Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पिता..तुम सुनार, लोहार और कुम्हार....

हमें फॉलो करें पिता..तुम सुनार, लोहार और कुम्हार....
- श्रुति अग्रवा

सुबह का वक्त था...राधा दर्द से कराह रही थी...वह तीसरी बार माँ बनने जा रही थी। बाहर बरामदे में रविकिशन तेज कदमों से टहल रहे थे... उधर दादी माँ पूजाघर में बैठी नवआगंतुक के लिए प्रार्थना कर रही थीं... तभी नन्हे फरिश्ते के मधुर रूदन से वातावरण गुँजायमान हो गया... दादी दौड़कर कमरे में जाती हैं और.... बच्चे के क्रंदन की जगह दादी का रोना-चीखना शुरू हो जाता है। किसी अनहोनी की आशंका में रविकिशन तेजी से कमरे में जाते हैं। वहाँ राधा के बगल में लेटी सुकोमल कली को तुरंत गोदी में लेकर दुलारने लगते हैं।

तभी दादी दहाड़ती हैं, ‘ये क्या कर रहे हो किशन, तीसरी बार भी बेटी ही जनी है। इस राधा ने... अब तेरा वंश कैसे चलेगा।’ यहाँ दादी बड़बड़ाती जाती हैं, वहाँ रविकिशन के चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है। वह तेजी से अपनी दादी को डपटते हुए कहते हैं, बाई (माँ) आप चुप रहिए...मैं इन तीन बेटियों के अलावा तीन बेटियाँ और पाल सकता हूँ... मेरे लिए बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं है... आप शांत रहें... राधा अभी कमजोर है... उसे और बच्ची को हमारी और हमारे प्यार की जरूरत है।

इस कहानी के केंद्रीय पात्र हैं - रामकिशन, जो शहर के मशहूर व्यापारी हैं। दादी एक रसूखदार महिला हैं। उनके रसूख का मुख्य कारण उनके ‘ छह लड़के‘हैं। दादी का मानना है कि लड़कों से उनके बेटे का वंश चलेगा... लड़के खानदान का नाम रोशन करते हैं। यूँ उनके पाँचों लड़कों के आँगन में लड़के खेलते नजर आते हैं। बस रामकिशन जी के यहाँ बेटियाँ-ही-बेटियाँ हैं। लेकिन रामकिशन को इस बात का बिलकुल शिकवा न था।
वक्त तेजी से बीतने लगा। तीनो बेटियाँ लताओं की तरह बढ़ने लगीं। वक्त के साथ हर बेटी का स्वभाव बदलने लगा। बड़ी बेटी सरस्वती... विद्या का वरदान... छोटी स्नेहा प्यार की लता... लेकिन निधि... तेज-तर्रार... सभी को डराने वाली.. तीनों को बढ़ते देख अकसर दादी पापा से कहती किशन.. कैसे सँभालोगे तीनों को... इस बीच वाली का तो कोई ठिकाना ही न है.. लड़कों जैसे करम है।

पिता बोले, चिंता न कर बाई, मैं किसी के लिए ‘कुम्हार बनूँगा.. किसी के लिए लुहार तो किसी के लिए सुनार’। लेकिन गढ़कर इन्हें अपने पैरों पर खड़ी होने लायक बनाऊँगा। ‘लड़कियों का अपने पैरों पर खड़ी होना,’ दादी को यह बात कुछ अजीब लगी। लेकिन किशन तो अपनी धुन के पक्के थे । वे गृह कार्य के अलावा अपनी बेटियों को दीन-दुनिया की सारी जानकारी दिया करते थे। अपनी व्यस्त जिंदगी से थोड़ा-सा वक्त चुराकर उनकी पढ़ाई पर खास ध्यान देते थे। साथ ही उन्होंने अपनी बेटियों की रुचि को कभी अनदेखा नहीं किया।

यह दौर भी बीत गया.. किशन की मेहनत से जहाँ वो सुनार बना, वहाँ अपनी विदूषी बेटी सरस्वती को विद्या की आँच में पकाकर लैक्चरर बना दिया। आज वो ज्ञान बाँटने के साथ-साथ अपना भरा-पूरा परिवार सँभालने लगी है। जहाँ लुहार बना, वहाँ लोहे की तरह पीट-पीटकर अपनी मँझली बेटी निधि को पुलिस अधिकारी बनाया। आज उस पर पूरे शहर की जिम्मेदारी है। वहीं छोटी स्नेहा को कुम्हार बन बड़े प्यार से खूबसूरत प्याले में ढाला। आज स्नेहा डॉक्टर बन दुनिया की सेवा कर रही है।

लेकिन सुनार, कुम्हार और लुहार का काम पूरा करते-करते किशन एक रात ऐसे सोए कि वापस उठे ही नहीं... लेकिन गहरी नींद में सोए किशन ने दादी की आँखें खोल दीं.. आज उनके परिवार के सारे लड़के जहाँ नालायक निकल खानदान का नाम खराब कर रहे हैं, वहीं किशन की तीनों बेटियों के कारण समाज में उनके परिवार का रुतबा अब तक कायम था। अब बेटियों को कोसने वाली दादी यहीं कहती हैं कि घर का नामलेवा ‘बेटा या बेटी’ कोई भी हो सकता है, बस उसके पिता के दिल में एक कुम्हार, एक लोहर और एक सुनार बसना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi