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तुम, चाँद गोरा-गोरा
फाल्गुनी
तुम, एक कच्ची रेशम डोर तुम, एक झूमता सावन मोर तुम, एक घटा ज्यों गर्मी में गदराई, तुम, चाँदनी रात, मेरे आँगन उतर आई तुम, आकाश का गोरा-गोरा चाँद तुम, नदी का ठंडा-ठंडा बाँध तुम, धरा की गहरी-गहरी बाँहें तुम, आम की मँजरी बिखरी राहें तुम, पहाड़ से उतरा नीला-सफेद झरना तुम, चाँद-डोरी से बँधा मेरे सपनों का पलना तुम, जैसे नौतपा पर बरसी नादान बदली तुम, जैसे सोलह साल की प्रीत हो पहली-पहलीतुम, तपते-तपते खेत में झरती-झरती बूँदें, तुम, लंबी-लंबी जुल्फों में रंगीन-रंगीन फुंदे, तुम, सौंधी-सौंधी-सी मिट्टी में शीतल जल की धारा तुम, बुझे-बुझे-से द्वार पर खिल उठता उजियारा।