अपने अरमान कोमौन मेंपी रही हैं ये बेटियाँकला की आड़ मेंसौंदर्य के गुमान मेंरंगमंच हो या टीवी बेटी हो या बीवीअखबार हो या पत्रिकाउघाड़ी जा रही हैं ये बेटियाँआग की आँच परचौपड़ की बिसात परसीता सावित्री के नाम परहर युग में दाँव पर लगी हैं ये बेटियाँ
तुम कुछ भी कहो
कुछ भी करो
हर युग में मिटती आई है बेटियाँ
घर को सँवारती
जग को सुधारती
कभी न हारती
नया जन्म फिर फिर
लेती हैं बेटियाँ
नया जन्म फिर फिर
देती हैं बेटियाँ