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बाबा, मत ब्याहना उस देश में

निर्मला पुतुल की लोकप्रिय कविता

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ND
बाबा, मत ब्याहना उस देश में
जहां मुझसे मिलने जाने खातिर
घर की बकरियां बेचनी पड़ें तुम्हें
मत ब्याहना उस देश में
जहां आदमी से ज्यादा
ईश्वर बसते हों
जंगल, नदी, पहाड़ नहीं हों जहां
वहां मत कर आना मेरा लगन
वहां तो कतई नहीं
जहां की सड़कों पर
मान से भी ज्यादा तेज दौड़ती हों मोटर गाड़‍ियां
ऊंचे-ऊंचे मकान
और दुकान हों बड़े-बड़े
उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता
जिस घर में बड़ा सा खुला आंगन न हो
मुर्गे की बाग पर जहां होती ना हो सुबह
और शाम पिछवाड़े से जहां
पहाड़ी पर डूबता सूरज ना दिखे।
मत चुनना ऐसा वर
जो पोचाई और हंडिया में
डूबा रहता हो अक्सर
काहिल निकम्मा हो
माहिर हो मेले से लड़कियां उड़ा ले जाने में
ऐसा वर मत चुनना मेरी खातिर
कोई थारी लोटा तो नहीं
कि बाद में जब चाहूंगी बदल लूंगी
अच्छा-खराब होने पर
जो बात-बात में
बात करे लाठी-डंडा की
निकाले तीर-धनुष कुल्हाड़ी
जब चाहे चला जाए बंगाल,आसाम, कश्मीर
ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे
और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ
जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए
फसलें नहीं उगाईं जिन हाथों ने
जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ
किसी का बोझ नहीं उठाया
और तो और
जो हाथ लिखना नहीं जानता हो 'ह' से हाथ
उसके हाथ में मत देना कभी मेरा हाथ
ब्याहना तो वहां ब्याहना
जहां सुबह जाकर
शाम को लौट सको पैदल
मैं कभी दुःख में रोऊं इस घाट
तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप
महुआ का लट और
खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूं संदेश
तुम्हारी खातिर
उधर से आते-जाते किसी के हाथ
भेज सकूँ कद्दू-कोहड़ा, खेखसा, बरबट्टी,
समय-समय पर गोगो के लिए भी
मेला हाट जाते-जाते
मिल सके कोई अपना जो
बता सके घर-गांव का हाल-चाल
चितकबरी गैया के ब्याने की खबर
दे सके जो कोई उधर से गुजरते
ऐसी जगह में ब्याहना मुझे
उस देश ब्याहना
जहां ईश्वर कम आदमी ज्यादा रहते हों
बकरी और शेर
एक घाट पर पानी पीते हों जहां
वहीं ब्याहना मुझे!
उसी के संग ब्याहना जो
कबूतर के जोड़ और पंडुक पक्षी की तरह
रहे हरदम साथ
घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर
रात सुख-दुःख बांटने तक
चुनना वर ऐसा
जो बजाता हो बांसुरी सुरीली
और ढोल मांदर बजाने में हो पारंगत
बसंत के दिनों में ला सके जो रोज
मेरे जूड़े की खातिर पलाश के फूल
जिससे खाया नहीं जाए
मेरे भूखे रहने पर
उसी से ब्याहना मुझे।

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