उस दिन मेरा मन बतियाता रहा हवाओं से फूलों से पूछता रहा हालचाल राह के पत्थरों से प्रसन्नता छलकती रही रोम-रोम से यूं ही टहलते हुए चबा गया नीम की पत्तियां पर खुशी इस कदर थी रक्त में कि कम न हुई मन की मिठास
मैंने खुद से कहा चलो खुश तो है एक बेटी किसी की और भी होंगी धीरे-धीरे।