रोहित जैन
कब जाने मोहब्बत में ये मक़ाम आ गया
ख़ुदा की जगह लब पे तेरा नाम आ गया
इसको अदा कहूँ के ये एहसान है तेरा
तर्क़े वफ़ा के बाद भी सलाम आ गया
अब कम से कम उसको मेरे मिलने का डर नहीं
मर के ही सही मैं किसी के काम आ गया
सोचा था सुबह, अब नहीं जाना है उसकी ओर
लो फिर से वहीं लेके अपनी शाम आ गया
हर बार जब मुझको लगा के भूल गया हूँ
जाने कहाँ से यक-ब-यक क़लाम आ गया
जब भी कभी मुझको तेरी यादों ने बुलाया
दिल हाथ में लेके तेरा ग़ुलाम आ गया
'रोहित' को भेजते हैं वो नामा-ए-शौक़े इश्क़
लगता है मुझे मौत का पयाम आ गया।