मैंने अपने आँगन में गुलाब लगाएइस उम्मीद से कि उसमें फूल खिलेंगे लेकिन अफसोस की उसमें काँटे ही निकलेमैं सिंचती रोज़ सुबह शाम और देखती रही उसका तेज़ी से बढ़ना।वह तेजी से बढ़ा भीपर उसमें फूल नहीं आएवो फूल जिससे मेरे सपने जुड़े थेजिससे मैं जुड़ी थी पर लंबी प्रतीक्षा के बाद भीउसमें फूल का नहीं आनामेरे सपनों का मर जाना था।एक दिन लगा कि मैंइसे उखाड़कर फेंक दूँऔर इसकी जगह दूसरा फूल लगा दूँ पर सोचती हूँ बार-बार उखाड़कर फेंक देने और उसकी जगह नए फूल लगा देने से क्या मेरी जिंदगी के सारे काँटे निकल जाएँगे?हक़ीकत तो यह है कि
चाहे जितने फूल बदल दें हम
लेकिन कुछ फूल की नियति ही ऐसी होती है
जो फूल की जगह काँटे लेकर आते हैं
शायद मेरे आँगन में लगा गुलाब भी
कुछ ऐसा ही मेरी जिंदगी के लिए।
साभार : वागर्थ