तुम्हारे देखते ही
नदी में हलचल हुई
पाँव-पाँव चलने लगा पानी
तुम्हारे मुस्कुराते
खिल गया स्त्री-मन
छूता हुआ तुमको
तुम्हारे बोलते ही
रोशन-रोशन होने लगा सब-कुछ
हँसने लगी धूप, छिटकने लगे शब्द।
ओ मेरे दिव्य पुरुष!
इस तरह समर्पित हो रहा है
पूरा स्त्रीत्व तुम्हारे आगे
जबकि बहुत जरूरी है हमारे लिए
'अदर्शनम् मौनम् अस्पर्शम्'
'धम्मं शरणं गच्छामि' का
उच्चारण कर रही हैं मेरी माँ यहीं-कहीं।