप्रकाश विवे
NDND
ता-हद्देनजर रेत की बेचैन नदी है
वो किसको बताए कि उसे प्यास लगी है

आई जो कभी लौट के लाएगी सितारे,
इक लहर जो मिट्टी का दीया ले के गई है

क्या जाने उसे भी कोई बनवास मिला हो,
घर लौट के आने में जिसे उम्र लगी है

जंगल के दरख्तों , जरा तुम जागते रहना,
इक लड़की बयाबाँ में तने-तन्हा खड़ी है

मैं खौफजदा होके उसे ढूँढ रहा हूँ
कालीन पे जलती हुई जो सींक गिरी है

हर रोज कलैंडर की न तारीखें गिनाकर,
जीना है तो जीने के लिए उम्र पड़ी है

ऐ चोर, चुरा ले तू कोई दूसरा हैंगर
इस पर मेरे माजी की फटी शर्ट टँगी है

रावण मेरे अंदर का मरा है न मरेगा
ऐ रामचन्दर, तुझसे मेरी शर्त लगी है।

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